हम अक्सर सुनते हैं कि किसी व्यक्ति को उच्च रक्तचाप (दाब) की शिकायत है या दिल का दौरा पड़ा है। ये गरीबों और अमीरों दोनों को ही होने वाली गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हैं। जैसे जैसे जीवाणुओं से होने वाली बीमारियॉं कम होती जा रही हैं, और अधिक हृदवाहिका की बीमारियॉं सामने आ रहीं हैं। ये बीमारियॉं खासकर बड़ी उम्र के लोगों में ज़्यादा होती हैं। हमको इन बीमारियों से भी जूझना पड़ेगा।
जराजन्य बुखार से जोड़ों और दिल के वाल्व पर असर पड़ता है। यह गंभीर बीमारी भारत में काफी होती है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह स्कूल जाने वाली उम्र में होती है और इससे हमेशा के लिए अपंगता हो जाती है। सौभाग्य से हम शुरुआती अवस्था में इसे आसान से इलाज से रोक सकते हैं। अगर रहन सहन के हालात बेहतर होंगे तो इसके मामले कम होते जाएंगे। उच्च रक्तचाप भी एक आम बीमारी है। इसके होने से ही दिल की कई एक तकलीफें हो जाती हैं। एक और समस्या है परिमंडली धमनी में अवरोध होना जिससे दिल का दौरा पड़ जाता है।
परिसंचरण बीमारियों का सबसे महत्वपूर्ण कारण है बहुत ज़्यादा वसा (खासकर जन्तुओं से मिलने वाली वसा) वाला आहार खाना और साथ में शारीरिक मेहनत न करना। यह वैसे आम तौर पर शहरों की समस्या है। पर आजकल गॉंवों में भी कुछ परिवार ऐसा रहन सहन अपनाने लगे हैं। औरतों के मुकाबले आदमियों में ये बीमारियॉं ज़्यादा होती हैं। जहॉं तक जराजन्य और उच्च रक्तचाप की बीमारियों का सवाल है, इनका शुरु में पकड़ में आना और सही इलाज होना ज़रूरी है। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के रूप में हम समय से इन बीमारियों को पकड़ सकते हैं और लोगों को स्वस्थ आहार और आदतों के बारे में बता सकते हैं। इस अध्याय में हम हृदवाहिका तंत्र की कुछ बीमारियों के बारे जानकारी हासिल करेंगे। इस खंड को पढ़ने से पहले इस तंत्र के बारे में किसी जीवविज्ञान की किताब में से ज़रूर पढ़ें।
दिल और खून की नलियों का शरीर में सब तरफ फैला हुआ बृहद जाल शरीर का रक्त संचरण तंत्र बनाता है। इन दोनों भागों की बीमारियॉं अलग अलग होती हैं पर इनका आपस में संबंध भी होता है। रक्त संचरण तंत्र की जांच में यह क्रम अपनाया जाता है: नाड़ी, खून का दवाब (रक्त दाब), शिराओं और दिल की आवाज। पैरों, लिवर, तिल्ली या पेट में सूजन रक्त के बहाव के धीमे होने के सूचक हैं। इस आसान जांच से आप ज़्यादातर हृदवाहिका की बीमारियों का पता लगा सकते हैं।
बहुत पुराने समय से ही नाड़ी की जांच शारीरिक जांच का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। आयुर्वेद के विशेषज्ञ कई एक बीमारियों के निदान के लिए नाड़ी की जांच को बहुत अधिक महत्व देते हैं। पुराने समय में सिर्फ नाड़ी की जांच के आधार पर बीमारी का निदान कर देने का प्रचलन काफी आम था। परन्तु हम नाड़ी के केवल कुछ बुनियादी नियमों के बारे में ही जानकारी हासिल करेंगे। नाड़ी की दर, नियमितता (रिदम), आयतन और दवाब (तनाव) कुछ महत्वपूर्ण घटक हैं। कलाई में स्थित रेडियल धमनी नाड़ी के इन पहलुओं की जांच के लिए सबसे ज़्यादा उपयुक्त है।
नाड़ी और दिल के धड़कने की दर एक ही होती है। जब हम रैडिकल की दर नाप रहे होते हैं तो हम इसे दिल के काफी दूर नाप रहे होते हैं। यह ऐसे होती है जैसे कि दिल से कोई लहर सी उठ रही हो – दिल से बह कर आ रहा खून नहीं। जिस समय नाड़ी बहुत कमज़ोर होती है उस समय हम इसकी दर ठीक दिल पर से भी नाप सकते हैं। व्यस्कों (और बड़े बच्चों) में नाड़ी की सामान्य दर 60 से 80 / मिनट होती है। यानि कि औसत दर 70 होती है। जन्म से पहले बच्चे की नाड़ी की दर इससे दुगनी यानि कि 140 होती है। जन्म के समय ये 100 या उससे थोड़ी ज़्यादा होती है। दिल के धड़कने की दर पॉंच से दस साल के अंदर उतनी ही हो जाती है जितनी कि किसी व्यस्क की। खिलाड़ियों का दिल ज़्यादा मजबूत होता है, इसलिए इनकी नाड़ी की दर 60 या यहॉं तक कि 50 प्रति मिनट होती है।
तेज़ नाड़ी- कसरत, उत्तेजना या बुखार से नाड़ी की दर तेज़ हो जाती है। इन सब परिस्थितियों में दिल की धड़कन इसलिए बढ़ती है क्योंकि दिल शरीर को ज़्यादा खून पहुँचाने की कोशिश कर रहा होता है। निर्जलन और संचरण शॉक से भी नाड़ी तेज़ चलने लगती है। संचरण शॉक तब लगता है जब बहुत अधिक खून या पानी निकल जाने के कारण शरीर में खून की कमी हो जाती है। ऐट्रोपिन की गोली से भी दिल की धड़कन की दर बढ़ जाती है। धीमी नाड़ी- कुछ बीमारियों में नाड़ी की दर अपेक्षित 70 प्रति मिनट से कम होती है। ये दिल की गंभीर गड़बड़ी की सूचक होती है। नाड़ी के आयतन से हमें पता चलता है कि दिल में कितना खून संचरण के लिए उपलब्ध है। कम खून होने से संचरण शॉक लग सकता है। बडे़ आयतन की नाड़ी अनीमिया की निशानी होती है।
हमें कम से कम एक मिनट के अंदर अंदर किसी भी किसम की अनियमित धड़कन पर ध्यान देना चाहिए। स्वस्थ दिल काफी नियमित तरह से धड़कता है। अगर दिल की धड़कन में किसी किसम की अनियमितता हो तो यह दिल की बीमारी की निशानी है। कभी कभी यह सिर्फ बहुत ज़्यादा चाय या कॉफी ले लेने से भी हो सकती है।