एक्वायरड इम्यूनो डैफिशिएंसी सिंड्रोम, जिसे एड्स के नाम से जाना जाता है, मनुष्यों को होने वाली बीमारियों में काफी नई है। पिछले एक दशक में यह महामारी जैसी ही बन गई है। भारत में करीबन ०.९% लोग एड्स के वायरस से संक्रमण ग्रस्त हैं।
यौन व्यवसाय करने वालों, कई लोगों से यौनिक सम्पर्क रखने वालों, समलैंगिक सम्पर्क रखने वालों और नशीली दवाएँ लेने वालों को इसका खतरा सबसे ज्यादा होता है। एक समय संक्रमण ग्रस्त व्यावसायिक रक्तदाता भी इसे फैलाते थे। इसलिए भारत में हाल ही में व्यावसायिक रक्तदान पर प्रतिबन्ध लग गया है। जिन लोगों को संक्रमण हो चुका है उनके यौन सम्बन्धियों, संक्रमण ग्रस्त गर्भवती महिलाओं के बच्चों और दूषित इंजैक्शन लेने वाले लोगों को इसका खतरा सबसे ज्यादा है। बीमारी पहले आमतौर पर शहरों में ही फैली हुई थी। पर मुख्य मार्गों के पास स्थित गाँवों में इसके कुछेक मामलों का दिखाई दे जाना स्वाभाविक ही है। धीरेधीरे यह बीमारी गॉंवोतक पहुँच गयी है| अभीअभी इस बीमारी का फैलाव धीमा हो गया है|
यह बीमारी जिन वायरस (एचआईवी १ और एचआईवी २) से होती है, उनके लिए अभी तक कोई टीका नहीं बना है। रोग के उन्मूलन का इलाज भी अभी तक नही बना है। इलाज के बिना इस बीमारी से आखिर में मौत हो जाती है। पर छूत/संक्रमण लगने के बाद व्यक्ति कई सालों तक जी सकता है। लेकिन इसके लिए अब जीवन भर लेने के लिए इलाज उपलब्ध हुआ है।
वायरस इनमें से किसी रास्ते से शरीर में घुस सकता है –
दूषित सुई और सिरींज के कारण ही यह बीमारी फैल सकती है |
गर्भकाल में एचायव्ही संक्रमण भ्रूण तक पहुँच सकता है |
अगर गर्भवती स्त्री को एड्स है तो उससे गर्भावस्था या प्रसव के समय बच्चे में भी यह पहुँच सकता है। यह एक बेहद बड़ी समस्या है। बच्चों में यह बीमारी ठीक वैसे ही होती है जैसे बड़ों में। परन्तु नवजात शिशुओं में यह तेज़ी से बढ़ती है क्योंकि उनकी प्रतिरक्षा क्षमता कम होती है। जिन बच्चों को एड्स होता है वो ३ से ४ साल से ज्यादा नहीं जी पाते। गर्भकाल में एड्स निरोधी गोली लेने से शिशु में संक्रमण की सम्भावना काफी कम हो जाता है।
संक्रमण के बाद से रोग के लक्षण दिखाई देने वाला समय (बीमारी शुरू होने) में कई साल लगते हैं। उदभवन काल करीब ५से १० साल का होता है। बीमारी के पूरी तरह से विकसित हो जाने के बाद बिना इलाज के व्यक्ति का दो साल के अन्दर-अन्दर अन्त होता है।
एचआईवी और एड्स में फर्क करना ज़रूरी है। एचआईवी पॉजीटिव होने का अर्थ है व्यक्ति को संक्रमण लग चुका है। परन्तु एड्स एक संलक्षण है जिसमें कई सारी बीमारियाँ हो जाती हैं। एचआईवी पॉजीटिव अवस्था के एड्स में बदलने में कई साल गुज़र जाते हैं। वैसे भी ४०-५०% एचआयव्ही ग्रस्त व्यक्ती खुद बीमारी से बच के रहते है, वायरस फैलाते रहते है| आज इसके लिए आजीवन दवा इलाज भी उपलब्ध है, जिससे आयु बची रहती है।
एडस् में सफेद कोशिका की मात्रा घटती है |
एड्स के वायरस से एक तरह की सफेद रक्त कोशिकाओं को नुकसान पहुँचता है। इससे उसका प्रतिरक्षा तंत्र खराब हो जाता है। इसलिए शरीर के पास कई एक बीमारियों जैसे निमोनिया, दस्त और तपेदिक आदि से बचाव के लिए कोई साधन नहीं बचता।
मुँह में फफूंद का संक्रमण |
एड्स के मुख्य लक्षण हैं – लगातार वज़न कम होते जाना, आये दिन दस्त, बार-बार बुखार होना जो हर बार एक महीने से ज्यादा चलता है। इसके अलावा साधारण लक्षण हैं चिरकारी खाँसी, खुजली, सरल हर्पीस, जनन अंगों की हर्पीस, मुँह में फफूँद की संक्रमण, लसिका ग्रन्थियों का बढ़ जाना, (याने गिल्टियॉं) परसरीय तंत्रिकाओं में दबाने से दर्द की स्थिति और बार-बार बीमार पड़ना। इसी मुख्य लक्षणों के साथ कई अन्य लक्षण नजर आ सकते है, क्यों की शरीर में इसका प्रभाव कई अंगोपर पडता है|
लक्षण | वयस्कों में | बच्चों में |
मुख्य लक्षण | वजन शरीर के कुल भार के १० प्रतिशत से कम हो जाना | वजन घटना या धीमी बढ़त |
एक महीने से ज़्यादा बुखार | एक महीने से ज़्यादा बुखार | |
एक महीने से ज़्यादा चलने वाले दस्त | एक महीने से ज़्यादा चलने वाले दस्त | |
साधारण लक्षण | एक महीने से ज़्यादा लगातार रहने वाली खॉंसी | कई जगहों जैसे बगलों, जांघ और गर्दन आदि में दर्दरहित गिल्टियॉं |
सब जगह खुजली | मुँह में सफेद फफूंदवाला शोथ (कँडिडा) | |
बार बार होने वाली वायरल हर्पीस | सामान्य संक्रमण जैसे गले या कान की बीमारी बार बार होना | |
मुँह में फफूंदवाला शोथ (कँडिडा) | लगातार खॉंसी | |
चिरकारी हर्पीस सिंपलैक्स/ परिसर्प | कई जगह त्वचा का संक्रमण- शोथ | |
कई जगहों जैसे बगलों, जंघो और गर्दन आदि में दर्दरहित गिल्टियॉं | एचआईवी पोज़िटिव मॉं | |
एड्स की संभावना | कम से कम दो मुख्य और एक साधारण लक्षण | कम से कम दो मुख्य और एक साधारण लक्षण |