१०००० फीट से अधिक ऊँचाई पर हवा का घनत्व बहुत कम होता है और ऑक्सीजन भी कम होती है। इससे थोड़ी या अधिक बीमारी हो सकती है।
यह ऊँचाई पर पहुँचने के बाद पहले दिन से या ३ से ४ दिनों के बाद शुरु होती है। इसमें सिर के अगले और कानपटीवाले हिस्सों में फटने जैसा दर्द होता है। कभी कभी यह आराम करने से ठीक हो जाता है और बाहर निकलने से बढ़ सकता है। कई बार यह घंटों तक होता रहता है। इसके साथ नींद न आना, उल्टी, सांस फूलने आदि की तकलीफ भी हो सकती है। इसके लिए सबसे आसान इलाज आराम करना और ऐस्परीन लेना है। ज़्यादातर लोग कुछ दिनों में ठीक हो जाते हैं। २-४ दिनोंमें शरीर को कम ऑक्सीजन में रहने की आदत पड़ जाती है।
इसे ऊँचाई से होने वाला ऐडीमा कहते हैं। यह ऊँचाई पर पहुँचे नए लोगों को या फिर अचानक ऊँचाई पर चढ़ जाने पर होता है। इसमें छाती में जमाव हो जाता है जिससे सांस लेने में परेशानी, कफ के साथ खॉंसी और धड़कन बढ़ने की शिकायत होती है। लक्षणों को विकसित होने में एक हफ्ते तक का समय लगता है।
इलाज में बीमार व्यक्ति को निचाई पर वापस ले जाना, ऑक्सीजन देना और फ्यूरोसेमाइड के इंन्जैक्शन देना शामिल है। अगर ऑक्सीजन उपलब्ध न हो तो निफेडिपिन का एक कैप्सूल दिया जा सकता है। जो भी संभव हो करें और बीमार व्यक्ति को जल्दी से जल्दी अस्पताल पहुँचाएं।
उँचाई का असर २७०० मीटर यानी लगभग ८००० फीटपर शुरु होता है। यहॉं ऑक्सिजन की कमी, हवा का कम दबाव, और ठंड इन तीनोंका दुष्प्रभाव होता है। अल्ट्राव्हायोलेट याने अतिनील किरण भी यहॉं ज्यादा मात्रा में होते है। इससे चमडीपर असर होते है। लेकिन उँचाई का प्रमुख दुष्प्रभाव ऑक्सिजन के कमी से होता है।
५५०० मीटर याने लगभग १४००० फीट के उपर ये दुष्प्रभाव और गहरे हो सकते है। शरीर उँचाईको धीरे धीरे सह लेता है, और इसके लिये शरीर में कुछ बदलाव हो जाते है। लेकिन इसलिये कुछ दिन समय देना पडता है।