एचायव्ही एडस् के लिए खून की जॉंच अत्याधिक महत्त्वपूर्ण होती है |
एचआईवी टेस्ट में एड्स वायरस के लिए खून में प्रतिपिण्डों की जाँच की जाती है। संक्रमण लगने के बाद वायरस ३ से ४ हफ्तों तक कोशिकाओं में ही रहता है। इसलिए इस समय में यह टेस्ट नेगेटिव ही आता है। इस समय को “विण्डो पीरियड” कहा जाता है। परन्तु अगर टेस्ट पोज़ीटिव आए तो इसका अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति को एड्स हो गया है। एड्स की बीमारी होने में कई साल (७ से १०) तक लग सकते हैं। अगर व्यक्ति का स्वास्थ्य वैसे भी खराब हो या वो कुपोषित हो तो बीमारी ज्यादा जल्दी बिगड़ती है। एचआईवी का टेस्ट कई प्रकार का होता है। और इसकी लागत भी अलग-अलग होती है। कुछ टेस्ट में नतीजे जल्दी आ जाते हैं। यह नियम है कि अगर टेस्ट पोज़ीटिव आ जाए तो दूसरा टेस्ट करवाकर पक्का कर लेना चाहिए। अगर दोनों ही टेस्ट पोज़ीटिव हों तो इससे यह पक्का हो जाता है कि व्यक्ति को एचआईवी का संक्रमण है। इसके अनंतर बीमारी विकसित होने में बरसों समय लग सकता है।
वैस्टर्न ब्लॉट टेस्ट से वायरस का होना न होना पक्का माना जाता है। यह सारा टेस्ट पैथॉलाजी लैब में मिलता है, लेकिन सलाहकार की मदद से ही इसका अवलम्बन करें। ऐसी सुविधाएँ किसी भी जिला सरकारी अस्पताल में प्राप्त हो सकती है। एड्स की बीमारी का स्तर या चरण हमे सीडी-४ गिनती से पता चलता है| हमारे खून के लिंफोसाईट कोशिकाओं में जिनमें सीडी ४ ग्राही निशाना है, ये वायरस लग जाते है| यहॉं से वे कोशिकाओं के अंदर जाकर उसके डी.एन.ए का कब्जा कर लेते है| इससे वह सीडी ४ कोशिका तो मर जाती है, और वायरस नये कोशिकाओं को झडप लेते है| धीरे धीरे सीडी ४ वाले सफेद कोशिकाओं की आबादी और मात्रा कम होते रहती है|
एड्स बीमारी का स्तर हमे इसे गिनती से पता चलता है| स्वास्थ्य में खून में इसकी मात्रा १००० के उपर होती है, जो ५००, ३००, ५० तक गिर जाती है| इलाज के साथ यह मात्रा फिर से सुधरने लगती है|
(AIDS) चिकित्सीय निदान मुख्य और साधारण लक्षण
वायरस संक्रमणग्रस्त व्यक्ति के शरीर के द्रवों जैसे खून, वीर्य, योनि स्त्राव, ऑंसुओं, थूक और स्तन के दूध में होता है। परन्तु आमतौर पर ऑंसुओं और थूक से वायरस नहीं फैलता। अगर जनन अंगों में कोई घाव या छाला या ज़ख्म हो तो यह ज्यादा आसानी से फैल सकता है।
दुर्भाग्य से कई लोगों को यह बीमारी हो जाती है। और उन्हें इसके साथ ही जीना पड़ता है। एड्स होने के सच को स्वीकार पाना और उससे जूझ पाना महत्वपूर्ण है। एड्स के पहचाने जाने के बाद भी आधुनिक दवाओं के कारण व्यक्ति कई साल जी सकता है। यौन साथी को संक्रमण हो भी सकता है और नहीं भी। जीने में तीन तरह की चुनौती होती है – खराब स्वास्थ्य, सामाजिक मुश्किलें और आर्थिक परेशानियाँ। सामाजिक रूप से चुनौती पारिवारिक और सामुदायिक स्तर पर होती है। इन सब परेशानियों से निपटने के लिए और फैसले लेने के लिए व्यक्ति को सहायता दी जाना ज़रूरी है।
