कई वायरस से होने वाली बीमारियों जैसे कि डेंगू बुखार में कई जगहों की गाठों में सूजन हो जाती है। इनमें इतना दर्द नहीं होता जितना कि पीप वाली गिल्टियों में होता है। इन गाठों में दबाने से दर्द होता है और यह कुछ दिनों तक रहती हैं।
तपेदिक के बैक्टीरिया से टॉन्सिल या गले की छूत से गले की ग्रंथियों में गांठें बन सकती हैं। ऐसा माना जाता है कि यह बीमारी खास आम नहीं है पर यह सही नहीं हैं। यह असल में प्राथमिक तपेदिक है जिसमें लसिका गांठों में सूजन हो जाती है (इसके लिए सांस की बीमारियों वाला अध्याय देखें)। इस बीमारी में तपेदिक के कारण गले की लिंफ गांठों में प्रज्वलन हो जाती है। इस बीमारी को सरवाइकल (गर्दन का) तपेदिक लिमफेडेनाइटिस कहते हैं। यह गर्दन की लसिका गांठों में दर्द रहित पर बढ़ती हुई सूजन से शुरु होता है। आम तौर पर शुरुआत में गर्दन में एक या दो गांठें हो जाती हैं। यह या तो कुछ हफ्तों में बिना इलाज के ठीक हो सकती हैं या फिर ज़्यादा बिगड़ सकती हैं।
दूसरी स्थिति में और अधिक ग्रंथियों पर असर हो जाता है। जल्दी ही वो सब आपस में जुड़ जाती हैं। प्रज्वलन कुछ हफ्तों या महीनों में फैलता है। आखिर में गिल्टियों में से पीप निकलने लगती है। यह तकलीफ भी उसी तरह ठीक होती है जैसे कोई और घाव भरता है। हांलाकि इसके ठीक होने में कहीं ज़्यादा समय लगता है – कुछ हफ्ते या महीने। ठीक होने की प्रक्रिया में ज़ख्म के निशान बन जाते हैं।
गिल्टियों में से निकली पीप में तपेदिक के कीटाणु मिलते हैं। तपेदिक के दवाओं के छोटे से कोर्स से यह बीमारी ठीक हो जाती है। रोगी को स्वास्थ्य केन्द्र भेजें।
स्तन संक्रमण या कॅन्सर की गिल्टियॉं बगल में निकलती है |
लसिका ग्रंथियॉं कई बार कैंसर से प्रभावित हो जाती हैं। आम तौर पर यह दूसरी अवस्था होती है, यानि कैंसर दूसरे अंगों से यहॉं पहुँचता है। कभी कभी खुद लसिका तंत्र का कैंसर भी होता है। लसिका कोशिकाओं में होने वाला कैंसर कई तरह का होता है। पर इसका सबसे आम रुप है हौजकिन्स रोग। जिन लसिका ग्रंथियों में दूसरे अंगों से कैंसर पहुँचता है वो पत्थर जैसा सख्त हो जाती हैं (हौजकिन्स रोग) एक अपवाद है जिसमें ग्रंथियॉं थोड़ी सख्त सी हो जाती हैं पर सख्त नहीं होतीं। ग्रंथियों का पत्थर जैसा सख्त हो जाना कैंसर का स्पष्ट लक्षण है।
गिल्टियों की जगह |
किन अंगों में |
वंक्षण में (वंक्षण) |
पैर, पुरुष जनन अंग, औरतों में भग |
बगलों में (कक्षा) |
छाती, बाहें और गला |
गर्दन |
गला, टॉन्सिल, स्वरयंत्र, अवटु |
थोड्डी |
मुँह और जीभ |
जत्रुक (हंसली की हड्डी) के ऊपर |
पेट |
गर्दन के सिरे पर |
खोपड़ी की त्वचा |
छाती के बीच की जगह |
फेफड़े और श्वास नली |
पेट में |
आमाशय, लिवर, आंतें, तिल्ली, गर्भाशय, पुरस्थ, डिम्बग्रंथि, गुर्दे, |
इनमें सबसे आम हौजकिन्स रोग है। इस रोग में शरीर के कई अंगों में स्थित लसिका ग्रंथियों में दर्दरहित सूजन हो जाती है। बीमारी बढ़ती जाती है और इससे मृत्यु हो सकती है। आम तौर पर एक साथ ही कई सारी जगह की ग्रंथियों पर असर हुआ होता है।
ग्रंथियों तक दो तरह से पहुँचता है।
छाती का कैंसर सीधे सीधे ग्रंथियों तक पहुँच जाता है। मुँह का कैंसर भी गले की लसिका ग्रंथियों तक पहुँच जाता है। लेकिन कैंसर फैलने की प्रक्रियॉ हफतो -महिनों में चलती है। जब कैंसर में दूर की लसिका ग्रंथियों पर असर हो जाए तो इसका अर्थ है कि स्थिति गंभीर है। आमतौर पर यह अवस्था आने के बाद कैंसर से कुछ महिनों वर्षो बाद मौत हो जाती है। ऊपर की तालिका में यह बताया गया है कि किस अंग के कैंसर से किस जगह की ग्रंथियों पर असर होगा।