क्वाशिओरकोर और सूखारोग बचपन में होने वाले कुपोषण के दो बेहद गंभीर रूप हैं। आजकल ये कम पाये जाते है। सूखारोग में बच्चों में खास तरह से झुर्रियॉं पड़ने लगती हैं और वो बूढ़ा जैसा दिखने लगता है। क्वाशिओरकोर में बच्चे में सूजन आ जाती है और यह ज़्यादा खतरनाक होता है क्योंकि
सही पोषण देने और चल रही बीमारी को ठीक कर देना दोनों ही उपचार के दो महत्वपूर्ण उद्देश्य हैं।
क्र. | क्वाशिओरकोर (ब्लोटिड बच्चा) | सूखारोग (वेस्टिड बच्चा) |
०१ | भोजन के बीच अंतराल होने से शरीर के प्रोटीन इस्तेमाल हो जाते हैं। इससे शरीर में पानी इकट्ठा होने से सूजन आ जाती है। बालों का रंग हल्का पड़ जाता है और वो आसानी से टूटने लगते हैं। |
भोजन के बीच अंतराल होने से शरीर के अंदर की वसा का इस्तेमाल हो जाता है जिससे शरीर दुबला पतला होने लगता है और त्वचा लटक जाती है (जिससे झुर्रियॉं पड़ जाती हैं)। हाथ पैरों भी बेकार होने लगते हैं। |
०२ | आँखें पीली पड़ने लगती हैं और भारी हो जाती हैं। बच्चा निष्क्रिय हो जाता है। और खेलने कूदने से टाल देता है। |
आँखों की चमक बरकरार रहती है और बच्चा ध्यान भी लगाता है। |
०३ | बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है और बहुत रोता है। उसे भूख नहीं लगती। इसलिए उसे खाना खिलाना मुश्किल होता है। |
भूख लगती रहती है, इसलिए ठीक होना ज़्यादा आसान होता है। |
०४ | त्वचा का रंग उड़ जाता है और उस पर जगह जगह संक्रमण हो जाता है। इसके कमज़ोर पड़ जाने के कारण इसमें से कभी कभी कतरे भी निकलने लगते हैं। |
त्वचा में झुर्रियॉं पड़ जाती हैं पर इसके अलावा त्वचा सामान्य ही रहती है। |
०५ | पैरों के ऊपरी भाग दुबलेपतले लगते हैं और निचले भाग में सूजन होती हैं। | हाथ पैर दुबलेपतले लगते हैं, पर सूजन या एडीमा नहीं होता। |
अंगनबाडी में खाना बनाकर ताजा परोसना अच्छा रहेगा |
एक सही नियम है हर दो घंटों के बाद थोड़ी थोड़ी मात्रा में कुछ खिलाना। दाल – चावल, अंडा, दूध, फलों का गूदा, अनाज से बना दलिया, दालें और मूँगफली आदि उपयोगी आहार हैं। यह याद रखें कि कुपोषित बच्चे का पाचन तंत्र वैसे ही कमज़ोर होता है।
विटामिन ए, बी, सी, डी युक्त चीज़ें आहार में ज़रूर होनी चाहिए। अन्यथा दवा के रूप में विटामिन अलग से दें। पोषण बेहतर हो तब बच्चा कुपोषण और अन्य बीमारियों दोनों से जल्दी मुक्त हो जाता है। क्वाशिओरकोर में ठीक होने की शुरुआत में एडीमा कम होने के कारण वजन घटता है पर बाद में वजन फिर बढ़ने लगता है। आमतौर पर वजन बढ़ना पोषण में सुधार का चिन्ह होता है।
पोषण में सुधार से ही कुपोषण ठीक हो सकता है। ऐसा आहार देने की ज़रूरत होती है जिसमें उर्जा और प्रोटीन काफी हो और जो आसानी से पच सकता है। ऐसा एक आहार है- ८० ग्राम (८ चम्मच) बिना मलाई के दूध का चूर्ण, ६० ग्राम (७ चम्मच) खाने का तेल, ५० ग्राम (५ चम्मच) चीनी लें। इन तीनों को मिला लें। इस मिश्रण से बच्चे को खिलाने के लिए आहार बन सकता है। यह मिश्रण एक महीने तक चल सकता है। बच्चे को खिलाने के लिए आधा लिटर उबला और पका हुआ पानी लें। इसमें ७ चम्मच मिश्रण डालें। यह आहार बहुत ही पोषक होता है और आसानी से पच जाता है। इसे बच्चे को देने के लिए बोतल का इस्तेमाल न करें। कटोरी चम्मच में लेकर थोड़ी थोड़ी मात्रा में इसे खिलाएं। बच्चे के वजन के प्रति किलो के लिए १५० मिलीलीटर घोल पूरे दिन के लए काफी रहता है। पर क्वाशिओरकोर के शिकार बच्चों में शुरुआत १०० मिलीलीटर से कम मात्रा से करें। जब तक एडीमा ठीक न हो जाए तब तक मात्रा इतनी ही बनाए रखें। इस लिए एक ७ किलो के बच्चे को पूरे दिन में करीब १ लिटर आहार थोड़ी थोड़ी मात्रा में देना काफी रहता है। सारा आहार एक बार में न बनाएं, क्योंकि द्रवीय अवस्था में यह आहार जल्दी खराब हो जाता है। एक बार में एक या दो बार का आहार तैयार करें।
यह एक स्वादिष्ट पदार्थ है, जिससे बच्चे को अधिक मात्रा में ऊर्जा और प्रोटीन मिले, और यह आसानी से पचता भी है। तैयारी १०० मि.ली गाय या भैंस की दूध-
१० ग्राम (२ चम्मच) आटा (गेहूँ का या चावल का)
१० ग्राम (२ चम्मच) शक्कर
५ ग्राम (१ चम्मच) तेल
बनाने का तरीका – आटा और शक्कर को दूध में मिलाकर उबाल ले। उबालते समय घोल को चम्मच से चलाते रहे, आटा पकने के बाद आग से उतार कर उसमें १ चम्मच तेल मिलाएँ। इस से ३.५० ग्रा. प्रोटीन और १९० कैलोरी ऊर्जा मिलेगी। (१०० मिली. दूध से लगभग ६७ कैलोरी प्राप्त होता है)
कैसे दे? १०० मि.ली घोल प्रति किलो प्रति दिन की हिसाब से दिन भर में ५-६ बार बॉंट कर दे। ४-५ दिनों में बच्चे की भूख बढेगी और वह खुद खाना चाहेगा। अब उसे प्रति दिन प्रति किलो ३ ग्राम प्रोटीन और २०० कैलोरी ऊर्जा के हिसाब से खिलाएँ।