child-health-icon बच्चों का पोषण और कुपोषण
समयपूर्व या कम जन्म वजनवाला पैदा हुआ बच्चा
Child Weight
जच्चे बच्चे का वजन
ढाई किलो से उपर होना चाहिये

कोख में बच्चा ३२ हफ्तों में जीवनक्षम होता है। अवधिपूर्व पैदा हुए बच्चे को कई ज़्यादा देखभाल और सुरक्षा की ज़रूरत होती है। बहुत से बच्चों का जन्म वजन बहुत कम होता है। इनमें से कई समय से पहले पैदा हुए बच्चे हो सकते हैं। आमतौर पर जन्म वजन २.५ किलोग्रास से ज़्यादा होना चाहिए। भारत में हर १० बच्चों में से ३ का जन्म वजन २.५ किलोग्राम से कम होता है। नीचे दिए गए कारणों के कारण बच्चे का जन्म समय से पूर्व हो सकता है।

  • पहले कई बार गर्भपात हुए होने की स्थिति में
  • नाल के जल्दी अलग हो जाने के कारण
  • गर्भावस्था के दौरान पेट में चोट लगने से
  • जुड़वां बच्चे होने पर
  • पानी की थैली में बहुत अधिक पानी होने के कारण
  • गर्भावस्था में मॉं का रक्तचाप बढा हो।
  • गर्भवती मॉं को पेशाब में संक्रमण या मलेरिया जैसी संक्रमण हुई हो।

जन्म के समय वजन कम होने के निम्नलिखित कारण होते हैं

  • मॉं के कुपोषित होने पर या उसे अनीमिया होने पर
  • गर्भावस्था के समय विषाणू की छूत, मलेरिया या तपेदिक होने पर
  • जुड़वां बच्चे होने पर
  • गर्भावस्था के दौरान परिवार में या मॉं के धूम्रपान करने पर
  • गर्भावस्था के दौरान मॉं को उच्च रक्तचाप होने पर

आम परिस्थितियों मे ३२ हफ्तों से भी पहले जन्मे बच्चों का ज़िंदा रहना मुश्किल होता है। ऐसे बच्चे केवल खास चिकित्सा के साथ ही बच सकते हैं। ३२ हफ्तों के बाद पैदा हुए बच्चे जादा सेहतमंद होते हैं और घर पर भी खास देखभाल इनके लिए पर्याप्त होती है।
अच्छी देखभाल न होने से अवधीपूर्व जन्मवाले बच्चों का ज़िंदा रह पाना मुश्किल होता है। सर्दी-गर्मी के अनुसार तथा संक्रमण और कुपोषण से इनकी हालत बिगडती है।

समयपूर्व जन्मे बच्चे की उम्र का अंदाज़ा लगाना

बच्चे की उम्र का अंदाज़ा नीचे दिए गए सूचकों से लग सकता है।

  • आखरी कुछ हफ्तों में पैरों के तलवों में बन जाने वाली लाइनों से (उर्मिका) हम कुछ जान सकते है। बच्चे के तलवे के अगले एक तिहाई हिस्से में ये लाइनें ३६ हफ्तों तक पड जाती हैं। तलवों के बाकी के हिस्से में ये लाइनें ३८वें हफ्ते के बाद पड़ती हैं।
  • ३३ से ३४वें हफ्तों में बच्चे में हल्के से निशान के अलावा स्तनों का कोई निशान नहीं होता। ३६वें हफ्ते में स्तन की गांठ ३ मिलीमीटर से कम की होती है। पूरी तरह से विकसित बच्चे में स्तन की गांठ ४ से १० मिलीमीटर की होती है।
  • ३६वें हफ्ते तक कान में कोई उपास्थि नहीं होती। अगर आप बच्चे का कान मोड़ें तो वो मुड़ा ही रह जाता है। ३६ हफ्तों के बाद उपास्थि विकसित होने के बाद कान एक निश्चित आकार पाता है।
  • अवधीपूर्व जन्में बच्चे की त्वचा पतली और कमज़ोर होती है।
  • पूर्ण रूप से विकसित बच्चे के पैर संकुंचित अवस्था में होते हैं। अगर उन्हें खींच कर सीधा किया जाए तो वो फिर सिकुड़ जाते हैं। अवधीपूर्व जन्में बच्चे के पैर संकुंचित अवस्था में नहीं रहते और अगर उन्हें सिकोड़ा भी जाते भी वो धीरे धीरे फिर फैल जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अवधीपूर्व जन्में बच्चे की पेशियॉं तनी हुई नहीं होतीं।
  • ३२ हफ्तों से भी पहले पैदा हुए बच्चे स्तनों से दूध नहीं चूस सकते। ऐसा कर पाने के लिए बच्चे का कम से कम ३३ हफ्तों में पैदा होना ज़रूरी है। इसिलिये कुछ दिनोंतक उनको सहायता करनी पडती है।
  • २८ हफ्तों से पूर्व जन्मे बच्चे में स्टार्टलिंग या चौंकना (मोरो प्रतिवर्त) अनुपस्थित होता है। ३२ हफ्तों पूर्व पैदा हुए बच्चों में भी यह प्रतिवत कमजोर होता है।
  • दूध चूसना और निगलना ३२ हफ्तों बाद पैदा हुए बच्चे में ही संभव है। इसलिए इससे कम समय में पैदा हुए बच्चे नली से दूध पिलाए बिना ज़िंदा नहीं रह सकते।

