बुखार आमतौर पर कीटाणुओं के संक्रमण से होता है। कुछ संक्रमणों में सफेद रक्त कोशिकाओं के साथ सम्पर्क से बुखार करने वाले पदार्थ पैदा होते हैं। ये पदार्थ मस्तिष्क के तापमान केन्द्र को प्रभावित करते हैं और इससे बुखार हो जाता है।
अगर मस्तिष्क के इस केन्द्र पर कोई चोट लग जाए तो इससे भी बुखार हो जाता है। परन्तु ऐसा बहुत कम ही होता है। लू लगने से भी बुखार हो जाता है, यह छूत/संक्रमण के बिना बुखार होने का एक उदाहरण है। ये आमतौर पर गर्मियों में बच्चों को होता है। याद रखें कि ज़्यादातर मामलों में बुखार संक्रमण का सूचक है।
बुखार सबसे जादा पायी जानेवाली स्वास्थ्य समस्या है। बुखार मूलत: सूक्ष्म जीव संक्रमण से जुडी शरीर की प्रतिरक्षा प्रक्रिया है। आमतौर पर बुखार एक सामान्य और मर्यादित लक्षण होता है, सिवाय कुछ गंभीर रोग छोड के। कभी कभी बुखार की समस्या जानपदिक याने सामूहिक होती है जैसे की मलेरिया, फ्लू या डेंग्यू आदि।
बुखार नापने के लिये डिजिटल या पारद थर्मामिटर इस्तेमाल करते है। इसे मुँह में एक मिनिट तक रखे। जादा बुखार चलने पर मस्तिष्क पर बुरे असर संभव है। ये जानलेवा भी हो सकता है। इस सारी जानकारी के सहित आप सही समय सही निर्णय ले सकेंगे। इससे घबराहट या असुविधा हम टाल सकेंगे।
बुखार के कई प्रकार – निरंतर, कम ज्यादा होने वाला, बीच बीच में आनेवाला आदी |
जब भी बुखार हो तो ध्यान दें कि वो कितने डिग्री है और उसकी प्रकृति कैसी है। इन दोनों के आधार पर बुखार को कुछ श्रेणियों में बॉंटा जाता है। बुखार की डिग्री के आधार पर उसे कम, मध्यम का और तेज़ की श्रेणियों में बॉंटा जाता है। उदाहरण के लिए ९९ से १०० डिग्री फॉरेनहाईट तक के बुखार को कम बुखार, १०० से १०३ डिग्री फॉरेनहाईट तक को मध्य दर्जे का और १०३ डिग्री से ज़्यादा को तेज़ बुखार कहा जाता है। ये श्रेणियॉं बगल में थर्मामीटर रखकर नापने के आधार पर है। मुँह में थर्मामीटर रखकर नापने पर तापमान एक डिग्री ज़्यादा आता है। बुखार की प्रकृति के अनुसार इसकी बहुत सारी उप श्रेणियॉं हैं। इससे अक्सर होने वाली बीमारियों का निदान करने में मदद मिलेगी। बुखार के प्रकार के बारे में जानकारी नीचे दी गई है।
इसमें ठंड लगने के कारण कंपकंपी आती है। कंपकंपी याने मांसपेशियोंमें तेज और लगातार क्रिया होना, जिससे शरीरमें गर्मी पैदा होती है। यह बुखार मलेरिया, पीपवाला संक्रमण, मूत्र मार्ग संक्रमण आदिमें होता है। कंपकंपी १-२ घंटोंमें रुक जाती है। ज्यादातर यह बुखार २-३ घंटोंमें कम होकर तापमान सामान्य होता है।
कुछ किस्म के बुखार दिनरात लगातार चलते है। टायफॉईड (मोतीझरा) इसका एक उदाहरण है। फ्लू आदि बीबारे में ऐसाही बुखार होता है। उतार चढाव के बुखार में दिन में १-२ बार बुखार चढता है और कुछ घंटोंके बाद अंशत: या पूर्णतया उतर जाता है। टीबी याने तपेदिक का बुखार सिर्फ शाम को आता है और सुबह तक उतर जाता है। लेप्टोस्पायरॉसिस वाला बुखार उतरता है, लेकिन पूर्ण रुप से सामान्य नही होता है। इसको हम कम जादा होनेवाला बुखार कह सकते है।
चिरकारी का अर्थ होता है लम्बे समय तक चलने वाला। चिरकारी बुखार हफ्तों महीनों तक चलता है। और ये चिरकारी बीमारियों जैसे तपेदिक में होता है। इसके अलावा कई बीमारियों (जैसे तीव्र मलेरिया में) इलाज न होने से भी चिरकारी बुखार हो जाता है। एड्स इसका एक और कारण है। चिरकारी बुखार अक्सर काफी हल्का ही होता है।
रुक-रुक कर होने वाला बुखार बार-बार बढ़ जाता है और फिर सामान्य हो जाता है। ये रोज़ हो सकता है या फिर उससे ज़्यादा अवधि में हो सकता है। पेशाब के रास्ते में संक्रमण, मलेरिया, गले में खराश और फाईलेरिया रोग इसके आम उदाहरण हैं। मलेरिया में बुखार के साथ ठण्ड लगती है और कम्पकपी होती है। मलेरिया का बुखार अक्सर एक दिन छोड़कर होता है।
लगातार रहने वाला बुखार बीमारी के साथ लगातार चलता है और इसमें एक डिग्री फॉरेनहाइट से ज़्यादा का अन्तर कभी नहीं होता। मोतीझरा (टॉयफाइड), मस्तिष्कावरण शोथ और प्रमस्तिष्क के मलेरिया में इस तरह का बुखार होता है।
अँतरिया में एक डिग्री फॉरेनहाइट से ज़्यादा की कमी बढ़ोत्तरी होती रहती है। परन्तु पूरे दिन में यह कभी सामान्य नहीं हो पाता। बुखार बहुत से लगातार रहने वाले की प्रकृति भी अँतरिया बुखार जैसी होती है।