पेशाब की पथरी पेशाब में उपस्थित लवणों व खनिजों के जमाव से बनते हैं। ये आमतौर पर मध्य आयु यानि की चालीस साल या उसके बाद पता लगने शुरू होते है। जब लवणों और खनिजों की परतें विभिन्न जगहों पर जमा होती जाती हैं तो इन पत्थरों का आकार बढ़ता जाता है। ये पत्थर आमतौर पर कैल्शियम के फास्फेट और ऑक्जेलेट होते हैं। ये सभी लवण और खनिज खाने की चीजो व पानी से शरीर में आए होते है। कुछ सब्ज़ियॉं जैसे पालक, अरबी के पत्ते और टमाटरों में बहुत अधिक लवण होते हैं। जमीनी पानी में भी काफी सारे लवण होते हैं। कुएँ या बोरवेल का पानी यह भी पथरी बनने का कारण होता है। ये लवण धीरे-धीरे करके शरीर में जमा हो जाते हैं और पत्थर बना लेते हैं।
पेशाब के पत्थर आकृति और आकार में अलग-अलग होते हैं। आमतौर पर ये उसी जगह का आकार ले लेते हैं जिसमें ये बनते हैं। इसलिए मूत्रवाहिनी के पत्थर लम्बे होते हैं और मूत्राशय में बने पत्थर गोल होते हैं। गुर्दे में बने पत्थर या तो कीप के आकार के होते हैं या अनियमित आकार के जैसे कि हिरण के सींग।
फोस्फेट और कॉर्बोनेट के पत्थरों की सतह मुलायम होती है और ऑक्सेलेट के पत्थरों की खुरदुरी। इस कारण से ऑक्सेलेट के पत्थरों के कारण खून भी निकल सकता है। कुपोषित बच्चों के मूत्राशय मेंकभी कभी बड़े-बड़े पत्थर बन जाते हैं। ये कुपोषण के कारण शरीर के प्रोटीन के टूट जाने के कारण बनते है। जिसमें पेशाब में फालतू पदार्थे का जमाव हो जाता है। ये कण लवणों के और जमाव के लिए केन्द्रक के रूप में काम करते हैं। पत्थर नींबू समान बड़े भी हो सकते हैं।
गुर्दे की कीप में पत्थर कई सालों तक महसूस हुए बिना शरीर में पड़े रह सकते हैं। अक्सर उस व्यक्ति को पता लगने से कही पहले गुर्दे खराब हो चुके होते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यह बीमारी काफी धीमी होती है और एक गुर्दे के खराब होने पर दूसरा उसका काम चला लेता है।
कुछ मामलों में थोड़ी सी बेआरामी हो सकती है। यह गुर्दे के क्षेत्र तक ही सीमित होती है। और यह हल्का दर्द पीठ के तरफ ज़्यादा महसूस होता है। कभी-कभी कीप के क्षेत्र में पेशाब के इकट्ठे हो जाने के कारण गुर्दे सूज भी जाते हैं। कभी-कभी ऐसा बड़ा गुर्दा एक गांठ जैसे की हाथ से ही महसूस हो जाता है। कभी-कभी यह समस्या गुर्दे में संक्रमण के रूप में सामने आती है। कभी-कभी गुर्दे की पेशियॉं पत्थर को कीप से नीचे मूत्रवाहिनी की और धकेलती है। ऐसे में एक खास तरह का तेज पेट दर्द नीचे की ओर जाता हुए महसूस होता है। यह दर्द लहरों के रूप में उठता है।
मूत्रवाहिनी के पत्थर आमतौर पर छोटे होते हैं क्योकि मूत्रवाहिनी में थोड़ी सी ही जगह होती है। यहाँ पेशाब में रूकावट जल्दी ही शुरू हो जाती है। ये आमतौर पर गुर्दों में शुरू होते हैं और मूत्रवाहिनी में आकर फँस जाते हैं। ये धीरे-धीरे बड़े होते हैं जब इन पर और लवण जमता जाता है।
