यह बैक्टीरिया से होने वाली एक बीमारी है। इस बीमारी में जनन अंगों में एक दर्द रहित मांस वाला छाला हो जाता है जो महीनों सालों तक रहता है। यह जनन अंगों पर एक छाले की तरह उभरता है। छाला का केन्द्र ठीक होने लगता है पर यह बढ़ता जाता है। इस बीमारी में जाँघ में गिल्टियाँ नहीं होती हैं। परन्तु अगर बीमारी का सही समय पर इलाज न हो तो यह जाँघ तक पहुँच सकती है। इस बीमारी में ऊतक सिकुड़ जाते हैं। इससे मूत्र मार्ग योनि और मलाशय में निकुंचन हो जाते हैं। इस बीमारी का निदान काफी आसान होता है क्योंकि इसके घाव काफी विशेष तरह के होते हैं। परन्तु घावों को देख पाने के लिए ध्यान से अन्दरूनी जाँच करना ज़रूरी होता है।
मुँह से २ से ३ हफ्ते डॉक्सीसाइक्लीन लेने से फायदा होता है। परन्तु बीमार को डॉक्टर को ज़रूर दिखा लेना चाहिए। यह निश्चित हो जाए कि और कोई यौन रोग तो नहीं है।
एल.जी.वी. बिमारी के कारण गिल्टीयॉं फुटकर पीप निकलता है |
लसिका गुल्म जाँघ में होने वाली एक बीमारी है। इस बीमारी में जाँघ की लसिका ग्रन्थियॉ प्रभावित होती है। यह रोग क्लैमाइडिया नामक कीटाणु से होता है क्लेमिडिया बैक्टीरिया से भी छोटा होता है।
बीमारी जनन अंगों पर हल्के छालों से शुरू होती है। ये छाले २ से ३ दिन तक रहते हैं और फिर बिना निशान छोड़े गायब हो जाते हैं। महिलाओं में तो अक्सर इन छालों पर ध्यान ही नहीं जा पाता। पुरुषों में भी इनके नज़रअन्दाज़ हो जाने की काफी गुँजाइश होती है।
नरम व्रण के लिए एक असरदार इलाज डॉक्सीसाइक्लीन है। इसी तरह कोट्रीमोक्साज़ोल भी उपयोगी है। दस दिन तक इलाज करें।
महिलाओं और पुरुषों में गिल्टियाँ अलग-अलग जगह पर होती हैं। अंदरवाला हिस्सा पेडू की लसिका तंत्र से जुडा होता है। महिलाओं में लसिका ग्रन्थियाँ पेडू (श्रोणी) के अन्दर होती हैं परन्तु पुरुषों में ये जाँघ में होती हैं। महिलाओं में भग और योनि का बाहरी तीसरा हिस्सा जाँघ ग्रन्थियों से जुड़ा रहता है।
पुरुषों में छाला होने के थोड़े ही समय बाद जाँघ में गिल्टियाँ हो जाती हैं। यह दर्द वाली शोथ की स्थिति है। बाद में गिल्टियों में पीप भर जाती हैं और वो फट जाती हैं। पीप कुछ दिनों तक बहती रहती है इसके बाद ग्रन्थियाँ साथ ठीक हो जाती हैं पर सिकुड़ती हैं। इससे लसिका नलियाँ बन्द हो जाती हैं और जनन अंगों में सूजन हो जाती है। यह स्थिति कुछ-कुछ फाईलेरिया जैसी होती है। महिलाओं में जाँघ ग्रन्थियों में अक्सर सूजन नहीं होती है क्योंकि छाले योनि में अन्दर होते है। इसलिए महिलाओं में अक्सर चिकित्सीय जाँच में गिल्टियाँ नहीं दिखते हैं।
सायनस (शिरानाल) (एक मुँह वाला) और नालव्रण (दो मुँह वाला, नालीदार ) महिलाओं और पुरुषों दोनों की पेडू (श्रोणी) के अंगों में होते हैं। इस तरह के छेदों से महिलाओं में योनि, मूत्राशय और मलाशय आपस में जुड़ जाते हैं। इससे बहुत ज्यादा तकलीफ होती है क्योंकि पेशाब और पाखाना गलत जगहों पर पहुँच जाता है। छाला और भगंदर के ठीक होने में कुछ अंगों में सिकुड़न आ जाती है। इन गड़बड़ियों को ठीक करने के लिए बहुत ही जटिल ऑपरेशन की ज़रूरत होती है।
इस संक्रमण का इलाज आसान है। २० दिनों के लिए मुँह से डॉक्सीसाइक्लीन दें। यह ज़रूरी है कि दोनों यौन साथियों का इलाज हो। अन्य लक्षणों जैसे दर्द और सूजन के लिए ऐस्पिरीन दें।