रक्त दान |
हमारे शरीर में पॉंच लिटर खून होता है |
भारतीय व्यस्क में औसतन ५ लिटर खून होता है। हर सामान्य स्वस्थ व्यक्ति को रक्तदान करने के लिए उत्साहित करना चाहिए। ये एक सबसे अच्छा और आसान तौहफा है जो हम सब एक दूसरे को दे सकते हैं। जब कोई व्यक्ति खून का दान करता है तो उसके शरीर से केवल ३०० मिली खून (खून के कुल आयतन का केवल ५ से ७ प्रतिशत) ही निकाला जाता है।
किसी बड़ी शल्य चिकित्सा (आपरेशन), बच्चे के जन्म के समय निकलने वाले खून, दुर्घटनाओं, वाईपर सांप के काटने पर, गंभीर अनीमिया के समय और संक्रमण लगने पर खून की ज़रूरत होती है। खून के दान से अक्सर जान बचाई जा सकती है। परन्तु खून लेते या देते समय कुछ सावधानियॉं बरतना ज़रूरी होता है। खून देने वाला व्यक्ति स्वस्थ होना चाहिए। जिन लोगों को अनीमिया हो या हैपेटाईटिस (यकृत शोथ) या टायफॉएड जैसी संक्रमण हो उन्होने खून नहीं देना चाहिए। अनीमिया के रोगी का खून बेकार होता है और संक्रमण वाला खून उस व्यक्ति के लिए नुक्सानदेह होता है जिसे वो दिया जाता है। परन्तु असली डर एडस और हैपेटाईटिस का होता है। किसी व्यक्ति को खून चढ़ाने से पहले खून देने वाले व्यक्ति के खून की जांच बड़ी सावधानी से की जाती है। खासकर यह जांच ज़रूरी है कि कहीं खून देने वाले व्यक्ति को एडस या ऐसी कोई बीमारी तो नहीं है।
रक्त दान |
हर बार खून देने के लिए एचआईवी (यानि एडस) के वायरस के लिए टैस्ट करना ज़रूरी है। टैस्ट का नतीजा आने में करीब ४८ घंटों का समय लगता है। परन्तु अब जल्दी से टैस्ट करने वाली किट भी उपलब्ध हैं। ये किट करीब ८० से १०० रुपये की होती है। और इससे १० से १५ मिनट में नतीजा आ जाता है। परन्तु दुर्भाग्य से इससे “विंडो पीरियड’ याने अव्यक्त काल में एचआईवी को पकड़ पाना संभव नहीं होता।
खून दिए जाने से हैपेटाईटिस (बी प्रकार का) फैलने का भी काफी खतरा होता है। मलेरिया और हैपेटाइटिस सी ऐसे अन्य संक्रमण हैं जो रक्तदाता से आगे फैल सकते हैं।
हांलाकि ऐसी घटनाएं कम ही होती हैं जब किसी को गलत वर्ग का खून चढ़ा दिया जाए। परन्तु अगर कभी ऐसा हो जाए तो इससे मृत्यु हो जाती है। अगर हम सतर्क हों तो ऐसी घटनाएं आसानी से रोकी जा सकती हैं। अगर किसी को गलत वर्ग का खून दिया जाए तो सबसे पहले उसे ठंड लगना व कंपकंपी, बेचैनी, मितली और उल्टी आनी शुरु हो जाएगी। इससे छाती और पीठ में (गुर्दे के क्षेत्र में) दर्द भी होगा। नाड़ी और सांस की गति में तेज़ी आ जाएगी। और खून की मात्रा में कमी आ जाने के कारण खून के दवाब में कमी आ जाएगी। पेशाब लाल हो जाएगा और जल्दी ही खून की बेकार हुई कोशिकाओं के टुकडे के कारण गुर्दे काम करना बंद कर देंगे। दिल के रुकने या गुर्दों के काम करना बंद करने के कारण मौत हो जाती है। अगर कभी रोगी गलत वर्ग का खून दिए जाने के बावजूद बच जाता है (ऐसा जल्दी निदान और इलाज से हो पाता है) तो उसे अलग अलग समय तक पीलिया रहता है। दिया गया खून धीरे धीरे करके शरीर से निकल जाता है और पूरी तरह ठीक होने में करीब एक महीना तक लग सकता है।
हम यह देखते है की कोई भी बडे अस्पताल में हमेशा खून की कमी रहती है| आपतकालीन परिस्थितीयों में जिन मरीजों को खून चढाने की जरुरत है, उनके परिवार वाले रक्तदान करने से इन्कार करते है| कभी ही ऐसा होता है की कोई परिवार वाले तुरन्त राजी हो जाएँ, ऐसा आखिर क्यो होता है?
अधिकांश लोगों का सोचना है की खून देने के बाद शरीर हमेशा के लिए कमजोर हो जाएगा और वे पहले जैसे परिश्रम नही कर पाएँगे| कुछ लोगों का यह भी सोचना है की पुरुष अगर रक्तदान करे तो उनमें नामर्दी हो जाएगी| यह सब जानकारी से अभाव के कारण है|
आपके गॉव वालों से पुछे की रक्तदान के विषय में उनका क्या सोच और क्या डर है? उन्हे समझाएँ की खून के कण वैसे भी हर चार माह में नष्ट होकर नए बनते है| अत: रक्तदान के बाद भी शरीर में पुन: खून तैयार होगा और रक्तदाता के वजन और खून की मात्रा के जॉंच के बाद अगर वह स्वस्थ्य है तब ही खून लिया जाता है|
आपके गॉव में या पंचायत में रक्तदाता समूह बनाने के लिए युवकों को प्रोत्साहित करें|