बाहरी कान की त्वचा में संक्रमण या ऐलर्जी के कारण शोथ को चर्म शोथ (डरमेटाईटिस) कहते हैं। यह बच्चों में बहुत पाया जाता है। कई समुदायों में बच्चों के कान में छेद करने का रिवाज़ इसका कारण बनता है। पामा याने स्केबीज़ से भी कई बार यह रोग हो जाता है।
कान को गुनगुने साफ पानी से साफ करें। कान में डालने वाली एन्टीबैक्टीरियल दवा का इस्तेमाल करें। इसके अलावा मुँह से खाने वाली एन्टीबैक्टीरियल दवा (कोट्रीमाक्स या डॉक्सी) का इस्तेमाल करें। आम तौर पर इन से हालत ठीक हो जाती है। डरमेटाईटिस में जेंशन वायलेट लगाएँ। मुँह से एन्टीबैक्टीरियल दवाई भी असर करती हैं। १२ वर्ष से कम उम्र वाले बच्चों में डॉक्सी न दें।
बाहरी कान के रास्ते में फफूँद लग जाना काफी आम है। यह लम्बे समय तक मोम के जमा रहने या कान के रास्ते में फोड़ा होने से भी होता है। कान में से निकलने वाले पीप के उपर भी फफूँद लगने की समस्या हो सकती है। तालाब और नदी में नहाने से पानी का कान में प्रवेश करना और गीलापन बने रहने से भी फफूँद लगता है। कान में फफूँद लगने से काफी दर्द होता है और बदबू आती है। फफूँद की इस वृद्वि का रंग सलेटी होता है जैसा एक गीले ब्लोटिंग पेपर का होता है।
मोम का हटाना और उसके साथ कान की बीमारी का दूर करना ज़रूरी है। फफूँद के इलाज के लिए जेंशन वायलट या निसटेसिन की बूँदें कान में डालों। इससे ३ से ५ दिनों में फफूँद ठीक हो जाती हैं। दर्द ज्यादा हो तब दर्दनाशक गोली जैसे पॅरासिटामाल या ऍस्पिरिन लेना ठीक रहेगा। कान के नली को सूखा रखें।
कान में तिल्ली डालने से बचे |
त्वचा में तेलीय ग्रंथियॉं होती हैं जो तेलीय पदार्थ स्त्रावित करती हैं। कान में ये पदार्थ मोम बन जाता है। यह अन्दरूना त्वचा को गीला व सुरक्षित रखता है। कुछ लोगों में ज़्यादा मोम निकलता है और कुछ में कम। ज़्यादातर लोग माचिस की तीली में रूई लगाकर या खास कानों के साफ करने वाले उपकरण से ये मोम हटा लेते हैं। वैसे ज़्यादातर लोगों में इसकी भी ज़रूरत नहीं होती। माचिस की तीली या सेफ्टी पिन आदि का इस्तेमाल खतरनाक हो सकता है। कान का पर्दा एक नाजुक झिल्ली होती है जिस पर बड़ी आसानी से चोट लग सकती है।
आमतौर पर इकट्ठी हुई मोम जबड़े के हिलने से नीचे की ओर खिसक कर के बाहर निकल जाती है। लहसन के एक दाने के साथ गर्म किए गए खाने के तेल की गुनगुनी बूँदें कान में डालना, एक परंपरा है। यह अक्सर मोम को मुलायम बनाने में मददगार होता है। लहसन में कीटाणु रोधी और फफूँद रोधी गुण होते हैं। हालॉंकि रोज़ या हफ्ते में एक बार तेल डालना ज़रूरी नहीं है।
यह केवल तभी ज़रूरी हो जाता है जब मोम सख्त हो जाए और त्वचा या कान के पर्दे से चिपक जाए। मोम को मुलायम करने के लिये हल्का सोडा बाय कार्बोनेट घोल एक दो दिन कान में डाला जाता है। बाद में कान को धोकर, कान में से सख्त होकर जम गई मोम को सुरक्षित तरीकेसे निकाला जाता हे। हाईड्रोजन पर ऑक्साइड भी मोम को मुलायम बनाने में सहायक होता है। मोम के कारण कान में अक्सर दर्द, खुजली, गूँज की आवाज आदि लक्षण होते है। सुनने को कठिनाई भी महसूस हो सकती है। खाने का सोडा मोम को पतला कर देता है। इस के लिए १०० मिली पानी में ५ ग्राम सोडा डाले। इसकी २-३ बूंदे कान में डाल दें।
