यह बीमारी सामान्यतया ऐसी है, जोसिर्फ एक साल से कम उम्रके बच्चो में ही पाया जाता है। मेरु-द्रव मस्तिष्क और मेरुदण्ड में एक निश्चित दबाव में बहता है। यह दबाव कई कारणों से बढ़ सकता है। ऐसी स्थितियों में से एक जलशीर्ष है जिसमें सी एस एफ का बहाव रुक जाता है और यह सिर में इकठ्ठा हो जाता है। दबाव के बढ़ने से सिर में सूजन हो जाती है क्योंकि खोपड़ी की हडि्डयाँ अभी तक आपस में जुड़ी नहीं होतीं। सामने का करोटी अन्तराल खुला रह जाता है। और अगर समय पर ऑपरेशन न हो पाए तो इससे मस्तिष्क को चोट पहुँचती है। कभी-कभी साथ में मेरुदण्ड में भी गड़बड़ी हो जाती है। इसे मेनिंगो –मायलो-सील कहते हैं। यह जन्म के समय में ही दिखाई दे जाती है। ऐसे सभी बच्चों को तुरन्त ऑपरेशन के लिए भिजवा देना चाहिए।
जीवन के हर एक क्षण में मस्तिष्क को खून की ज़रूरत होती है। मस्तिष्क के काम करने के लिए ऑक्सीजन और ग्लूकोज़ बहुत ज़रूरी होते हैं। साथ-साथ कार्बन डाईऑक्साइड को बाहर निकालना भी ज़रूरी होता है। मस्तिष्क तीन मिनट से ज्यादा खून के बिना ज़िन्दा नहीं रह सकता। इससे ज्यादा देर तक के बाद हुई खराबी फिर ठीक नहीं हो सकती।
खून की नलियों की बीमारियाँ या खून के बहाव में रुकावट मस्तिष्क के लिए बहुत ही खतरनाक हो सकती हैं। बड़ी उम्र में धमनियों के सख्त हो जाने से मस्तिष्क की खून की नलियों पर असर पड़ता है। धमनियों के सख्त हो जाने को ऐथिरो काठिन्य (धमनियों में सख्त धब्बे पैदा होते हैं, इसके कारण धीरे-धीरे धमनियाँ सख्त हो जाती हैं) कहते हैं। ऐसी नलियों में अवरोध हो सकता है ये अंशत: बन्द अधिविष्ट हो सकती हैं और फट भी सकती हैं। उच्च रक्तचाप से भी मस्तिष्क में रक्त स्राव हो सकता है। मस्तिष्क में अचानक रक्त स्राव होने या खून का प्रवाह आपूर्ति रुक जाने को मस्तिष्क आघात कहते हैं।
थोड़े से समय के लिए मस्तिष्क को खून न मिल पाने से बेहोशी हो जाती है। अगर खून का बहाव जल्दी से ठीक न हो तो मस्तिष्क का वो हिस्सा मर जाता है। अगर यह खराबी काफी बड़ी है तो रोगी तुरन्त मर सकता है। साँस रुकना या दिल का रुकना वो आम कारण हैं जिनसे इसमें मौत होती है। मस्तिष्क में कितनी खराबी आई है उसके अनुसार या तो दौरा पड़ सकता है या किसी खास जगह में पक्षाघात हो सकता है या फिर संवेदनहीनता हो सकती है। पक्षाघात या पैरेसिस (कमज़ोर होना) प्रमस्तिष्क वाहिकामय दुर्घटनाओं के सबसे आम परिणाम हैं। बुढ़ापा, उच्च रक्तचाप और धमनी काठिन्य वो कारण हैं जिनसे यह बीमारी होने का खतरा हो सकता है। हम रक्तचाप को नियंत्रण में रखकर, धमनी-कठिनता के कारणों से बचकर कई एक प्रमस्तिष्क वाहिकामय दुर्घटनाओं से बचाव कर सकते हैं। बहुत से मस्तिष्क आघात से बचाव सम्भव है। बूढ़े लोगों में कभी-कभी बेहोशी का दौरा पड़ जाता है और आवाज़ (बोलने) में गड़बड़ी आ सकती है। यह मस्तिष्क के कुछ भागों में खून न पहुँचने से होता है। ऐसे लोगों को पक्षाघात होने की सम्भावना होती है और ऐसे लोगों ऐस्परीन की हल्की खुराक रोज़ देनी चाहिए।