समयपूर्व पैदा हुए बच्चों के लिए खतरे
  • शरीर के तापमान का अचानक कम हो जाना
  • खून में शक्कर का अचानक कम हो जाना
  • सांस लेने में मुश्किल
  • जन्म में समय सिर में चोट लगना
  • स्त्रावों या दूध के फेफड़ों में घुसने के कारण निमोनिया
  • संक्रमण
  • अनीमिया
  • मस्तिष्क में रक्तस्त्राव
  • मस्तिष्क पर असर करने वाला पीलिया

समय से पहले पैदा हुए बच्चों की घर में देखभाल

३२वें हफ्ते के बाद पैदा हुए बच्चे घर में ही अच्छी देखभाल से बच सकते हैं। इससे भी कम समय में पैदा हुए बच्चे या २.० किलोग्राम से कम वजनवाले बच्चेको अस्पताल में दाखिल करना ज़रूरी है। वहॉं उसे उचित तापमान, आहार और अन्य देखभाल मिल सकती है।

घर पर हम समयपूर्व पैदा हुए बच्चे को कुछ आवश्यक देखभाल दिलवा सकते हैं। ३-४ हफ्तों की अच्छी देखभाल से बच्चा बच सकता है और उसका उचित विकास हो सकता है।

  • अगर बच्चा दूध चूस सकता है तो जन्म के तुरन्त बाद स्तनपान कराएँ और प्रति २ घंटे दूध पिलाते रहें (दिन और रात) इससे बच्चे को ऊर्जा मिलेगी और शरीर का तापमान बना रहेगा।
  • बच्चे को गरम रखने के लिए उसे मॉं (या अन्य कोई वयस्क जो उसकी देखभाल कर रहा हो) के छाती को लगाकर ढक दें। ध्यान दें कि मॉं और बच्चे की चमडी एक दूसरे को छू रही है। इसे ‘कंगारू’ विधी कहा जाता है। दिन में कम से कम ३-४ घंटे बच्चे को इस प्रकार बॉंध कर रखने से उसे बचाया जा सकता है।
  • शरीर को पर्याप्त गर्मी पहुँचाने के लिए बाहर से गर्मी देना ज़रूरी होता है। ठंड से बच्चे को नुकसान हो सकता है। गर्म रखने से उसके शरीर की बहुत सी कैलरी बच सकती हैं। अन्यथा उसे अपने को गर्म रखने में उर्जा खर्च करनी पड़ सकती हैं। ध्यान रहे कि नाजुक बच्चे को सारी कैलरी अपनी वृद्धि के लिए चाहिए होती हैं।
  • कमरे को गर्म और नम रखने के लिये एक कोने में उबलता हुआ पानी रखे। (कमरे को इतना गर्म भी न कर दें कि उसमें घुटन होने लगे)
  • बच्चे को गर्म कपड़ों में लपेट कर रखें।
  • कमरे में एक गीला कपड़ा डोरीपर डाल देने से भी कमरा को नम होता है। सूखे मौसम से बच्चे के फेफड़ों को नुकसान होता है। हवा में नमी होने से बच्चे के फेफड़ों को हम सुरक्षित रख सकते है।

स्तनपान
breast feeding
स्तनपान और उसका सही तरीका छ
मास तक बच्चों के लिये
सबसे महत्त्वपूर्ण है

ऐसे बच्चेका पोषण सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है। अगर शिशु चूस सकता है तो स्तनपान में कोई परेशानी नहीं होती। अगर वो चूस नहीं सकता तो चम्मच से दूध पिलाना पड़ता है। समयपूर्व पैदा हुए बच्चों में चूसने की शक्ति कम होती है। दूध चूसने में बहुत ज़्यादा उर्जा लगती है। बेहतर यह होता है कि स्तन का दूध निकालकर बच्चे को चम्मच से पिला सकते है। ५ – १० मिली दूध बार बार पिलाएं। दूध हर घंटे पर दे सकते है। अगर बच्चा दूध न पचा पा रहा हो, जैसा कि पहले दो तीन दिनों में होता है, तो उसे चीनी का पानी पिलाएं। २४ घंटों में कुल १५० मिली दूध प्रति किलोग्राम (बच्चे के वजन के अनुसार) देना चाहिए। मॉं का पहला दूध (खीस) अनमोल होता है। इससे बच्चे को संक्रमण से लडने की शक्ति मिलती हैं।

संक्रमण से बचाव

ध्यान रखें कि बच्चे को छूने से पहले मॉं अपने हाथ ज़रूर धो ले। बच्चे का संपर्क बहुत सारे लोगों से न हो क्योंकि इससे भी संक्रमण होने की गुंजाइश रहती है। दूध देने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कटोरी और चम्मच को हर बार इस्तेमाल करने से पहले साफ कर लेना चाहिए और उबाल लेना चाहिए। बच्चे के कपड़े भी धुले हुए और धूप में सुखाए हुए होने चाहिए।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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