कभी-कभी जब मोम को मुलायम बनाने वाले पदार्थ काम नहीं आते। इस सख्त मोम से छुटकारा पाना ज़रूरी हो जाता है। इस के लिए कान को गुनगुने पानी व सैप्टिक रोधी दवाइयों से धोएँ। यह काम एक खास तरह के नोज़ल से किया जाता है। आम तौर पर दो या तीन बार धोना काफी होता है। इस प्रक्रिया को सिरिंजिंग कहते हैं। सिरिंजिंग के बाद ३ से ५ दिनों तक कान में एन्टीफॅंगल या एन्टी बैक्टीरियल दवा की बूँदें डालना काफी होता है।
कान से कोई बाहरी चीज निकालने के लिए कुछ उपकरणे |
बच्चें बीज या छोटे छोटे पत्थर कान में डालता हैं। ऐसा दो तीन साल तक के बच्चे करते हैं। बड़ों में बाहर से कान में जाने वाली चीज़ मुख्यत: मच्छर या कीड़ा है। कान के सॅंकरे रास्ते में कोई कीड़ा मोम में भी फॅंस सकता है। जब इन चीज़ों को बाहर निकालने की कोशिश की जाती है तो ये और भी अन्दर चली जाती हैं। ये चीज़ें कान के पर्दे को नुकसान पहुँचा सकती हैं।
अगर कान में कोई कीड़ा घुस जाता है तो खाने के तेल की एक या दो बूँदें कान में डालें। इससे कीड़े को आगे बढ़ने से रोकने में मदद मिलती है। जल्दी ही ये कीड़े को मार देता है। फिर उसका निकालना आसान बना देता है। बाहरी चीज़ें निकालने वाली कान की चिमटी से आप कीड़े का एक भाग पकड़ कर खींच निकाल सकते हैं। आप कान में फूँक मारने और पानी से बहाकर बाहरी चीज़ें निकालने के लिए ड्रिप देनेवाली प्लास्टिक नली को काटकर इस्तेमाल कर सकते हैं। चीज़ के निकालने के बाद गुनगुने पानी से धोना आम तौर पर काफी होता है। अगर आप बाहर से कान में गिरी चीज़ नहीं निकाल पाते तो मरीज को किसी ईएनटी विशेषज्ञ के पास भेज देना चाहिए।
बच्चों के कान में कुछ जाने पर निकाल पाना आमतौर पर काफी मुश्किल होता है। क्योंकि ऐसा करने की कोशिश में बच्चा बेचैन हो जाता है। आप को यह देखना पड़ेगा कि बच्चा सहयोग कर रहा है या नहीं। ऐसी कोशिश में बच्चे के कान के पर्दे पर चोट लग सकती है। कभी कभी बच्चे को तीन चार लोगों की मदद से कस कर पकड़ा जा सकता है। आप खुद तय करें कि क्या आप ऐसा कर पा रहे हैं? नहीं तो बच्चे को डॉक्टर के पास भेज दें।
इन चीज़ों को निकालने के लिए अच्छे उपकरण की ज़रूरत होती है। बाहरी चीज़ें निकालने की खास तरह की कुछ चिमटियॉं भी उपलब्ध हैं। अच्छी लाईट ज़रूरी है। ईयर स्कोप नामक उपकरण में बड़ा करके दिखाने व लाईट की सुविधा होती है।
कान से बाहरी चीज निकालने के लिए सेफ्टी पिन का इस्तेमाल |
अगर आप के पास खास तरह की चिमटियॉं नहीं हैं तो आप एक मुड़ी हुई सेफ्टी पिन का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। इसके बंद सिरे को मोड कर चीज़ के पीछे तक पहुँच कर उसे निकालने की कोशिश करें।