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बलात्कार

बलात्कार एक बहुत ही घिनौना काम है और यह केवल इंसानों में ही होता है। बलात्कार और यौन हिंसा के अन्य मामले विकसित और विकासशील देशों दोनों में ही देखे जाते हैं।

  • बलात्कार भारतीय दंड संहिता (आई. पी. सी) की धाराओं ३७५ और ३७६ के तहत अपराध है। किसी महिला की स्वीकृति के बिना उसके साथ यौन हिंसा को बलात्कार के रूप में परिभाषित किया गया है। अगर महिला की उम्र १६ साल से कम है तो उसके साथ कोई भी यौनिक संबंध बलात्कार माना जाता है और उसमें स्वीकृति होने न होने से फर्क नहीं पड़ता – अगर उसकी शादी हो गई हो तब भी। वैसे भी किसी नाबालिग लड़की से शादी करना कानूनन जुर्म है। परन्तु अनगिनत अपराधी कानूनी कार्यवाही से पहले या बाद में आसानी से बच निकलते हैं।
  • हाल में यह एक विवाद का विषय बना हुआ है कि बलात्कार के लिए मृत्युदंड दिया जाना चाहिए। कुछ लोगों को लगता है कि यह ज़रूरी है पर अन्य बहुत से लोग, जिनमें महिला संगठन भी शामिल हैं इसे गलत मानते हैं। एक डर यह भी जताया जाता है कि प्रमाण सबूत खतम करने के लिए पीडित महिला को ही खतम कर दिया जाएगा। एक और संभावना यह है कि इस सजा का गलत इस्तेमाल किया जाएगा। इसके अलावा बहुत से बलात्कार परिवार के अन्दर ही होते हैं, ऐसे में मृत्युदंड के डर के कारण बलात्कार की शिकार महिला पर चुप रह जाने का दबाव बढ़ जाएगा।
  • इस मुद्दे पर सोचने के बाद लगता है की शीघ्र पुलिस कारवाई, न्यायिक जॉंच और दंडित करना यही सही रास्ता है। शीघ्र न्यायिक कृती यह इसका सही जबाब है।
याद रखें

बलात्कार किसी भी महिला के लिए बहुत ही दु:खद अनुभव होता है। बहुत ही कम महिलाओं में इतनी हिम्मत हो पाती है कि वो इसकी शिकायत करें इनमें से कुछ ही देर से इसकी शिकायत कर पाती हैं। परन्तु अपराधियों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए ज़रूरी है कि कुछ कदम उठाए जाएं।

