देशी शराब में अकसर मिथाइल एल्कोहल मिला दिया जाता है। शरीर में यह फॉरमेलडिहाइड में बदल जाता है, जो कि एक अत्यंत विषैला पदार्थ है और लगभग 4 दिनों तक शरीर में रहता है। इसकी थोड़ी सी भी मात्रा से अन्धापन, आक्षेप और मृत्यु तक हो सकती है। देश में हर साल ऐसे कई हादसे होते हैं जिनमें सैंकड़ों लोग मिथाइल एल्कोहल के कारण मारे जाते हैं या अंधे हो जाते हैं। खोपड़ी, अरक, लाथा, नवातंक और सुरा में भी मिथाइल एल्कोहल होता है।
स्प्रिट में भी थोड़ा सा मिथाइल एल्कोहल मिला होता है ताकि शराब के व्यसनी लोग इसे पीने से डरें। इसे परिवर्तित स्प्रिट कहते हैं, जो कि त्वचा और घावों को साफ करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
कुछ साल पहले शराब आयुर्वेदिक टॉनिकों के रूप में इस्तेमाल होती है। बहुत से लोग इसके शिकार हो जाते हैं। इससे दवाओं के नियंत्रण में होने वाली खामियों का पर्दाफाश होता है।
आदिवासी जनजातियों के लिये शराब पर पाबंदी नही। चिकित्सीय कारणों के लिए व्यक्तियों को शराब पीने के लाइसेंस पुलिस वालों द्वारा दिए जाते हैं। बाकी सब लोगों पर शराब पीने पर पाबंदी होती है और शराब पीने से उनपर केस हो सकता है। पर असल में इस कानून का लगातार उल्लंघन होता है और उल्टा चोरी से शराब बनाने वाले इसका फायदा उठा लेते हैं। भारत में शराब पर प्रतिबंध और शराब के लिए लाइसेंस देने की मिली जुली नीति है। गुजरात में महात्मा गांधी के सम्मान में शराब पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है।
शराब की दुकानें (कानूनी और गैरकानूनी) बंद किया जाना अधिकांश महिला संगठनों का एक अहम मुद्दा रहा है। महिला आंदोलन के चलते राज्य के सभी राजनैतिक दलों को शराब पर पूर्ण प्रतिबंध को स्वीकार करने पर मजबूर किया। आंध्रप्रदेश की महिलाओं की यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी। जो लोग प्रतिबंध के समर्थन में खड़े हुए उन लोगों को चुनावों में लोगों का समर्थन मिला। परन्तु शराब जल्दी ही वापस आ गई।
महात्मा गांधी ने जीवन भर शराब के विरोध में अभियान चलाया। यह अभियान उनके स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा था। 1980 और 1990 के दशक में पश्चिमी भारत के एक किसान आंदोलन शेतकारी संगठन ने पूरे एक दशक तक शराब की दुकानों के खिलाफ संघर्ष किया। उनका मानना था कि ये शराब की दुकानें ही अपराध की राजनीति और औरतों के खिलाफ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष हिंसा का कारण होती हैं। इन आंदोलनों की एक महत्वपूर्ण मांग यह थी की एक कानून हो कि अगर किसी गॉंव की औरतों में से आधी से ज़्यादा यह कहें कि वे शराब की दुकान के खिलाफ हैं तो वह दुकान बंद कर दी जाएगी। इसी तरह से किसी गॉंव में देसी शराब की दूकान को लाईसेंस देने के लिए यह आवश्यक शर्त हो कि गॉंव की सभी औरतें इसके लिए रजामंद हों।
लगभग सभी धर्मों में शराब की मूल्यों और नैतिकता के आधार पर शराब की मनाही की गई है। इससे मानवता को काफी मदद मिली है। पश्चिमी भारत में स्वाध्याय परिवार आंदोलन ने हज़ारों लोगों को शराब से दूर ले जाने में सफलता हासिल की।
महाराष्ट्र के कुछ जिलों को शराब प्रतिबंधित जिले घोषित कर दिया गया है। हरियाणा में भी हाल ही में ऐसा ही हुआ है। गुजरात में शराब पर पाबंदी है। प्रतिबंध लगाना ज़्यादा समय नहीं चलता। कुछ साल पहले आंध्रप्रदेश सरकार फिर से शराब वापस ले आई क्योंकि इसके बिना उसे राजस्व का भारी नुकसान हो रहा था।
प्रतिबंध से नई समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। गैरकानूनी शराब राजनीति में अपराधों और हिंसा को जन्म देती है। इससे राजनीतिज्ञों का अपराधीकरण और पुलिस में भ्रष्टाचार बढ़ता है। इसलिये पाबंदी और स्वीकृती का यह सिलसिला सदियों से चल रहा है। आर्य चाणक्य के समय में भी ऐसे लेख मिलते है।