प्राथमिक चिकित्साकर्मियों को, जिनमें स्वास्थ्य कार्यकर्ता, नर्सें, सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता और पारंपरिक चिकित्सक आते हैं, कानूनी ढांचे में कुछ रियायत मिली हुई है। सरकारी नर्सें और स्वास्थ्य कार्यकर्ता स्वास्थ्य सेवाएं दे सकते हैं। सरकारी आदेश के तहत ये लोग कुछ हद तक रोग निवारण का काम कर सकते हैं। किसी तरह की गड़बड़ी जैसे दवाओं से एलर्जी, इन्जैक्शन से फोड़े आदि मुख्य स्वास्थ्य केन्द्र चला रहे स्वास्थ्य कार्यकर्ता और डॉक्टरों की मिली जुली ज़िम्मेदारी होती है। मानक दिशानिर्देश अर्धचिकित्साकर्मियों को सुरक्षा प्रदान करते हैं, अगर वो उनका पालन करें।
गैरसरकारी स्वैच्छिक संगठन के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को भी इन्हीं ‘दिशानिर्देशों’ तहत प्रतिरक्षा मिलती है। परन्तु गैरसरकारी संगठनों के लिए यह कितना असरकारी है इसे अभी कानूनी स्तर पर परखा नहीं गया है। इसलिए गैरसरकारी संगठन मुश्किल कानूनी स्थितियों में काम करने में दुविधा महसूस करते हैं। चिकित्सा से जुड़े हुए कानून केन्द्रीय कानून हैं। इसलिए राज्यों के पास कोई स्वतंत्र प्रावधान बनाने की छूट नहीं है।
क्या प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को पारिभाषित कर दिया जाना चाहिए और इसे कानून में स्वीकृति मिल जानी चाहिए? क्या प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को चलाए रख पाने के लिए समुदाय की मदद काफी होती है? बहुत से लोगों को लगता है कि समुदाय की मदद इसके लिए काफी होती है। परन्तु समुदाय में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के लिए उपयुक्त कानूनी जगह बनाए जाने की ज़रूरत है। राज्य और केन्द्रीय सरकार को काम, ज़िम्मेदारी, सुविधाओं, पाबंदियों और आज़ादी आदि सही तरह से लागू करने चाहिए। स्वास्थ्य सेवाओं के बाज़ार की ओर बढ़ते जाने के इस समय में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा तभी टिकी रह सकेगी।
वो सभी दुर्घटनाओं की जानकारी, जिनमें मृत्यु या विकलांगता हो जाती है, स्थानीय पुलिस स्टेशन को दी जानी चाहिए। जो डॉक्टर ज़ख्मी व्यक्ति का इलाज कर रहा हो उसकी भी यह ज़िम्मेदारी होती है। वह पुलिस को इसकी जानकारी, रिकॉर्ड और सर्टिफिकेट दें और ज़रूरत पड़ने पर कोर्ट में बयान भी दें।
निजी चिकित्सक (प्राइवेट डॉक्टर) आमतौर पर दुर्घटनाओं के मामलों में बीच में नहीं पड़ना चाहते हैं। यह अनैतिक है क्योंकि इसका अर्थ है कि वे आहत व्यक्ति की जान बचाने के लिए उसका इलाज नहीं कर रहे होते। सभी डॉक्टरों का यह कर्तव्य है कि वे दुर्घटनाओं के शिकार लोगों की मदद करें। तुरंत ज़रूरी और ज़िदगी बचाने वाले इलाज के बाद उन्हें रोगी को आगे के इलाज के लिए दूसरी जगहों पर भेज देना चाहिए। शुरूआती विशेषज्ञ गवाहों के रूप में उनकी महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है कि वे सभी रिकॉर्ड उपलब्ध करवाएं और अगर ज़रूरी हो तो कोर्ट में बयान भी दें। ऐसा न करने से उन पर कानूनी कार्यवाही भी हो सकती है।
स्थानीय सरकारी अधिकारियों को हर एक जन्म और मृत्यु का रिकॉर्ड रखना होता है और इनकी सूचना राज्य सरकार के अधिकारियों तक पहुँचानी होती है। पंचायत या मुनिसपैलिटी यह रिकॉर्ड रखती है। रिश्तेदारों की यह ज़िम्मेदारी होती है कि जन्म या मृत्यु की सूचना (जिनमें मरा हुआ बच्चा पैदा होने की सूचना भी शामिल है) गॉंव के अधिकारी को दे। जन्म की सूचना ७ दिनों और मृत्यु की सूचना ३ दिनों के अन्दर दी जानी होती है। अस्पतालों की भी यह ज़िम्मेदारी होती है कि वहॉं होने वाले जन्मों और मौतों की सूचना वे अधिकारियों को दें।
अचानक या किसी अनजाने कारण से होने वाली मौत की स्थिति में परिवारा वालों या अस्पताल या क्लीनिक वालों को तुरंत पास के पुलिस स्टेशन में सूचना देनी होती है। जन्म का सर्टिफिकेट स्कूल में दाखिले, बीमे और पासपोर्ट के लिए चाहिए होता है। इससे नागरिकता का भी पता चलता है अगर वह बाद में बदल न ली गई हो।