किन्हीं भी और रोगियों की तरह एड्स के रोगियों को भी सभी मानवाधिकारों और स्वास्थ्य सेवाओं की ज़रूरत होती है। उन्हें अलग करके रखना न केवल गैर-ज़रूरी है परन्तु अनैतिक भी है। कहते है की बीमारी को अलग करे, बीमार को कतई नही। किसी भी और बीमारी की तरह रोगी द्वारा दी गई सारी जानकारी, जिसमें एचआईवी स्थिति की जानकारी भी शामिल है, गुप्त रखी जानी चाहिए। सिर्फ कुछ ही स्थितियों में सभी लोगों की जाँच की जानी ज़रूरी होती है और तब भी जाँच से पहले रजामन्दी लेना ज़रूरी है। संक्रमण ग्रस्त व्यक्ति के पति या पत्नी या यौन साथी को बताया जाना अभी तक अनिवार्य नहीं हुआ है। अभी तक यह संक्रमण ग्रस्त व्यक्ति की मर्ज़ी पर छोड़ा जाता है। पर इससे संक्रमण ग्रस्त व्यक्ति के पति या पत्नी या यौन साथी की सुरक्षा को नुकसान पहुँचता है। हाल ही में आए न्यायालय के एक निर्णय में संक्रमण ग्रस्त व्यक्ति के पति या पत्नी को संक्रमण के बारे में जानने के अधिकार को सही बताया गया है।
एचायव्ही/एड्स के लिये अब आधुनिक दवाएँ उपलब्ध है| तीन दवाएँ दी जाती है| यह इलाज आजीवन करने पडते है| सामान्यतया उन बीमार को इलाज किया जाता है जिनका सीडी ३५० के नीचे है| एड्स के साथ अन्य बीमारीयॉं आती है, जैसे खॉंसी, फफूँद संक्रमण, दस्त आदि| इनके लिये जो जरुरी ईलाज किये जाते है।
आज की स्थिति में एड्स के लिये अच्छे इलाज उपलब्ध है। लेकिन एक आजीवन इलाज पध्दति खोजी गई है जिससे सेहत लगभग सामान्य हो जाती है। इस इलाज के प्रभाव से वायरस की संख्या कम हो जाती है, प्रतिरोध क्षमता ठीक हो जाती है और छोटी-मोटी संक्रमक-बीमारी काबू में आती है। वायरस संक्रमण भी अल्प हो जाता है। इस इलाज का खर्चा प्रतिमास बारह सौ रुपया होता है। गरीब मरीज़ के लिये यह भी मुश्किल है। सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं द्वारा हाल में कुछ मरीज़ों का मुफ्त इलाज करना शुरू हो गया है।
जब जो संक्रमण हो उसी के अनुसार इलाज करें। व्यक्तिको सामाजिक रूप से अलग न करें क्योंकि एड्स त्वचा के स्पर्श, हवा या इस्तेमाल की जा रही और चीज़ों से नहीं फैलता। परन्तु रोगी के खून से संक्रमण होता है। अगर किन्हीं कपड़ों में खून लगा हो तो उन्हें कीटाणु रहित करना ज़रूरी होता है।
एड्स का शिकार व्यक्ति इलाज के साथ या बिना कई साल जी सकता है। इस समय में रोगी और उसके परिवार को इससे जूझना और इसे सम्हालना सीखना पड़ता है। घर में की जाने वाली देखभाल महत्वपूर्ण है। आपात स्थिति में अस्पताल की सुविधा की भी ज़रूरत होती है। पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए कि ये औरों को न फैले। घर में की जाने वाली देखभाल में शामिल है- एड्स के ईलाज में और कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदू इस प्रकार है|
इसके लिए नीचे दिए गए तरीके अपनाने चाहिए –