पेशाब के पत्थरों का आकार जगह, साइज और पेशाब के बहाव में अवरोध के पैमाने पर निर्भर करता है।
मूत्रवाहिनी शूल (दर्द) एक खास तरह का दर्द है जो इस तरह की पथरी से होता है। दर्द पेट में मूत्रतंत्र तक सीमित होता है। यह पेट की मध्यरेषा के दायें या बाएँ ओर होता है। रोगी दर्द से कराहता है। वो या तो उस क्षेत्र को दबाकर या फिर एक तरफ को लेटकर दर्द को दबाने की कोशिश करता है। दर्द मूत्रमार्ग की ओर बढ़ता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मूत्रनलिका और मूत्रवाहिनी की तंत्रिकाओं की जुड़ी समान होती हैं।
मूत्राशय में पथरी हो तो पेशाब करना थोडा मुश्किल होता है |
ये पत्थर मुख्यत: मूत्रवाहिनी से आते है। कभी-कभी सीधे मूत्राशय में भी पत्थर बन सकता है। कुपोषित बच्चों में ऐसा होता है। इसके लक्षणों में मुख्यत: मूत्राशय शोथ या पेशाब अटकना शामिल है। मूत्राशय शोथ में खास तरह की जलन, और ऐठन वाला दर्द, बुखार, पेशाब में गन्दलापन और बार-बार पेशाब करने की इच्छा होती है। मूत्राशय में हुए पत्थरों से कुछ रोगियों के पेशाब में रक्त स्त्राव दिखाई देता है। मूत्राशय के पत्थरों के कारण पेशाब रूकने की एक खास विशेषता है रोगी की स्थिति से इसका सम्बन्ध। जब रोगी खड़ा होता है या पेशाब करने के लिए बैठा होता है उस समय ये पत्थर मूत्राशय के निकास मुँह पर गेंद की तरह पड़ा रहता है रोगी जितना ज़्यादा जोर लगाता है उतना ही ज़्यादा रोक लगती है। परन्तु अगर रोगी लेटे लेटे पीठ के बल या करवट से पेशाब करने की कोशिश करे तो पत्थर मूत्राशय के निकास मुँह से लुढ़क जाता है। इससे पेशाब बाहर निकल सकती है।
कभी-कभी छोटे पत्थर या कंकड़ बड़े पत्थरों के छोटे-छोटे टुकड़े मूत्रमार्ग में से निकल जाते हैं। अगर पेशाब सख्त और साफ जगह पर किया जाए तो रोगी इन कंकड़ों को शायद देख भी सकता है्।
दर्द के प्रकार और जगह से पता चल जाता है कि पथरी मूत्राशय में है। पेट का एक्स-रे या सोनोग्राफी करवाने की भी ज़रूरत होती है। पेशाब की जॉंच में कभी-कभी लाल रक्त कोशिकाएँ दिखाई देती हैं। ज़्यादातर मामलों में गुर्दे के काम की जॉंच भी ज़रूरी होती है। सोनोग्राफी का फायदा यह है की पुरे मूत्र-तंत्र की अच्छी जॉंच कर सकते है।
नारियल पानी पीनेसे पेशाब ज्यादा और जल्दी होती है |
मूत्रतंत्र में पथरी का इलाज पत्थरों की जगह और गुर्दों को हुए नुकसान पर निर्भर करता है। इसलिए इसके लिए विशेषज्ञ द्वारा इलाज ज़रूरी होता है। पर बहुत सारे मामलों में बिना आपरेशन के इलाज सम्भव है। कई डॉक्टर, आयुर्वेद के विशेषज्ञ और होम्योपैथी के डॉक्टर बिना ऑपरेशन के इन पत्थरों को निकाल देने के तरीके इस्तेमाल करते है। इन तरीकों में पत्थरों को घोलकर निकाल देने के लिए खूब सारा पानी पीना होता है। इसको कुछ हप्ते या महिने लग सकते है। यह तरीका केवल तब ही फायदेमन्द होता है जबकि पत्थर इतने छोटे हों कि वे नीचे आ सके। अगर गुर्दो को पहले से काफी नुकसान हो चुका हो तो फिर और इन्तजार करना ठीक नहीं है। खूब सारा पानी पीना (बेहतर होता है कि पानी मृदु हो) पथरी से बचाव का एक अच्छा तरीका है। इससे लवणों का जमाव से बचाव होता है (तनु बनाने से)।