  • बलात्कार की शिकार महिला के कपड़ों पर लगे दाग, उनके भग और जनन अंगों पर लगे स्त्राव के दाग और उनके शरीर पर लगे खून और वीर्य के दाग आदि सभी बहुत महत्वपूर्ण प्रमाण होते हैं। ये सभी दाग चिकित्सीय जॉंच तक वैसे ही लगे रहने देने चाहिए।
  • बलात्कार का विरोध करने की कोशिश में महिला के शरीर पर छोटी या बड़ी खरोंच या चोटें लग जाती हैं। ये सारे शारीरिक प्रमाण महिला की रजामंदी नहीं थी। इसके पुख्ता साबूत होते है। यह भी महत्वपूर्ण है इसलिए चिकित्सीय रिकार्ड में इन्हें भी शामिल किया जाना चाहिए।
  • चिकित्सीय जॉंच जिसमें घटना के तुरंत बाद लिए गए आलेप में मिलने वाले वीर्य और शुक्राणुओं से भी अभियुक्त का पता चलता है। इसके लिए सूक्ष्मदर्शीय जॉंच की ज़रूरत होती है जो विशेष वैधिक प्रयोगशालाओं में की जाती है। बलात्कार की शिकार महिला और बलात्कारी दोनों के ही कपड़ों पर मौजूद दागों से बलात्कारी की पहचान के लिए महत्वपूर्ण संकेत मिल जाते हैं। महिला के नाखूनों में त्वचा की छीलन भी बलात्कारी की पहचान के लिए महत्वपूर्ण होती है। आजकल डीएनए जॉंच द्वारा इसीसे मजबूत सबूत बनते है।
  • बलात्कारी की जॉंच भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है क्योंकि उसके जनन अंगों पर भी द्रव और खून के दाग और उसके नाखूनों आदि में भी महिला की त्वचा की छीलन मिल सकते हैं। भारतीय कानून में बलात्कार साबित करने के लिए कि महिला की योनि में लिंग का घुसाया जाना ज़रूरी नहीं है । जनन अंगों में संपर्क को भी बलात्कार माना जाता है।
  • मंद बुद्धि या मानसिक रूप से बीमार लोगों को बहका कर उनके साथ बलात्कार किया जा सकता है। ऐसे मामलों में ऐसा कोई प्रमाण नहीं होता जिससे यह साबित हो सके कि उस महिला की रजामंदी नहीं थी। फिर भी इन मामलों को बलात्कार ही माना जाता है।
  • सामाजिक और महिला संगठनों को ऐसे मामलों पर नज़र रखनी चाहिए। न्याय मिलना काफी मुश्किल होता है क्योंकि पुलिस, न्यायाधीश व वकील भी इस मुद्दे के प्रति ज़्यादा संवेदनशील नहीं होते हैं। खुद बलात्कार की शिकार महिला पर ही अकसर इसका दोष लगाया जाता है। सामाजिक कलंक के कारण महिला आमतौर पर बलात्कार की शिकायत दर्ज करवाने में हिचकती है। अब रजिस्टर्ड महिला संगठन इन मामलों में दखल दे सकते हैं और महिला को कानूनी मदद भी देते हैं।
यौन हिंसा के कानून में नये बदलाव
  • १६ दिसंबर २०१२ में घटित निर्भया बलात्कार मामले के कारण देश में यौन हिंसा के खिलाफ एक आंदोलन चला| जस्टिस वर्मा कमिटीने यौन हिंसा के कानून में नये बदलाव सुचित किये और इसका ऑर्डिनन्स बन गया| जल्द ही लोकसभा, राज्यसभा ने यह कानून पारित किया| इसके तहत अब यौन हिंसा के अलग अलग कानून में बदलाव लाये गये है| सिर्फ बलात्कार के बजाय और भी घटनाएँ इस कानून में पारित की गयी है| इसका एक छोटासा विवरण हम यहॉं दे रहे है|
  • ३२६ ए के तहत ऍसीड ऍटॅक याने ऍसीड हमला एक यौन हिंसा का मुद्दा बनाया गया है| इसके लिए दस साल की या उससे ज्यादा जेल हो सकती है और क्षतिग्रस्त व्यक्ती को सारा मेडिकल खर्चा देने का प्रावधान शामील किया गया है| इसीके साथ ऍसीड हमले का प्रयत्न भी पॉंच-सात बरस की सजा के पात्र है| साथ में जुल्माना भी हो सकता है|
  • ३५४ ए के अनुसार यह यौन पीडन की अलग अलग घटनाएँ दंडित करता है| इसमें अन चाहा स्पर्श या हरकत जो यौन किस्म का हो सकता है शामील है| यौन संबंध की मॉंग करना या बिनती करना भी एक जुर्म माना गया है| यौन दृष्टी से बोले गये शब्द या कहे सुने शब्द जुर्म माने गये है| वैसे ही किसी को पोर्नोग्राफी याने यौनिक चित्र या फिल्म दिखाना भी जुर्म है| कोई भी शारीरिक, शाब्दिक या बर्तावी यौनिक हरकत जुर्म कहेलाई जायेगी|
  • ३५४ बी के तहत किसी महिला के कपडे उतारना या उसका प्रयास करना या ऐसे काम में किसी की मदद करना ये सारे संगीन जुर्म है|
  • ३५४ सी के तहत वोयुरिझम याने किसी महिला को उसके निजी माहोल में देखनेका प्रयास करना एक जुर्म है जैसे की उसको बाथरुम या कपडे बदलते समय चोरी छिपे देखने का प्रयास करना जिसमें उस महिला के जनन अंग, नितंब या वक्ष स्थल को विना कपडे के देखने का प्रयास या अंडरवेअर में (अंतर्वस्त्र) पहेने हुए भी देखना जुर्म हो सकता है| उदाहरण के तौरपर महिलाओंके टॉयलेट में पुरुषों का घुसना या जाना इसके तहत जुर्म है|
  • ३५४ डी के तहत स्टॉकिंग याने किसी महिला पर निगरानी रखना याने उसका आना जाना आदि व्यवहार परखते रहना एक जुर्म है| लेकिन किसी महिला को संरक्षण देने के लिए दिया गया कोई ऐसा काम जुर्म के दायरे में नही आता|
  • धारा ३७० महिलाओंका व्यापार करने के संबंध में है|
  • सबसे महत्वपूर्ण बदलाव बलात्कार संबंधी धारा ३७५में लाया गया है| इसके तहत अब शरीर के किसीभी अंग में लिंग घुसाना, अर्थात इसके संमती के बिना जुर्म होता है| जनन अंग, मुँह, गुदद्वार आदि अंगों में जबरन लिंगप्रवेश जुर्म है ऐसा इसका अर्थ है| इसीके साथ महिला के किसी अंग को होठ लगाना याने चुंबन या जनन अंग को स्पर्श करना यौन हिंसा माना गया है| ये भी महत्त्वपूर्ण है की लिंग घुसाने का अर्थ पूर्ण क्रिया से संबंधित नही लेकिन अंशत: लिंगप्रवेश भी अपराधिक ठराया गया है|
  • बलात्कार के मामले में उस महिला का मृत्यू होना या आजीवन बेसूद होना इसके लिये कम से कम सजा उम्र कैद है| गँगरेप याने संघटित बलात्कार भी उम्र कैद के पात्र है|
  • कानुनी और जायज यौनिक संबंध के लिये संमती की उम्र १८ पूर्ण होने की जरुरी है| उसके पहिले सहमती या असहमती का कोई मुद्दा नही हो सकता|

