यह बीमारी महिलाओं में ज्यादा पायी जाती है। अकेलापन इसका एक शुरुवाती मुद्दा हो सकता है लेकिन अनुवंशिकी और जैव रासायनिक कारण इसमें जरुर है। यह भी एक गंभीर बीमारी है। उन्माद को तकनीकी रूप से उन्माद अवसादी विक्षिप्ति या बाइपोलर साइकोसिस कहते हैं क्योंकि इसमें मनस्थिति मेनिया से लेकर गंभीर अवसाद के बीच बदलती रहती है। बहुत अधिक बोलना, हिलना डुलना, बेचैनी, चिड़चिड़ापन या किसी भी कारण के बिना खूब खुश हो जाना इस बीमारी के लक्षण हैं। कभी कभी बातचीत एकदम बेकार हो सकती है।
व्यक्ति खुद को या किसी और को ज़ख्मी कर सकता है या फिर मार भी डाल सकता है। अपने ऊपर कोई नियंत्रण नहीं रहता। बीमारी की स्थिति कुछ हफ्तों से लेकर कुछ महीनों तक चल सकती है। बीच बीच में व्यक्ति ठीक भी रह सकता है। या तो हर बार बीमारी की स्थिति में उन्माद और अवसाद बारी बारी से हो सकते हैं या सिर्फ उन्माद या गंभीर अवसाद की स्थिति हो सकती है। विशेष दवाओं और बिजली शॉक के इलाज से उन्माद अवसादी विक्षिप्ति काफी हद तक ठीक हो सकता है।
इसके लिये अच्छे इलाज उपलब्ध है। दवाओं के साथ प्रकाश किरणों से उपचार मॅग्नेटिक थैरेपी , परामर्श(कौन्सेलिंग), गुड थैरेपी, व्यवहारिक थैरेपी आदि उपयुक्त है। कई महिलाओं को प्रसव के बाद अवसाद महसूस होता है। शायद यह काम का दबाव, घरेलू मुश्किले, बच्चे की निगरानी, सामाजिक दबाव, लडकी होने का दुख आदि कारणों से हो सकता है। ये महिला दुखी दिखाई देती है। बच्चे को दुध पिलाने में उसे ज्यादा दिलचस्पी नही होती, कम नींद और बातचित इसके लक्षण है। कुछ महिलाएँ रोती भी है। दवा उपचार काफी असरदार होता है लेकिन परिवार की सहायता भी जरुरी है।
लंबी लंबी सांस लेने से लाभ होता है। यह बीमारी कुछ महिनों तक रह सकती है। तब तक बच्चे के बारे में भी सावधानी बरतनी चाहिये। आम तौर पर ये अवस्था 2-3 हफतो में निकल जाती है। मनोविकारों में दवाइयों के साथ अलग अलग अन्य उपचार भी काम में आते है जैसे की आर्ट थेरपी, विपश्यना, योग उपचार, आयुर्वेदीय उपचार, होमियोपैथी बुक थेरपी और खास करके कांउसलिंग ।