पेशाब में शक्कर, प्रोटिन जॉंचने के लिये इसका इस्तेमाल होता है, और यह तरीका बेहद सादा और सस्ता है। आँतों की कुछ बीमारियों की जॉंच के लिए पाखाने (मल) की जॉंच उपयोगी होती है। बीमार व्यक्ति को पाखाने का नमूना किसी चौड़े मुँह की बोतल या प्लास्टिक की थैली में इकट्ठा करना चाहिए। नमूने की जॉंच इकट्ठा करने से दो घण्टे के अन्दर-अन्दर ही कर लेनी चाहिए। अगर जॉंच अमीबा के लिए की जा रही है तो सिर्फ ताज़े नमूने में ही नतीजे निकल सकते हैं।
कुछ लक्षण तो सामान्य परख दिखाई देते हैं। जैसे गाढ़ापन, रंग, खून, श्लेष्मा (जैली) या कीड़ों की उपस्थिति काफी आसानी से पहचानी जाती है। अगर मल का रंग सफेद है तो यह पीलिया का सूचक है। अगर ये रंग काला है तो इसका अर्थ है कि व्यक्ति की आँतों में रक्तस्त्राव हो रहा है। कीड़े होने की स्थिति में यह पता लगना ज़रूरी है कि कौन से कीड़े हैं। सूत्र कृमि इतने छोटे होते हैं कि वो आसानी से पकड़ में नहीं आते हैं। अमीबा होने पर मल चिपकने वाला हो जाता है क्योंकि उसमें श्लेष्मा होता है।
इससे खासतौर पर परजीवियों के अण्डे, अमीबा या जिआर्डिया के कीटाणुओं की पुटी, आदि का पता चलता है। अगर मल को गुलगुने नमकीन पानी में डाल कर एक बूँद परखकर हैजे के गतिशील जीवाणू की जॉंच होती है।
अन्य रोगजीवाणू जॉंचने के लिये खास ‘मेडिया’वाली बोतले मिलती है। इसमें बॅक्टेरिया के लिये खाद्य(अगार) होता है और औरोंको रोकने के लिये भी रसायन भी शामील किये हुए होते है। बोतल कुछ तापमान में रख्खी जाती है। इसमे २४-४८ घंटों में कीटाणू-बॅक्टेरिया पनपते है। इसे हमे रोगजीवाणू का पता लगता है।
कफ की जॉंच आमतौर पर रोगाणु के प्रकार का पता करने के लिए किया जाता है। इसका इस्तेमाल तपेदिक की जॉंच उपयुक्त है। तपेदिक अम्लरोधी जीवाणू की जॉंच के लिए ये जॉंच एक्स-रे से ज़्यादा महत्वपूर्ण है।
बलगम के नमूने को इकट्ठा करना और जॉंच दोनों ही ध्यान से करनी चाहिए। अगर नमूना ठीक से नहीं लिया जाए तो इससे तपेदिक होने पर भी जॉंच में नहीं आएगा। ये काफी नुकसानदेह है क्योंकि बीमार व्यक्ति ये सोच कर वापस जाएगा कि उसे कोई बीमारी नहीं है और वो और अधिक बीमारी कफ का नमूना लेने के लिए बीमार व्यक्ति से कहें कि वो सुबह अपना कफ एक चौड़े मुँह वाली बोतल में इकट्ठा करे। बीमार व्यक्ति से कहें कि वो खड़ी स्थिति में आगे की ओर झुके जिससे फेफड़े का नीचे का भाग भी खाली हो जाए। जॉंच के लिए रात भर का इकट्ठा हुआ कफ सबसे अच्छा रहता है। जॉंच के लिए भेजने से पहले कफ के नमूने की बोतल को अच्छी तरह से सील कर दें। ध्यान रखें कि ये कफ भी संक्रमणकारी होता है। प्रयोगशाला में (या गॉंव में भी) कफ का वो संदेहास्पद हिस्सा, जिसके संक्रमित होने का खतरा हो, एक कॉंच की साफ पट्टी पर लिया जाता है। इसे पट्टी पर फैला कर पतली सी तह बना दी जाती है। फिर इसे 4 से 5 सैकेंड के एक छोटे से भाग के समय के लिए लौ में से गुज़ार कर जमाया जाता है। रख देने से पहले ये ध्यान रखना ज़रूरी है कि नमूना पूरी तरह से सूख गया है। इससे तपेदिक के कीटाणु मर जाते हैं और नमूना कॉंच की पट्टी पर जम जाता है। इस नमूने को फिर रंजक से रंगा जाता है और इसकी जॉंच की जाती है। तपेदिक के बैक्टीरिया लाल छड़ों जैसे दिखाई देते हैं।
अगर किसी व्यक्ति के कफ में तपेदिक के बैक्टीरिया न निकलें तो भी अगले दो महीनों में दो और नमूनों की जॉंच करने के बाद ही यह घोषित किया जा सकता है कि व्यक्ति को तपेदिक नहीं है। तपेदिक के नए कार्यक्रम में तीन नमूनों की जॉंच की जाती है: पहला उसी समय, दूसरा रात भर में इकट्ठा हुआ, तीसरा अगले दिन का।
कफ की जॉंच से प्लेग, निमोनिया और अन्य कई बीमारियों का निदान भी किया जाता है।
प्रमस्तिष्कमेरू द्रव वो द्रव है जो कि मस्तिष्क और मेरुदण्ड के अन्दर और निकट बहता है। मस्तिष्कावरण शोथ में प्रमस्तिष्क मेरू द्रव में कुछ बदलाव दिखाई दे जाते हैं। सामान्य प्रमस्तिष्क मेरू द्रव साफ होता है और उसमें कुछ निश्चित मात्रा में ग्लूकोज़ और प्रोटिन होते हैं।
प्रमस्तिष्क मेरू द्रव में मेरुदण्ड में से दो निचली कटि कशेरूकाओं के बीच से लिया जाता है। डॉक्टर इस खाली जगह में एक सूई घुसेड़ते हैं और प्रमस्तिष्क मेरू द्रव निकाल लेते हैं।
इस प्रक्रिया को कटिवेधन (पन्चर) कह सकते हैं। मेरुरज्जू में ऐनेस्थीशिया देने के लिए भी इसी तरीके का इस्तेमाल होता है।