दांन्तिकी या दंन्तचिकित्सा (जिसमें दाँत, मसूड़े और मुँह के अन्य भाग आते हैं) एक अलग चिकित्साशास्त्र का एक अलग भाग है। हम सभी को अपनी किशोरावस्था, मध्यम उम्र और वृद्धावस्था में दाँतों के लिए सेवा की ज़रूरत होती है। दाँतों की देखभाल की ज़रूरत के हिसाब से इसके लिए उपलब्ध सुविधाओं की बेहद कमी है। गांवों में तो दाँतों के लिए चिकित्सा सुविधाएं एकदम नदारद हैं।
दाँतों का खराब हो जाना, दाँतों पर टार्टर जमा हो जाना, मसूड़ों में खराबी होना और दाँतों का गिर जाना सभी बेहद आम हैं। स्वास्थ्य कार्यकर्ता दाँतों के प्राथमिक उपचार के लिए काफी कुछ कर सकते हैं। स्वास्थ्य कार्यकर्ता दाँतों की दंखभाल के तरीके जैसे दाँतों में छेदों को भरने के अस्थाई तरीके, टार्टर खुरच कर निकालने के तरीके व हिल रहे दाँतों को निकालने के तरीके सीख सकते हैं। वो लोगों को मुँह को साफ और स्वस्थ रखने के बारे में व बूढ़े लोगों को नकली दाँत लगाने के बारे में सलाह दे सकते हैं। इस अध्याय में हम दाँतों की देखभाल के बारे में कुछ जानकारी हासिल करेंगे। परन्तु हमें ये तकनीक सीखने के लिए दाँतों के विशेषज्ञ की सहायता लेनी पड़ेगी।
नेत्रश्लेष्मा एक पतली सी झिल्ली होती है। यह नेत्रगोल के दर्शनीय हिस्से (काले वाले हिस्से को छोड़कर, जो कॉर्निया से ढॅंका होता है) व पलकों को ढॅंके रहती है। इस झिल्ली में खूब सारी खून की शिराएँ होती हैं। अगर इस झिल्ली में किसी तरह का शोथ हो जाए तो ये शिराएँ साफ साफ दिखाई देने लगती हैं। आँसू इस झिल्ली को गीला और साफ रखते हैं। आँखों के किरकिराने में भी यही झिल्ली प्रभावित हो रही होती है।
दाँतों के काटने वाले क्षेत्र को देखें – यह अलग अलग दाँत में अलग अलग होता है। क्योंकि ये दाँत अलग अलग काम करते हैं। आगे वाले दाँतों के किनारे सपाट होते हैं – ठीक कुल्हाड़ी जैसे – क्योंकि ये दाँत काटने व कुतरने के लिए इस्तेमाल होते हैं। रदनक दाँत नुकीले होते हैं क्योंकि ये चीरने व काटने के लिए इस्तेमाल होते हैं। दाढ के दाँत चबाने के लिए इस्तेमाल होते हैं इसलिए इनकी सतह उबड़खाबड़ होती है। ये सख्त चीज़ों को भी तोड़ सकते हैं। मुँह के कोण से मिले होने के कारण व बड़ी सतह होने के कारण ये दाँत सुपारी आदि तोड़ने के औजार (सरौते) जैसे काम करते हैं। हर दाँत की पॉंच सतह हाती हैं जिन्हें साफ किया जाना ज़रूरी होता है – ये हैं अंदरूनी, बाहरी, दो बाजूवाली, एक नीचेवाली या ऊपरी। इससे हमें पता चलता है कि हमें दाँत कैसे साफ करने चाहिए।
हम एक आरी से गिरे हुए दाँत को काट कर इसकी बनावट देख सकते हैं। आड़ी व खड़ी दोनों काटें और देखें। बाहर की सख्त सतह जिसे काटने में भी दिक्कत हुई होगी, दंतवल्क (इनेमल) कहलाती है। दूध के दाँतों का इनेमल काफी नाज़ुक होता है। बैक्टीरिया दूध के दाँतों के इनेमल आसानी से खराब कर सकते हैं।
इनेमल के नीचे दाँत का प्रमुख भाग होता है, जो कि डेन्टाइन कहलाता है। और अंदर एक गुफा होती है। इसे गुफा में मगज, खून की वाहिकांएं और तंत्रिकाएं होती हैं जो कि जड़ के रास्ते दंात तक पहुँचती हैं। इसी तरह दाँत को संवेदना और खून मिलता है। अत: दाँत की गुफा में हुआ पीप जड़ के रास्ते जबड़े की हड्डी तक पहुँच सकता है।
हम सभी जानते हैं कि दाँत दो बार में निकलते हैं। दूध के दाँत जन्म के छठे महीने से निकलने शुरू होते हैं। २४ से ३० वें महीने तक सभी दूध के दाँत निकल चुके होते हैं। ये दाँत ६ से ७ साल तक रहते हैं। इनमें से सामने के दाँत ७ से ९ साल की उम्र में गिरने शुरू होने लगते हैं। यह अवधि अलग अलग होती है। दूध के दाँतों की संख्या २० होती है जबकि वयस्कों में दातों की संख्या ३२ होती है। लेकिन इसमें २-४ दात या तो देर से आते है या आते भी नही।
कुछ बच्चों में दूध के दाँत निकलने के समय बच्चों में दस्त की समस्या हो जाती है। यह साफ नहीं है कि ऐसा क्यों होता है। शायद दाँत निकलने के स्थान पर खुजली आदि के कारण बच्चे की हर चीज़ मुँह में डालने की इच्छा होती है। ऐसा करने पर उसे संक्रमण हो जाता है। पर ऐसा पक्की तौर पर नहीं कहा जा सकता क्योंकि अक्सर दॉंत उगते ही कुछ ही घंटों में ये समस्या शुरू हो जाती है और इतना कम समय जीवाणुओं के बढ़ने के लिए काफी नहीं है। इसलिए ऐसे दस्त होने के कुछ और कारण हैं जिनका हमें पता नहीं है।
बड़ी उम्र में निकलने वाले दाँतों की तुलना में दूध के दाँत ज़्यादा कमज़ोर होते हैं। दूध के दाँतों में क्षरण होना बहुत आम है क्योंकि दाँतों के ऊपर का इनेमल का परत बहुत मजबूत नहीं होता। लोगों का यह मानना कि, दूध के दाँतों में क्षरण होने पर इन्हें भरवाने की ज़रूरत नहीं होती क्योंकि ये दाँत तो वैसे भी गिर ही जाने होते हैं, एकदम गलत है। क्षरण से बच्चे के पाचन और स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। दूसरा इससे स्थाई दाँतों की जगहों पर भी बुरा असर पड़ता है जिससे स्थाई दाँत टेढ़े निकलते हैं।