पेशाब अटकना यानि मूत्रावधारण रूकना और मूत्र न बनने में बुनियादी फर्क होता है। अटकना मूत्रावधारण का अर्थ है बाहर जानेवाली जगह या मूत्रमार्ग में अवरोध के कारण मूत्राशय में पेशाब का इकट्ठा हो जाना। परन्तु गुर्दों द्वारा कम पेशाब बनना या बिलकुल न बनाना गुर्दों के खराब होने की निशानी है। पहली समस्या की प्रक्रिया मूत्राशय सम्बन्धित है परन्तु दूसरी का अर्थ है गुर्दों का फेल होना।
साथ दी गई तालिका में अलग-अलग उम्र के पुरूषों और महिलाओं में पेशाब अटकने की सम्भावित कारणों के बारें में जानकारी दी गई है। रोगी आमतौर पर डॉक्टर को बता पाते हैं कि पेशाब अटका हुआ है। अक्सर एक घण्टे तक पेशाब के रूके होने पर रोगी मूत्राशय में दर्द और उसके फूलने की ओर ध्यान दिला पाते हैं। यह फूलापन पेट के निचले हिस्से में (नाल के नीचे) दिखाई देती है। उँगली से यहाँ ठोकने पर परितारण से एक मन्द सी आवाज़ आती है जैसे एक पानी भरा गुब्बारा हो।
पेशाब अटकने का इलाज करने के लिए पहले अवरोध के कारण का पता लगाना ज़रूरी होता है। आमतौर पर नली लगाना मुश्किल नहीं होता है लेकिन पूरस्थ ग्रंथी की सूजन हो तब नली डालना मुश्किल होता है। सिर्फ इस स्थिती को छोड़कर (जबकि पुरस्थ के बढ़े होने के कारण पेशाब अटका हुआ हो) जहॉं तक हो सके मूत्रनली कैथेटर, (मूत्राशय से पेशाब निकालने वाली एक रबर की नली) लगाने से बचना चाहिए। क्योकि इससे मूत्रतंत्र में संक्रमण लगने का डर होता है। पेशाब बाहर निकालने के लिए पोटली गर्म करके पेट पर रखने से फायदा होता है। अगर नली लगाना ज़रूरी हो तो पूरी सावधानी बरतनी चाहिए कि किसी तरह का कोई संक्रमण न लगे। सही आकार का मूत्रनली लें। बेहतर होगा कि इसका व्यास थोड़ा सा छोटा हो। ध्यान रखें कि इसमें उतनी सफाई की ज़रूरी है जितनी कि किसी आपरेशन में। अन्दर डालने से पहले मूत्र नली को किसी दर्द निवारक जेली में डुबाकर मुलायम बना लें। पुरूषों में इसे अन्दर डालने के लिए थोड़े से कौशल की ज़रूरत होती है। औरतों का मूत्रमार्ग क्योंकि छोटा और सीधा होता है इसलिए उनमें कैथेटर डालना आसान होता है। आपके इलाज का जो भी परिणाम हो रोगी को आगे की देखभाल के लिए स्वास्थ्य केन्द्र ले जाएँ।
शिश्नमुंड की चमडी का छेद संकरा होने पर पेशाब बुंद बुंद होती है |
कम पेशाब आना (अल्पमूत्रता) या पेशाब न आना (अमूत्रता) दोनों ही गुर्दों की गम्भीर बीमारियॉं हैं। अक्सर गुर्दे धीरे-धीरे करके फेल होते है। अक्सर रोगी और उनके रिश्तेदारों को इसका जल्दी पता नहीं चल पाता। अक्सर इसको काफी दर हो चुकी होती है।
आदमी कितनी पेशाब पैदा करता है यह उम्र और मौसम के अनुसार बदलता है। बड़ों में २४ घण्टो में पेशाब की सामान्य मात्रा १ से २ लीटर होती है। गर्मियों में शरीर के तापमान के नियन्त्रण के लिए पसीना आता है और इससे काफी सारा पानी और लवण त्वचा से बाहर निकल जाते है। इसके कारण गर्मी में पेशाब की मात्रा कम यानि एक लीटर हो जाती है। यूरिया शरीर से बाहर निकलने के लिए इतना पेशाब निकलना एकदम ज़रूरी है। सिर्फ गुर्दे ही यूरिया बाहर निकाल सकते है, कोई भी और अंग नहीं। सर्दियों और बरसात में पसीना काफी कम आता है, इसलिए पेशाब की मात्रा ज़्यादा होती है। २४ घण्टों में करीब २ से ३ लीटर तक पेशाब आता है। बच्चों में पेशाब की मात्रा बड़ों की तुलना में कम होती है। अगर वयस्कों में २४ घण्टों में पेशाब की मात्रा ५०० मिलीलीटर से कम हो तो यह स्थिति अमूत्रता की स्थिति है। इस स्थिति को पहचानना ज़रूरी है। साथ की तालिका में इसके कारणें के बारे में पढ़ें। कारण कुछ भी हो, पेशाब कम होना या रूकना एक बहुत ही गम्भीर समस्या है। रोगी को तुरन्त अस्पताल भेजें। अगर इसका कारण निर्जलन है तो अस्पताल भेजने से पहले ही द्रव देना (ओआरएस या अन्त:शिरा में सैलाइन) तुरन्त शुरू कर दें।
बच्चे दानी के दबाव से बार बार मूत्र पवृत्ती होती है |
हमें बार-बार पेशाब आने और अधिक मात्रा में पेशाब याने बहुमूत्रता में फर्क करना आना चाहिए। २४ घण्टों में दो लीटर से ज़्यादा पेशाब आना बहुमूत्रता की स्थिति है। सर्दियों में और बहुत अधिक द्रव ले लेने पर हम ज़्यादा पेशाब करते हैं। बीमारियों में मधुमेह से बहुमूत्रता हो जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि खून में ज़्यादा चीना होती है जो कि पेशाब में उतरती जाती है। ज़्यादा चीनी को ढोने के लिए ज़्यादा पीने की ज़रूरत होती है और इससे बहुमूत्रता हो जाती है।
पेशाब की मात्रा ज़्यादा होने पर मूत्राशय इतनी मात्रा सम्हाल नहीं पाता है। ऐसे में बार बार पेशाब जाने की ज़रूरत हो सकती है। बार बार पेशाब जाने की ज़रूरत की समस्या आमतौर पर निम्नलिखित कारणें से होती है-
जलन मूत्रमार्ग और मूत्राशय में होने वाला एक खास तरह का दर्द है। यह इन स्थितियों में होता है-
बुखार और निर्जलन की स्थिति में पेशाब का गाढ़ा हो जाना एक आम समस्या है। खासकर गर्मियों में पेशाब गहरे पीले रंग का दिखाई देता है। ज़्यादा द्रवीय पदार्थ लेने पर पेशाब को तनु (पतला) किया जा सकता है। सामान्य पेशाब अम्लीय होता है (इसलिए इससे जलन होती है)। सोडा बाइकार्बोनेट जैसी क्षारीय दवा इसकी अम्लीयता कम कर देते हैं और इस तरह दर्द कम कर देते हैं।