शराब कई तरह की होती हैं। इनमें इथाइल एलकोहल यह नशा करने वाला पदार्थ होता है। इसके कई नाम है।
शराब बनाने वाली स्थानीय जगहों से मिलने वाली शराब आमतौर पर विदेशी शराब से सस्ती होती है। इसलिए देसी शराब काफी प्रचलित है। इसका अपना निश्चित बाज़ार है और सरकार भी इसकी बिक्रि से काफी सारा राजस्व कमाती है। गन्ने की फैक्टरियों से निकलने वाला एक फालतू पदार्थ शीरा, इसका प्रमुख कच्चा माल है। स्प्रिट बनाए बिना चीनी की फैक्टरियों का टिके रह पाना संभव नहीं होता। परन्तु यहॉं बनने वाली स्प्रिट में से केवल थोड़ी सी ही देसी शराब में जाती है, बाकी की रसायन उद्योगों में चली जाती है। अब इसको पेट्रोल में डालने का भी प्रस्ताव है, जिससे पेट्रोल थोडा सस्ता होगा यह अच्छी बात है।
गैरकानूनी रूप से बनने वाली शराब स्थानीय लोगों द्वारा गुड़ से बनाई जाती है। अन्य रसायन या बहुत सी चीज़ें इसमें मिला दी जाती हैं जिससे नशा बढे। कई बार इन चीज़ों में मिथाइल एलकोहल जैसे ज़हर भी होते हैं, जिससे मौते होती है।
अंग्रेज़ी ब्रांड की शराब कई एक शराब बनाने की फैक्टरियों से आती है। यह शराब कई एक पदार्थों से बनाई जाती है। यह बनाने के लिये डिस्टिलेशन यानी द्रवशोधन (भाप का द्रव बनाना) का प्रयोग होता है। इसमें क्या कितना डाला जाता है और स्वाद अच्छा करने के लिए क्या डाला जाता है यह सब व्यापारिक रहस्य होता है। पर इन विदेशी शराबों में और कोई हानिकारक रसायन नहीं होते इसलिए ये देसी या गैरकानूनी शराब की तुलना में कम नुकसानदेह हाती हैं। लेकिन लत जरुर लगती है। वाइन और बीयर में ब्रूईंग यानी आसवन का तरीका इस्तेमाल होता है।
इन अलग अलग तरह की शराबों में अलग अलग मात्रा में एल्कोहल होता है। बीयर और वाइन में सबसे कम केवल 7 से 12 प्रतिशत एल्कोहल होता है। इससे ज़्यादा नशा करने वाले ब्रांड हैं विस्की, रम, जिन या ब्रैंडी। इनमें करीब 40 प्रतिशत एल्कोहल और बाकी का पानी होता है। लेकिन अल्कोहोल की मात्रा इसी के साथ पेग की संख्या पर भी निर्भर होती है।
वाईन अंगूर से बनती है। इसके अलावा यह अनाज और मोटे अनाज जैसे जवार, बाजरा, कोदो आदि, गुड़, फल, फूल और पौधों के रसों से बनती है। इस प्रक्रिया में इन चीज़ों को खमीर (यीस्ट) के साथ कई दिनों या हफ्तों तक रख जाता है। इससे किण्वन (फरमेन्टेशन) हो जाता है और शराब बन जाती है। वाइन में 12 प्रतिशत एल्कोहल होता है और बाकी का पानी होता है। बहुत से समुदायों में परिवार के अन्दर घरेलू शराब भूख बढ़ाने के लिए पी जाती है। ऐसे में कभी भी यह बहुत अधिक मात्रा में नहीं ली जाती और इसलिए नुकसान भी नहीं करती। बहुत से आदिवासी समुदायों में आज भी यह रिवाज़ है और इससे ज्यादा कोई नुकसान नहीं होता।
लेकिन देसी शराब की दुकानों ने इस सब को बदल दिया है; जिसके परिणामस्वरूप यहॉं अब शराब के कारण स्वास्थ्य समस्याएं, हिंसा और गरीबी की समस्याएं पैदा हो गई हैं। आजकल घरो में भी द्रवशोधन तरीके से देसी शराब बनाई जाती है, जो भी नुकसानदेह होती है।
कम मात्रा में शराब एक दवाई के रूप में भी काम करती है। इससे भूख बढ़ती है, छाती में कफ आदि का जमाव कम होता है और आराम की नींद आती है। यह आमाशय से आसानी से खून में चली जाती है और कुछ ही मिनटों में असर करने लगती है। इससे त्वचा में गर्माहट आती है। इस कारण से यह ठंडे इलाको में प्रचलित होती है। परन्तु एल्कोहल एक ऐसी दवा है जिसकी लत लग जाती है। शुरूआत में और कम मात्रा में यह नुकसानदेह नहीं होती। परन्तु पारिवारिक और व्यक्तिगत अनुशासन के अभाव से जल्दी ही इसकी आदत पड़ जाती है।
सांस में बू, आँख के तारे का फैल जाना और नशे में लड़खड़ाना पिए हुए होने के चिकित्सीय संकेत हैं। इसके अलावा खून के नमूनों की जांच भी की जाती है। शराब पीकर गाड़ी चलाने की जांच के लिए सांस से पता लगाने वाली खास तरह की किट भी अब उपलब्ध हैं। व्यक्ति से कहा जाता है कि वह इन किटों के अन्दर फूंके और उसी समय नतीज़े पता चल जाते हैं।
शराब पीकर गाड़ी चलाने से बहुत सी सड़कों और फैक्टरियों आदि में रोज़ कई दुर्घटनाएं होती रहती हैं। शराब के नशे में बच्चों और औरतों के ऊपर हिंसा, बलात्कार और हत्याओं आदि भी होती रहती हैं। शराब लोगों की काम करने की क्षमता और इसलिए उत्पादन में भी काफी कमी आती है।
शराब की लत से बहुत से लोगों की असमय मौत हो जाती है। इस तरह से शराब से न केवल शराब पीने वाले व्यक्ति को नुकसान होता है बल्कि परिवार, समाज और देश को भी नुकसान होता है। सृजनात्मक लोगों के लिए शराब एक चेतना बढ़ाने वाले पदार्थ के रूप में काम करती है। परन्तु शराब की लत से बहुत सी गंभीर सामुदायिक स्वास्थ्य समस्याएं हो जाती हैं। इससे गरीबों और अमीरों दोनों को नुकसान होता है।