Accidents दुर्घटनाएं और प्राथमिक उपचार
बिच्छू का डंक

दुनियॉं में बिच्छू के करीबन एक हजार प्रजातियॉं है। इसमें सिर्फ भारत में ८६ प्रजातियॉं है। बिच्छू का विष सांप के विष से ज़्यादा ज़हरीला होता है। परन्तु बिच्छू के काटने से बहुत थोड़ा सा ही ज़हर अंदर जाता है। काले बिच्छू के ज़हर खासकर तंत्रिका तंत्र और दिल पर असर डालता है। लाल बिच्छू ज़्यादा ज़हरीले और जानलेवा होते हैं। भारत में लगभग सभी प्रांतों में लाल बिच्छू पाये जाते है लेकिन काले बिच्छू केरल में ज्यादा पाये जाते है।
एप्रिल से जून तक याने गरमी के मौसम में बिच्छू ज्यादा होते है, क्योंकी वह अपने छिपनेकी जगहसे बाहर आतेहै। छत से नीचे भी गिरते है। गर्मी में उनका जहर ज्यादा घातक होता है। खेतो में खलियानों में कच्चे पर या झोपडी में इनका ज्यादा प्रचलन है।

काले बिच्छू डंक के लक्षण

बिच्छू के काटने से सबसे पहले उस जगह पर बहुत तेज़ दर्द होता है। दर्द कुछ घंटों तक चलता है। पसीना भी आ सकता है। दर्द बहुत ही ज़ोर का होता है। बार बार बिच्छू के काटने से उस व्यक्तीमें प्रतिरक्षा पैदा हो जाती है। इस कारण से बाद वाली बार में दर्द कम होता है।

इलाज

अकसर बिच्छू के काटने पर डंक की जगह से थोड़ी दूर पर एक धागा कसकर बांध दिया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि ऐसा करने से पैर या हाथ में ज़हर नहीं फैलता। परन्तु इस तरीके से कोई फायदा नहीं होता। डंक वाली जगह पर लिग्नोकैन का इंजैक्शन लगाने से करीब आधे घंटे के लिए आराम होता है इसके बाद दर्द फिर से वापस आ जाता है। डंक के जगह पर नाइट्रोग्लिसरीन मल्हम लगाने से फायदा होता है। अंग के फ्रैक्चर की तरह स्थिर रखें| कुछ जनजातियों में उस जगह पर सेंजने की पेड की गीली गोंद लगाने का रिवाज़ है। इससे कुछ फायदा भी होता है। सेंजने की फलियॉं दो प्रकार की होती हैं, मीठी और कड़वी। बिच्छू के काटने में कड़वी वाली पेडका गोंद उपयोगी होता हैं। ऐसा गोंद घरमें तैयार रखना फायदेमंद होगा।

ज्यादा खरतनाक लाल बिच्छू
Red Scorpion
लाल बिच्छू का विष जान लेवा हो सकता है

लाल बिच्छुओं का डंक दर्दनाक होने के साथ जानलेवा हो सकता है। इससे बहुत अधिक सूजन और दिल के कमज़ोर पड़ने के कारण फेफड़ों में रक्तस्त्राव हो जाता है। लक्षणों में उल्टी आना, पसीना आना और खॉंसी के साथ खून आना शामिल हैं। ये सब बिच्छू के काटने के चंद मिनटो बाद होता है। इसके साथ नाडी धीमी गतिसे चलती है रक्तचाप भी कम होता है। छाती में दर्द होता है और मुँह में पानी आता है। यह सभी परिणाम स्वयंचलित तंत्रिका तंत्र प्रभावित होने से आते है।
लाल बिच्छू के डंक से दो तरह के परिणाम होते है। डंक के जगह तीव्र दर्द होता ह, यह तुरंत शुरू होता है और घंटोतक रहता है लेकिन ज्यादा खतरनाक समस्या इस जहरके स्वयंचलित तंत्रिका प्रभावसे होती है। हम शायद जानते है शरीर में स्वयंचलित तंत्रिका तंत्र होता है, जो शरीर के अंदरुनी काम चलाता है, जैसे की पाचन, श्वसन, रक्त संचारण आदि। यौन क्रिया की उत्तेजना, नींद, कसरत खेल के समय की डर, पलायन, गुस्सा आदि उत्तेजना भी इसीसे होती है। लाल बिच्छू का इसपर प्रभाव दो चरण में होता ह। पहिले चरणमें उल्टी, दस्त, मुँह में पानी, आँखकी पुतली फैलना, दिलकी गती धीमी होना, रक्तचाप उतरना आदि प्रभाव होते है। यह चरण दो घंटोंसे १२ घंटो तक कभीकभी आ सकता है। दूसरे चरण पहिला चरण खत्म होनेपर शुरु होता है। इसमें रक्तचाप बढता है, खॉंसी आती है, खॉंसीमें खून गिरता है, हाथपैर ठंडे महसूस होते है। कुल ४-३६ घंटोंमें सॉंस तेज होना, सॉंस लेना मुश्किल होना, खॉंसी आदि प्रभाव दिखाई देते है।

काले बिच्छुओं के डंक का इलाज

हमें इस तरह के बिच्छुओं के काटने पर भी व्यक्ति को बचा सकते हैं। भारत के डॉक्टरों द्वारा किए गए शोध की बदौलत अब इसके इलाज के लिए दवाएं उपलब्ध हैं। छाती में दर्द होना बंद होने तक प्राज़ोसिन दवा हर चार घंटों के बाद देनी चाहिए। बच्चों में प्राज़ोसिन की गोली (जो कि १ और २ मिली ग्राम की होती है) उसी समय देनी चाहिए जब सांस लेने में मुश्किल होने लगे या फिर शरीर नीला पड़ने लगे। उसके बाद बच्चे को तुरंत अस्पताल पहुँचाना चाहिए। यह गोली बडों में भी दी जा सकती है|
अगर यह दवा उपलब्ध न हो तो एक कैपसूल (५ मि.ग्रा.) निफेडिपिन देना चाहिए। आहत व्यक्ति से कहें कि वो कैपसूल को जीभ के नीचे रखे। यह दवा उच्च रक्त चाप कम करने के लिए भी लिया जाता है। यह १५ मिनट में काम करना शुरु कर देती है, जिससे बिच्छू के काटने का असर कम होने लगता है।
ये गोलियॉं (प्राज़ोसन या निफेडिपिन) केवल तभी इस्तेमाल की जानी चाहिए जब बिच्छू के काटने में फेफड़ों में खून आने लगे। इनका इस्तेमाल तब नहीं करना चाहिए जब डंक से केवल दर्द हो रहा है। डंक कोई भी हो, प्रथमोपचार के बाद तुरंत अस्पताल में भर्ती करना जरुरी है।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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