आदत डालने वाली चीज़ों के लिए मनुष्य की कमज़ोरी हमेशा से रही है। यहॉं तक की वैदिक युग इतिहास भी सोमरस के सेवन की कहानियों से भरा हुआ है। नशा करने वाले पदार्थ आज भी लगभग सभी का समुदायों में इस्तेमाल होते हैं। लोगों और सामान की आवाजाही बढ़ने से और अधिक नशीले पदार्थ सीमाओं के आर पार और एक व्यक्ति से दूसरे के पास जा रहे हैं। शराब और तम्बाकू सबसे बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याएँ बन गई हैं, जिनसे युद्धों से भी अधिक लोग प्रभावित होते और मरते हैं। दुर्भाग्य से बहुत से गरीब देशों की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से तम्बाकू और अन्य लत लगाने वाले पदार्थों पर निर्भर करती हैं। शराब और तम्बाकू पर लगने वाले टैक्सों से सरकारें अमीर और लोग गरीब होते जाते हैं। सरकार के अलावा पूरी दुनिया में असामाजिक तत्व भी शराब और नशे की अन्य चीज़ों से मिलने वाले पैसे पर ही टिके रहते हैं।
व्यक्तिगत स्तर पर जीवन के प्रति रवैया और मूल्यों, व्यक्तिगत और घरेलू परेशानियों, मन का दु:ख प्रकट कर पाने की संभावना का अभाव और अन्य कई कारणों से लोग इन लतों के शिकार हो जाते हैं। इन पदार्थों के आसानी से मिलते रहने के कारण शुरूआत करने वालों के लिए ऐसा करना काफी आसान और सस्ता होता है।
शराब और अन्य चीज़ों की लत आमतौर पर पुरुषों को लगती है। कुछ समुदायों में महिलाएँ भी इन चीज़ों का सेवन करती हैं पर बहुत ही कम हैं। परन्तु मर्दों के इस ऐश के कारण महिलाएँ कई तरह से इसके परिणाम भुगतती हैं। शराब आदि पर लगाया गया पैसा एकदम नाली में बहने जैसा होता है, इससे लोग अधिक दाम खर्चा करने पर मजबूर हो जाते हैं और इससे उनका घरेलू बोझ, हिंसा, परिवार के विषय लापरवाही और अस्वस्थता बढ़ती हैं। शराब से परिवार में पुरुषों की मृत्यु से महिलाओं को अकेले अपने परिवार की देखभाल करनी पड़ती है।
ऐसा भी संभव है कि लत लगने के कोई अनुवंशिक कारण हैं। कुछ लोगों में व्यसन की कमज़ोरी होती है। परन्तु उपलब्धता, सामाजिक असर, व्यक्तिगत इच्छाएं और हताशा भी व्यसन के बड़े कारण हैं।
भारत में शराब, तम्बाकू, भारतीय भांग और अफीम सबसे आम ज्यादा लत डालने वाले पदार्थ हैं। तम्बाकू और शराब तो सबसे अधिक इस्तेमाल होते हैं, खासकर गॉंवों में। गॉंवों में अफीम और भांग भी बहुत अधिक इस्तेमाल होते हैं परन्तु इनसे बनने वाले दूसरे पदार्थ जैसे हीरोइन (ब्राउन या वाइट शुगर) शहरों की समस्याएं हैं, खासकर कॉलेज जाने वाले युवा पीढी में। भारत में गुटका (पान मसाले के रूप में) हाल ही में मिलना शुरू हुआ है पर यह अभी से एक महारोग बन चुका है।
व्यसन क्या है? कभी कभी पीने और नुकसान करने वाले व्यसन में क्या फर्क है। शराब के विरोध में अभियान में हमें नहीं भूलना चाहिए कि उन सभी लोगों को जो शराब पीते हैं, इसकी लत नहीं लग जाती। सैंकड़ों सालों से बहुत से आदिवासी समुदायों में हल्की शराब आहार का हिस्सा रही है, परन्तु शराब के नशे में धुत होने या हिंसा करने समस्या ज्यादा नहीं रही। फिर हम कब इन आदतों को लत कहने लगते हैं?
सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि व्यसन करने वाले ये उत्पाद और अधिक शुद्ध और तीव्र रूप में मिलने लगे हैं इसलिए ये और भी ज़्यादा नशीले होते हैं। उदाहरण के लिए परम्परागत शराब में रम और विस्की की तुलना में एल्कोहल की मात्रा कम होती थी। ब्राउन शुगर या हीरोइन गांजा की तुलना में अधिक तेज़ और जल्दी असर करने वाले होते हैं। इसलिए इनकी डोज़ कहीं ज़्यादा और जल्दी असर करती है ।
दूसरा, पहले जिस तरह के पारिवारिक और सामुदायिक बंधन कम हो गए हैं और व्यक्तिगत आज़ादी ज़्यादा हो गई है। और अन्त में, शराब के पारिवारिक रूप की जगह अब एक उद्योग बन गया है। इन सब कारणों से व्यसन की समस्या भी बढ़ गई है।
चिकित्सीय रूप से एक व्यक्ति को लत लगने में चार चरण होते हैं।
एक बार लत लग जाने के बाद इससे से मुक्ति पाना काफी मुश्किल होता है। अगर तयशुदा समय पर नशीला पदार्थ न लिया जाए तो इनको कंपकपी, उत्तेजना और अन्य समस्याएँ होती हैं।
लत लगने से मानसिक और शारीरिक परेशानियॉं होती हैं। तम्बाकू भी इसका अपवाद नहीं है। बचाव ही सबसे अच्छा उपाय है, हांलाकि दृढ़ निश्चियी लोग परिवार और समुदाय की मदद से अपने को इसमें से निकाल भी पाते हैं।