चिकुनगुनिया
lessee mosquito
ईडस का पट्टेदार मच्छर

चिकुनगुनिया एडीस् मच्छरोंके कारण फैलती है। १९६५ के बाद २००६ में इसका फैलाव हुआ था। चिकुनगुनिया याने झुका हुआ आदमी। इस बिमारी में जोडोंके दर्दसे आदमी टेढा-मेढा होता है। इसलिये इसका ऐसा नाम पडा है। यह बिमारी अक्सर बरसातमें होती है। इसके विषाणू जंगलमें बंदरोंमें जीवित रहते है। अत: ये बिमारी कभीकभी मानवी बस्तियोंतक आती रहती है। चिकनसे उसका कोई संबंध नही।

कारण

चिकुनगुनिया एक विषाणुजन्य(वायरस के कारण होने वाला) बुखार है। ये विषाणू एडीस् के मच्छरोंसे फैलते है जो नगरी क्षेत्र में अधिक पाए जाते है। ये एडीस् मच्छर घर और इर्दगीर्द जमा पानी में बढते है। मच्छर काटने के ४-७ दिनों में लक्षण नजर आते है।

रोगनिदान

ठंड लगाकर बुखार, सिरदर्द, मध्यम या अधिक बुखार चलता है। कभी कभी चकते और खून के छोटे छोटे धब्बे निकलते है। इस बुखारमें हाथ, पाव, पीठ और जोडोंमे बहुत दर्द रहता है। कुछ लोगोंकी आँखे लाल दिखती है। बगल, जांघ या गर्दन में गांठसी आती है। चकते हर हफ्ते आती जाती रहती है। इस बिमारीमें जोडोंमें सूजनके साथ अकडन और दर्द होता है। हाथ पैरों की अंगुलियॉं, कलाई, कोहनी, कंधा, पीठकी हड्डी, जॉंघे, घुटने, आदि सभी जोडोंमें दर्द और सूजन होती है। हलचल मुश्किल और दर्दनाक होती है। जोडों में दर्द महिनोंतक रहता है। कभी कभी दर्द सालोसाल भी रहता है। लेकिन इस बिमारीमें बुखारसे रोगी मरता नही है। कभी कभी बिमारीमें उल्टी में काला सा रंग आता है या नाक सें खून निकलता है।

रक्त की जॉंच
check blood malaria
मलेरिया के लिए खून की जॉंच अब
तैयार कीट से ही की जाती है

रक्तपरिक्षणसे बिमारीका निश्चित निदान हो सकता है। इसके लिये एलिझा, पी.सी.आर. आदि विषाणुदर्शक परिक्षण है। रोग फैलने की जानपदिक स्थिती में इस परिक्षणकी आवश्यकता नही होती। क्योंकी रोग आसानीसे पहचाना जा सकता है। आवश्यकता होने पर सरकार की ओर से परिक्षण हो सकते है।

प्राथमिक इलाज

इस बिमारीके लिये कोई खास दवा उपलब्ध नहीं है। सामान्यत: यह बिमारी कुछ हप्तोंमें अपने आप ठीक होती है। दवा के रूप में कोईभी बुखार और दर्द कम करने वाली दवा जैसे पॅरासिटॅमॉल या आयबुप्रोफेन काफी है। एस्पिरिन या स्टेरॉईड ना ले। इससे बिमारी बढती है।

रोकथाम
mosquito-refill

मच्छररोधक दवा की भॉप

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मच्छर की इल्लिया खानेवाली गप्पी मछली

mosquito-racket.

आजकल यह मच्छर रॅकेट काफी प्रचलित है

इस बिमारीमें मच्छरनियंत्रण महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। यह मच्छर घरमें और आस पास के खाली डिब्बे, गुलदस्ते, हौज, एअरकुलरका ट्रे, फालतू टायर्स, मटके, फुटी बोतलें आदि में जमा पानीमें पलते है। हर हफ्ते ये जमा पानी निकाले और फालतू चिजों का सफाया करे। मच्छर घर में ना घुसे इसलिये खिडकियों-दरवाजोंपर जालियॉं लगायें, सोते समय मच्छरदानियॉं लगाएँ। कीटनाशक युक्त मच्छरदानी, मच्छर रोधक धुआँ,अगरबत्ती आदि हरसंभव उपाय से मच्छरों को दूर रखे। पायरेथ्रम आदि कीटनाशकों के फव्वारे के उपयोग से मच्छर नियंत्रित होते है। इस हेतु प्रति हेक्टर २५० मि.ली. रसायन का उपयोग करते है। फव्वारे १० दिन बाद फिर से फव्वारा मारे। इन दो फव्वारोंसे कई हफ्तों तक एडीस्-मच्छर बिलकुल कम होते है। डेंगू में भी यही उपाय करे। चिकुनगुनिया के लिये कोई प्रतिबंधक टिका उपलब्ध नही है।

सूचना
  • मच्छरप्रतिबंध उपायोंका पडोसियों के साथ एकत्रित उपाय करे।
  • इस बिमारीमें सलाईन-इंजेक्शनका कोई लाभ नही होता। केवल बुखार की गोलियॉं काफी है।
  • आयुर्वेदिक या होमिओपॅथीक ईलाज करके देखे।
  • इस बुखारमें कालीसी उल्टी या नाकसे खून निकलनेपर तुरंत वैद्यकीय सलाह ले।
  • कीडों से फैलने वाले बिमारिर्यो के नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एन.वी.बी.डी.सी.पी)
  • आज हमारे देश में मलेरिया, काला आजार,डेंगू, चिकनगुनिया इत्यादि बिमारियों के नियंत्रण के लिए एक संयुक्त कार्यक्रम बनाया गया है जिसे एन.वी.बी.डी.सी.पी. कहा जाता है| इसके पहले मलेरिया, डेंगू, काला-आजार और अन्य बच्छडों और कीडों से फैलने वाली बिमारियों के अलग अलग कार्यक्रम रहते थे|

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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