ऑपरेशन के बाद पेशाब के लिए कॅथेटर लगाना पडता है |
अगर पत्थर इतने बड़े हों कि अपने आप नीचे न आ सकते हों तो आपरेशन के अलावा कोई चारा नहीं बचता। क्या तकनीक अपनाई जाए यह पत्थर की जगह और आकार पर निर्भर करता है। एंडोस्कोपी याने दुरबीन द्वारा एक हुक कर उसे पेशाब के रास्ते में ऊपर डाल दिया जाता है। फिर इससे पत्थर को निकाल लिया जाता है । छोटे पत्थरों के लिए यह तकनीक बहुत अच्छी है। एंडोस्कोपी याने दुरबीन द्वारा भी यह काम होता है। बडे कंकंड हो तब एंडोस्कोपी याने दुरबीन द्वारा पत्थर को पीस कर उसे छोटे-छोटे कंकड़ों में बदल दिया जाता है। फिर ये कंकड़ पेशाब के साथ बाहर आ जाते हैं।
ध्वनि की तरंगो से पत्थरों को तोड़ने के तरीके को अश्मरीभंजन (लिथोट्रिप्सी) कहते है। यह एक खास तकनीक है पर यह काफी महॅंगी है। पत्थर से टकराने वाली ध्वनि की तरंग पत्थर को तोड़ देती हैं।उसके बाद कंकड़ पेशाब के साथ बाहर निकल जाते हैं। इस काम में खून नहीं निकलता। पर अगर रास्ते में कहीं कंकड़ छूट जाए तो इन पर फिर से पत्थर जमा हो सकते हैं। यह तकीनीक बहुत बड़े पत्थरों के लिए उपयोगी नहीं होती है। इसका फायदा यह है की संक्रमण का डर नही होता।
आयुर्वेद में मूत्रतंत्र में हुई पथरी को ठीक करने के लिए कई औषधियॉं बताई गई है। हम इन तरीकों का इस्तेमाल तब कर सकते हैं जब इन्हें आपरेशन द्वारा तुरन्त निकालना ज़रूरी न हो। पाषद भेद और बड़ा गोखरू के कॉंटे के पाउडरों का मिश्रण एक आम औषधी है। दो ग्राम मिश्रण रोज खूब सारे पानी के साथ खाली पेट दे। इलाज की अवधि ४५ दिन है। छह महीनों बाद तीस दिनों के लिए इलाज दोहराएँ। अगर यह इलाज काम करता है तो रोगी को पेशाब के साथ कंकड़ निकलते हुए दिखेंगे। ऐसा परिणम इलाज शुरू करने के ८ से १० दिनो के अन्दर दिखाई देने लगना चाहिए। इस इलाज के साथ कुल्थी का काढ़ा २५ ग्राम कुल्थीको २०० मिलीलीटर पानी में तब तक उबालें जब तक कि इसका आयतन ५० मिली लीटर न हो जाए दें। ये काढ़ा ३ से ७ दिनों तक रोज दें। यह इलाज एक महीने बाद फिर दोहराएँ।
खेतों में उगने वाले सांथा/थिकरी नाम के खरपतवार गुर्दे के पथरी के लिए काफी फायदेमन्द होते हैं। अगर पौधा ताजा है तो इसे गूदे के रूप में और अगर सूखा हुआ है तो पाउडर के रूप में देना चाहिए। पौधे के सभी हिस्से यानि पत्तियॉ, तना, जड़, फूल या फल सभी को काढ़ा बनाने में डालना चाहिए।
टमाटर, गोभी और पालक पथरी बढ़ाते हैं और इनसे बचना चाहिए।
चामोमिला और लाईकोपोडियम में से एक चुन लें। टिशु रेमेडी में कालफोस, काल सुल्फ, काल फ्लोर, माग फोस, नट फोस, नट मूर और सिलिका में से दवा चुन लें।