स्वास्थ्य कार्यकर्ता पती-पत्नी को डॉक्टर के पास जाँच के लिए जाने की सलाह दे। इसके बाद भी ध्यान रख सकते हैं। अण्डोत्सर्ग का पता लगाने के लिए प्रजनन जागरूकता के लिए जोड़ों को सलाह दे सकते हैं। अगर ज़रूरी हो तो बच्चा गोद लेने की सलाह भी दे सकते हैं। कुछ ज़ोड़ों में सामान्य तरीके से महिला गर्भधारण नहीं कर पाती है। गर्भधारण के अन्य तरीके भी उपलब्ध हैं पर वो महँगे होते हैं। मुश्किल जैविक सन्तति प्राप्ती के बजाय बेहतर होता है कि बच्चा गोद ले लिया जाए। ज्यादातर शहरों में अनाथालय होते हैं जिनमें बच्चा गोद देने की सुविधाएँ होती हैं। नीचे गर्भधारण के अन्य तरीकों के बारे में जानकारी दी गई है।
इस तरीके में महिला की डिम्बवाही नली में अण्डे और शुक्राणुओं को एक साथ डाला जाता है। किसी जोड़े के अण्डाणु सामान्य है और पुरुष में शुक्राणु नहीं बनते ऐसे में शुक्राणुओं के बैंक में से किसी और देनदार के शुक्राणु लिए जा सकते हैं। इसमें देनदार या लेनेवालेका नाम छिपा रहता है फिर भी भावनात्मक रूप से यह स्वीकारना लोगों के लिए मुश्किल होता है।
कुछ औरतों में अण्डाणु तो बनता है पर यह बन्द नलियों के कारण गर्भाशय तक नहीं पहुँच पाता। ऐसे मामलों में वो टेस्ट ट्यूब शिशु के लिए कोशिश कर सकती है। इसमें शुक्राणुओं को एक परखनली नली में अण्डे से मिलाने की कोशिश की जाती है। निषेचित अण्डे को फिर गर्भाशय में डाल दिया जाता है जहाँ सामान्य गर्भावस्था जैसे ही उसका विकास होता है। यह तरीका भी बहुत महँगा है। और इसमें भी जोड़े को काफी तनाव और खासकर महिला को काफी कष्ट झेलने पड़ते है।
ज़रूरी हो तो बच्चा गोद लेने की सलाह भी दे सकते हैं। |
भारत में अब भी बॉंजपन के समस्या को हल करने के लिए सेवाएँ मुश्किल से ही मिलती है। परिवार कल्याण कार्यक्रम में भी बन्ध्य जोड़ों की मदद करनी चाहिए। और इस कार्यक्रम का केन्द्र बिन्दु केवल जन्म नियंत्रण ही नहीं होना चाहिए। बन्ध्यता एक भावनात्मक मामला है। और समस्या का कारण चाहे पुरुष में हो तो भी इसके लिए महिला को ही काफी परेशान किया जाता है। गाँवों में बन्ध्यता को लेकर काफी अन्धविश्वास फैले हुए हैं। और इसे दूर करने के लिए बहुत से क्रूर तरीके इस्तेमाल किए जाते हैं। बन्ध्यता से जुड़े हुए मिथकों और अन्धविश्वासों को खत्म करने की जरुरी है। इसकी सही जानकारी और सलाह देने में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है।