tantrika tantra मानसिक स्वास्थ्य मस्तिष्क/तंत्रिका तंत्र
साधारण बीमारियाँ
मानसिक तनाव

इन लोगों को लगातार मानसिक तनाव रहता है। बिना किसी कारण के बेचैनी, तनाव, उत्तेजना और डर लगता रहता है। शारीरिक लक्षणों में बहुत पसीना आना, धड़कन बढ़ना, ऐसा लगना जैसे शौच जाने की लगातार ज़रूरत महसूस होना है, सांस तेज़ चलना, गले और छाती में भारीपन, भूख और नींद खत्म हो जाना आदि शामिल होते हैं। कई मामलों में बेहोशी भी जाती है। कंपकंपी और रक्तचाप बढ़ने की शिकायत भी हो सकती है। अक्सर मान लिया जाता है कि ये लोग ‘कमज़ोर दिल वाले’ हैं। यह गलत है। यह हालत भी मनोचिकित्सक की मदद, कसरत और कोई ऐसा काम करना शुरू करने से जिसमें आत्मसम्मान मिले, से बेहतर हो सकती है। दवाईयॉं काफी मददगार होती है।

नींद न आना

अपने आप में यह कोई मानसिक रोग नहीं है परन्तु इससे कई सारी गड़बड़ियॉं हो सकती हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं जिसमें बेचैनी भी शामिल है। बहुत से लोग डाक्टर की मदद लेते हैं। और कुछ शराब और अफीम आदि लेने लगते हैं। इससे नींद तो आ सकती है पर इनसे लत लग सकती है।

हमें नींद न आने के कारण का इलाज करना चाहिए। जीने के तरीके में अधिक अनुशासन जैसे – समय पर खाना, शारीरिक व्यायाम और नियम से समय से सोना ज़रूरी है। अक्सर इन तरीकों से नींद का क्रम फिर से बन जाता है। कभी कभी हम सीपीएम की गोली भी दे सकते हैं, जो कि एक घंटे के अंदर अंदर हल्के शामक के रूप में काम करती है। परन्तु इसे भी नियमित रूप से लेने से बचें। डॉक्टर और दवाएं देकर मदद कर सकते हैं। होम्योपैथी से फायदा हो सकता है। इसके लिए आरसेनिकम, बैलाडोना, सिना, लाइकोपोडियम, नटमूर, नक्स वोमिका, पल्सेटिला, स्ट्रामानिअम और सल्फर में से कोई दवा दें। टिशु रेमेडी में फैरम फॉस, काली फॉस और सिलिका में से कोई दवाएं उपयोग की जाती हैं।

फोबिया(डर)

फोबिया एक तरह की एंगजाइटी गड़बड़ी है। इसमें ऐसी चीज़ों और परिस्थिति से असामान्य डर लगता है जो आमतौर पर डराने वाली नहीं होतीं। फोबिया होने पर व्यक्ति अपने पर से नियंत्रण खो देता है और असामान्य रूप से व्यवहार करने लगता है। खून निकलने, तिलचट्टे और घर में आने वाली छिपकली आदि वो आम चीज़ें हैं जिनसे फोबिया होता है। कई लोगों को सार्वजनिक स्थितियों से फोबिया होता है जैसे कि पब्लिक में भाषण देने से।

फोबिया का इलाज हो सकता है। जिस भी चीज़ से फोबिया हो उससे बचपन में ही निपटना चाहिए। व्यक्ति को दिलासा दिलाएं, उसका मज़ाक न बनाएं। उसी चीज़ से धीरे धीरे और सोचे समझे ढंग से सामना होने पर उससे डर लगना कम हो सकता है।

अवसाद

depressionउन्माद अवसाद विक्षिप्ति की तुलना में यह एक साधारण समस्या होती है। उदासी और डर इसके मुख्य लक्षण हैं और यह दुखद घटनाओं के कारण होता है। थकान, कमज़ोरी, आसपास की चीज़ों में रुचि न रहना, आत्मविश्वास की कमी, भूख न लगना और नींद न आना इसके आम लक्षण हैं। आत्महत्या करने की प्रवृति भी हो सकती है।

जिंदगी के तरीके में सुधार से अवसाद का इलाज हो सकता है। सहानुभूति रखने और समझने वाली दोस्तियॉं, कसरत और नियमित रूप से कामकाज़ में लगने से ज़्यादातर मामलों में फायदा होता है। अगर ज़रूरत हो तो इसका इलाज भी हो सकता है। ज़्यादातर मामलों में यह पूरी तरह से ठीक हो सकता है।

हिस्टीरिया

hysteriaऔरतों में और खासकर गॉंवों में यह बहुत आम है। इस बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं किसी जानी पहचानी शारीरिक बीमारी की नकल करना। असल में व्यक्ति को वह बीमारी नहीं होती। पर ध्यान रहे कि ‘यह बीमारी का बहाना नहीं है’ क्योंकि यह कोई झूंठी बीमारी नहीं है। इससे इन्सान असल में काफी भुगतता है जबकि असल में बीमारी का कोई शारीरिक कारण नहीं होता।

हिस्टीरिया का वास्तविक और आम कारण है बहुत से दु:ख और दमन को चुपचाप सहना। औरतें क्योंकि परिवारों के अन्दर अक्सर काफी दमन सहती हैं इसलिए हिस्टीरिया उनमें अधिक होता है। हिस्टीरिया में जिन बीमारियों की नकल की जाती है वो हैं टिटेनस, आक्षेप, लकवा, छाती में दर्द, पिन या सुइयॉं चुभना, संवेदना चली जाना, दमा, हिचकियॉं आना, खॉंसी, सुनने और देखने में मुश्किल
होना। ये सब क्योंकि अपने आप में गंभीर बीमारियॉं और लक्षण हैं परिवार अपने आप ही इनपर ध्यान देने लगता है। परिवार द्वारा देखभाल और सरोकार दिखाने से कई बार हिस्टीरिया अपने आप ठीक हो जाता है।

कभी कभी सिर्फ सेडेटिव दवा देने से ही काम चल जाता है। कुछ मामलों में अस्पताल ले जाने की ज़रूरत होती है। किसी भी ऐसी बीमारी को हिस्टीरिया का नाम तब तक न दे दीजिए जब तक कि पूरी ज़रूरी जॉंच से पक्का न हो जाए कि व्यक्ति को कोई शारीरिक बीमारी नहीं है। हिस्टीरिया बार बार होता है और उस व्यक्ति में हर बार लगभग उसी तरह होता है। इस बीमारी का असली कारण सामाजिक पारिवारिक होता है। इसलिए परिवार द्वारा चिंता और देखभाल न केवल उस समय ज़रूरी हैं जब हिस्टीरिया की तकलीफ हो रही हो, बल्कि बाकी की ज़िंदगी में भी ज़रूरी हैं।

होम्योपैथी : आरसेनिकम, बैलाडोना, सिना, लाइकोपोडियम, नट मूर, नक्स वोमिका, पल्सेटिला, स्ट्रामोनिअम चुनें।
टिशु रेमेडी : फैरम फॉस, नट मूर, नट फॉस और सिलिका में से दवा चुनें।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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