प्रकृती में मुलत: शुद्ध पानी होता है प्रदूषण से वह खराब होता है |
किसी समाज के स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित पानी और स्वच्छता की सुविधाएँ बहुत महत्वपूर्ण हैं। परन्तु कई कारणों से इन दो पर बहुत ही कम ध्यान दिया गया है। इन कारणों में से मुख्य गरीबी है। पानी और मलमूत्र निकास की उचित व्यवस्था से बीमारियों का होना बहुत बड़ी हद तक घटाया जा सकता है। आज भी भारत की देहाती जनसंख्या के लिए सुरक्षित और पर्याप्त पीने का पानी एक सपना ही है। परन्तु कई ऐसे तरीके हैं जिनकी मदद से हम परिवार और समुदाय के स्तर पर पानी और स्वच्छता का इंतज़ाम कर सकते हैं।
भारत के कई इलाकों में पानी की किल्लत होती है |
शुद्ध और पर्याप्त पेयजल स्वस्थ जीवन की एक मुख्य ज़रूरत है। आँकडों के अनुसार भारत में केवल ३0 प्रतिशत लोगों को ही सुरक्षित पीने का पानी मिलता है। हमारे हिसाबसे इसमे भी कई समस्याएँ है। देहाती लोगों के लिए इस सुविधा का सबसे अधिक अभाव हे। देश के कई हिस्सों में ज़मीन में पानी का स्तर कम हो जाने के कारण पानी की कमी है। औद्योगिक कचरे के कारण पानी के बहुत से स्रोत प्रदूषित हो रहे है। बहुत सी नदियॉं गंदी नालियॉं बन चुकी है, और पानी के अन्य स्रोत पूरी तरह प्रदूषित हो चुके हैं।
पेयजल को किटाणुरहित होना चाहिए। साथ ही उसमें नुकसान पहुँचाने वाले रसायन, गन्ध और स्वाद भी नहीं होना चाहिए। असुरक्षित और अपर्याप्त पीने का पानी हमारी आधी बीमारियों का कारण है, खासकर ग्रामीण इलाकों में। परन्तु शहरों में भी (खासकर बारिश के दिनों में) पीने का पानी असुरक्षित हो जाता है। हैजा, उल्टी-टट्टी (गेस्ट्रोएन्ट्राइटिस), टायफाएड, पोलियो, पीलिया, दस्त, कीड़ों की छूत और त्वचा की छूत आदि प्रदूषित पानी से होने वाली बीमारियॉं हैं। पानी के कुछ स्रोतों में कुछ विषैले लवण जैसे आरसेनिक होते हैं।
हर व्यक्ति को प्रतिदिन ग्रामीण इलाके में कम से कम ४० लीटर और शहरों में ६० लीटर पानी की ज़रूरत होती है। पानी की कमी के कारण लोग जैसा भी पानी मिले वही इस्तेमाल करने पर मज़बूर हो जाते हैं। और इससे अक्सर पानी से होने वाली संक्रमण का शिकार हो जाते हैं।
किसी भी विषय के उद्देश्य के अनुसार कौन सा तरीका प्रभावशील होगा यह तय करना होगा।
पानी अच्छा होने के कई मापदंड है। पानी में धूमिलता होना ठीक नही, यह सब जानते है। लेकिन इसको मापने के लिये मापनयंत्र भी उपलब्ध है। धूमिलता होना मिट्टीका प्रदूषण का सूचक हैः इसको ठीक करने के लिये तरीके है जैसे की पानी को २४ घंटे स्थिर रखना। पानी का रंग भी प्रदूषण का सूचक होता है। पानी का कोई रंग नही होता। पानी में रंग होना रासायनिक प्रदूषण का सूचक है। शुद्ध पानी गंधहीन भी होता है। बू आनेसे प्रदूषण का पता चलता है। इसके भी मापक उपलबद्ध है। इसी के साथ पानी का स्वाद भी सही होना जरुरी है। चखकर हम ये जॉंच कर सकते है। प्रदूषित पानी का स्वाद अलग-अलग होता है। कुछ स्वाद रासायनिक या धातूओंका निर्देशक होते है, जैसे मॅग्नेशियम से मीठापन या नमक से खारापन।
इन सारे गुणधर्मों के होते हुऍं भी रासायनिक जॉंच जरुरी होती है। पानी में धातुओं का होना कुछ हद तक सामान्य समझ सकते है। पानी के स्रोतों में मनुष्य और पशुओं के मल के मिल जाने से (चाहे थोड़ी सी ही मात्रा में) पीने के पानी में बीमारी पैदा करने वाले कीटाणु मिल जाते हैं। अगर प्रदूषण ज़्यादा है तो इससे पानी से होने वाले रोग भी हो जाते हैं।
पानी के सभी स्रोत (नदियॉं, जलधाराएँ तालाब और झीलें) किसी न किसी तरह से दूषित हो सकते हैं। बार-बार उसी पानी में कपड़े धोने, बर्तन धोने, मवेशियों को नहलाने या मनुष्यों के नहाने से नुकसान पहुँचाने वाले कीटाणु पानी में आ जाते हैं। इसके अलावा शहरों में उद्योगों का कचरा रसायनिक रूप से पानी को प्रदूषित करता हैं। अगर पानी का स्रोत विशाल है तो प्रदूषणकारी तत्वों की सान्द्रता कम हो जाती है और उनसे होने वाला नुकसान भी। परन्तु जहॉं पानी कम हो वहॉं यह भी नहीं हो पाता। इसलिए ऊपरी सतह का पानी तब तक पीने योग्य नहीं होता जब तक उसे जीवाणुरहित न कर लिया जाए।
भारत में अभी गंगा जैसी पवित्र नदियॉं तक बुरी तरह गंदी हो चुकी है। सैकडो शहरोंसे मलमूत्र तथा औद्योगिक गंदगी आकर नदियों में घुलमिल जाती है। खेतोंसे खाद के अंश भी पानी में उतर जाते है, जिससे कूपनलिकाएँ प्रदूषित बन गयी है। भारत में जलप्रदूषण के रोकथाम के लिये बोर्ड है, लेकिन इससे कुछ बन नही पा रहा है। ज़मीन के अन्दर का पानी (भूजल) तुलनात्मक रूप से अधिक जीवाणु रहित होता है। अगर धरती के उपरी परत का (भूपृष्टीय) दूषित पानी का रिसाव अन्दर न हो तो यह पानी प्रदूषण से बचा रह सकता है। वोरवैलों का पानी, जो कि गॉंवों में काफी आम होते हैं, लगभग पूरी तरह से जीवाणु रहित होता है।
खुले कुओं का पानी, सतह के पानी के स्रोतों की तरह आसानी से दूषित हो जाता है। अगर खुले कुओं का पानी सुरक्षित रखना हो तो इनकी ठीक से देखभाल करना ज़रूरी है।