पक्ष यानी शरीर का आधा हिस्सा। पक्षाघात का अर्थ है पेशियों का काम न कर पाना। यह तब होते है जब तंत्रिकाएँ पेशियों को सक्रिय नहीं कर पाती हैं। तंत्रिकाओं में चोट लगना, शोथ वाली न्यूराईटिस जैसे कोढ़, मेरुदण्ड में चोट लगना और मस्तिष्क के किसी सम्बन्धित भाग में खराबी आ जाने से पक्षाघात हो सकता है। इसके अलावा पेशियों की किसी बीमारी जैसे (मायोपैथीज़) के कारण भी पेशियाँ निष्क्रिय हो जाती हैं। पक्षाघात आमतौर पर तंत्रिका तंत्र की खराबी से होते है। पोलियो, कोढ़ (कुष्ठ) और मेरुदण्ड के किसी हिस्से में खराबी आ जाने पर सम्बन्धित हिस्से की पेशियों में पक्षाघात होता है।
अगर पूरे मेरुदण्ड में चोट लगी हो तो चोट के नीचे के पूरे भाग को लकवा (पॅराप्लेजियाँ) मार जाता है। मस्तिष्क के एक तरफ खून प्रवाह में रुकावट होनेसे या चोट लगने से उसके दूसरे तरफ गर्दन के नीचे हैमीप्लेज़िया या पक्षाघात हो जाएगा। इसे हैमीप्लेज़िया कहते हैं। हैमी का अर्थ है शरीर का आधा हिस्सा। परन्तु साथ ही आधे चेहरे पर भी असर होगा। मस्तिष्क आघात पक्षाघात का अकसर कारण होती हैं।
जिसमें पेशियाँ केवल कमज़ोर पड़ती हैं पैरेसिस कहलाता है। मस्तिष्क आघात से जुड़े हैमीप्लेज़िया में दौरा पड़ने के 48 घण्टों में पक्षाघात का असर और फैलाव पूरा होता है। यानि 48 घण्टों के बाद ही कहा जा सकता है कि कौन-कौन सा भाग प्रभावित हुआ है और पक्षाघात कितना गम्भीर है। निरोगण बहुत धीरे-धीरे होता है और कभी-कभी इसमें महीनों भी लग जाते हैं। निरोगण की हद भी अलग-अलग होती है, कुछ लोग पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं और कुछ बहुत ही कम ठीक हो पाते हैं। अरोगण के लिए शरीर की अन्य कोशिकाओं को खराब पेशियों के काम करने शुरु करने होते हैं।
किसी भी तरह के पक्षाघात का इलाज अस्पताल में ही किया जाना चाहिए क्योंकि इसमें मौत होने की काफी सम्भावना होती है। इलाज के मुख्य सिध्दान्त हैं, अच्छा पोषण, अच्छी देखभाल ताकि पीठ में घाव/शय्याव्रण न बन जाएँ, ऐस्परीन की हल्की खुराक जिससे और प्रमस्तिष्क वाहिकामय दुर्घटना/मस्तिष्क आघात न हो सके और नियमित व्यायाम जिससे रोग जल्दी ठीक हो सके।
बिस्तर पर पड़े रहने के कारण बीमार व्यक्ति के शरीर के उस बिस्तर सम्बन्धित अंगों में घाव बन सकते हैं। ऐसे शय्याव्रण होने से बचाव के लिए बिस्तर पर करवट बार-बार बदल दें। इनसे बचाव के लिए मुलायम व हवादार बिस्तर उपयोगी रहता है। हर पन्द्रह मिनट बाद बीमार की स्थिति बदल दें ताकि बिस्तर के सम्पर्क में आ रहे हर भाग को खून की आपूर्ति हो सके।
अगर पानी भरा रबर का गद्दा मिल सके तो यह बहुत उपयोगी रहेगा। इससे किन्हीं बिन्दू पर सतत दबाव नहीं बन पाएगा। अगर ये न मिले तो फोम के गद्दे का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। बीमार व्यक्ति जो कुछ भी कर पाए उसे वो खुद करने दें। इससे संक्रमण से बचाव होगा और जल्दी ठीक होने में भी मदद मिलेगी।