आजकल डीएनए जॉंच के कारण अपराधिक मामलों में एक अहम वैज्ञानिक बदलाव आया है| बलात्कार के मामले में अपराधी या पिडीत व्यक्ती के खून या किसी शारीरिक अंश का अब डीएनए जॉंच से लगभग निर्णायक सबूत मिल सकता है| जैसे की अपराधी के नाखुनों में पिडीत व्यक्ती के चमडी के अंश पाना और इसका डीएनए प्रमाणीकरण होना| वैसे ही वीर्य यौनिक द्रव या खून के तब्बों का नाईट परीक्षण हो सकता है| डीएनए सबूत से ये बिलकूल तय होता है की ये अंश उसी व्यक्ती के है जिससे हम अपराध का संबंध जोड सकते है|

बलात्कार के बाद गर्भधारण

बलात्कार के बाद गर्भधारण न हो इस पर नियंत्रण करना ज़रूरी है। पीडित महिला को चिकित्सक परिक्षण उपरान्त और कानूनी प्रकिया के तुरन्त बाद ही डाक्टर की सलाह से संभोग पश्चात गर्भनिरोधक गोली देनी चाहिये ताकि अनचाहे संभावित गर्भधारण होने से रोका जा सके। अगर इसके पश्चात गर्भधारणहो जाये तो गर्भपात पंजीक़त डाक्टर से करना चाहिये। यह सारी प्रक्रिया पीडिता के लिये शारिरिक, मानसिक और सामाजिक त्रास का कारण होती है इसलिये उसके संवेदनशील व्यवहार जरूरी है।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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