शहरोंमें और आरामदेह जिंदगी के कारण मानवमात्र का स्वास्थ्य कुछ मायनोंमें बिगडा है। सही रहन सहन और भोजन तथा नियमित मेहनत से शरीर स्वस्थ होता है और कार्यशक्ती बढती है। सिवाय श्रमिक लोग के सबको नियमित रूप से व्यायाम करना जरुरी है। इसका स्वास्थ्य विज्ञान और कला भी समझ लेना चाहिये। इससे मधुमेह, अतिरक्तचाप, जोडोंका दर्द, हृदयविकार, अवसाद आदि अनेक रोग टल सकते है। उचित व्यायामसे आयु बढती है और जीवन का आनंद भी। यहॉं व्यायाम के संबंध में कुछ मूलतत्त्व हम समझेंगे।
ज्यादा देर तक कोई काम चलाना पेशियों को सक्षम बनाता है |
स्वास्थ्य शिक्षा के प्रति एक रास्ता, बीच-बीच की आपातकालीन जानकारी देने से ज़्यादा महत्वपूर्ण है।
व्यायाम-मेहनत के लिये ७ प्रमुख उद्देश है।
सूर्यनमस्कार |
मांस पेशी का बल – बलवर्धन के लिये मांसपेशीवाले तंतूओं की संख्या, चौडाई और संग्रहित उर्जा महत्त्वपूर्ण है। सूर्यनमस्कार, जोरबैठक, भार उठाना, आयसोमेट्रिक व्यायाम और कुस्तीजैसे खेलोंसे मांस पेशींका बल बढता है। कई खेलोंमें बल का महत्त्व होता है। मज़बूती और शक्ति कसरत से विकसित की जा सकती है। पर सिर्फ वही पेशियॉं मज़बूत हो पाती हैं जो कसरत में शामिल हों। जैसे कि बुहार के काम से केवल हाथ की पेशियॉं मज़बूत होती हैं।
सॉंस और नाडी तेजी से चलना यह अच्छे कसरत की एक निशानी है |
हृदय और फेफडों की क्षमता – दमसांस के कसरत से हृदय और फेफडोंकी क्षमता बढती है। मॅराथॉन दौड इसका एक उदाहरण है। लेकिन हर कोई मॅराथॉन दौड नहीं सकता। हमको केवल ३० मिनिट दमसांस या एरोबिक व्यायाम पर्याप्त है। इसमें आखरी १० मिनिट उचित गतीसे व्यायाम करना जरुरी है।
ऐसे खेलों को शरीर का सूक्ष्म संतुलन जरुरी है |
लचीलापन – शरीर के कुछ भागों (खासकर पेशियों, जोड़ों और अस्थिबन्धों) को खींच पाने या मोड़ पाने की क्षमता को लचीलापन कहते हैं। तनावसहित व्यायाम से लचीलापन बढता है। बहुत सारे खेलों के पहले खिलाडियों को लचीलेपन के लिये कुछ खिंचाव-तनाव की क्रियाएँ करते हम देखते है। इससे खेलमें या कामकाजमें मोच या पेशी आहत होना हम टाल सकते है। योग शास्त्रमें मांसपेशी और स्नायूबंध तनना, लचीलापन और शिथिलीकरण पर ध्यान दिया जाता है। यह शरीर के पूरे स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण पहलू है। लचीलापन का एक उदाहरण है अपनी हाथों से पैर को छू लेना, लेकिन बिना घुटने मोडके। योग में इसे पश्चिमोत्तानासन कहा करते है|
शारीरिक कसरत से व्यक्ति की सॉंस की दर और दिल की धड़कन बढ़ जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि दिल और फेफड़े सक्रिय पेशियों को ऑक्सीजन पहुँचाते हैं। कसरत से दिल और दिमाग की थकान सहने की क्षमता बढ़ जाती है। इससे शरीर के अंगों, खासकर दिल बीमार होने से बचाव होता है। इससे पूरे शरीर में खून के बहाव में बढ़ोतरी होती है। इसीलिए कसरत के बाद व्यक्ति अधिक चैतन्य महसूस करता है।
कोई व्यक्ति कितनी अच्छी तरह से कसरत कर रहा है इसका पता दिल की रफ्तार से लगाया जा सकता है। उपयुक्त कसरत के बाद दिल की धड़कन की गति बढ़ जाती है। दिल की धड़कन इतनी तक पहुँचा देनी चाहिए २२० में से व्यक्ति की उम्र घटाकर इसका ६० प्रतिशत। (उदा. ६० वर्ष की उम्र हो तो २२०-६० उ १६० जिसके ६० प्रतिशत होते है ११२) दूसरी बात कसरत के बाद दिल की धड़कन को सामान्य होने में पॉंच मिनट से ज़्यादा का समय नहीं लगना चाहिए। कुछ कसरत पसन्द लोगों में आराम के समय दिल की धड़कन अगर ५० या फिर ६० यह होता है और दिल स्वस्थ होने की निशानी है। कम उम्र से कसरत करने से दिल की धड़कन दिल की धड़कन धीमी हो सकती है। इसे ऍथलेटिक हार्ट याने कसरतमंद दिल कहते है।