स्वास्थ्य पर तम्बाकू के बहुत सारे बुरे असर होते हैं। तम्बाकू शायद विश्व में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होने वाली लत लगाने वाली चीज़ है। इसे मुँह से निगला जाता है, चबाया जाता है, नाक से सूंघा जाता है और धूम्रपान के ज़रिए लिया जाता है। यह ऑफिसों, खेतों, फैक्टरियों और घरों सभी जगहों पर एक जितनी आम है। धूम्रपान से वे लोग भी प्रभावित होते हैं जो खुद चाहे धूम्रपान न भी कर रहे हों। उन्हें धूएं में सांस लेनी पड़ती है। इस तथ्य के आधारपर सार्वजनिक स्थानपर धूम्रपान पर पाबंदी है।
तम्बाकू में निकोटिन होता है। इससे फेफड़ों, दिल, आमाशय, मुँह और खून की नलिकाओं को नुकसान होता है। इसके सिर्फ कुछ एक मनोवैज्ञानिक उत्तेजना होती हैं।
तम्बाकू की धूल में सांस लेने के कारण ये मजदूर निकोटिन के बहुत से असर झेलते हैं। इन्हें फेफड़ों का तपेदिक हो जाता है जिससे फेफड़ों में चिरकारी शोथ हो जाता है।
निकोटिन की गंभीर विषाक्तता से मौत भी हो सकती है। इससे आमाशय और छाती में जलन, थूक आने, पसीना आने, दस्त होने, मितली, उल्टी, जी मिचलाने, बेहोशी, सुन्न होने, पेशियों के कमज़ोर होने, कंपकपी होने की शिकायत और अंतत: मौत हो जाने का खतरा हो जाता है। आँखों का तारा पहले सिकुड़ता है और फिर फैल जाता है। धड़कन धीमी फिर तेज़ और फिर अनियमित हो जाती है। धीरे धीरे श्वसन के मंद पड़ जाने से मौत हो जाती है।
तम्बाकू से मेहनत से कमाया हुआ पैसा नाली में चला जाता है। पुरुष और महिलाएं दोनों ही तम्बाकू पर पैसा खर्च करते हैं। सामाजिक रूप से स्वीकार्य होने और शराब की तुलना में कम नुकसानदेह प्रतीत होने के कारण इसका प्रचलन काफी ज़्यादा है और बच्चों में भी इसकी आदत बहुत आसानी से पड़ जाती है।
तम्बाकू खासकर जब धूम्रपान के ज़रिए ली जाती है तो यह शराब से भी ज़्यादा नुकसानदेह होती है। परन्तु अंतर्राष्ट्रीय तम्बाकू व्यापार के सामने दुनिया की सरकार काफी कमज़ोर रहती हैं। सरकार सिगरेट पीने को प्रतिबंधित नहीं कर सकतीं; वे केवल छोटे छोटे अक्षरों में इनके पैकेटों पर चेतावनी लिख पाती हैं।
धूम्रपान भी बड़प्पन का एक मानक बन गया है और इसलिए सिगरेट का व्यापार बढ़ता जा रहा है। बड़ी तादाद में किशोर और युवा वर्ग भी धूम्रपान अपना रहे हैं। विज्ञापनों का भी धूम्रपान को बढ़ावा देने में खासा योगदान रहा है। हाल ही में भारत में सरकारी दफ्तरों और सार्वजनिक स्थानों में धूम्रपान पर प्रतिबंध लगाया गया है।