यह खास तरह के मलेरिया में कंपकंपी, बुखार और पसीना आता है। यह सबकुछ २ से ६ घंटों तक चलता रहता है। हर दूसरे या तीसरे दिन बुखार होता है। शुरुआत एकदम अचानक होती है। इसके बारे में पहले से कुछ अंदाज़ा नहीं लग सकता। अक्सर यह सिलसिला दिनमें या शाम को शुरु होता है, और व्यक्ति को अचानक इसका सामना करना पड़ता है। हमलों के बीच रोगी को कमज़ोरी लग सकती है पर इसके अलावा और कोई परेशानी नहीं होती। इसमें सिर, शरीर व पीठ में ज़ोरदार दर्द होना आम हैं। बुखार शुरु होने के दो या तीन हफ्तों में ही तिल्ली बढ़नी शुरु हो जाती है। अगर मलेरिया का इलाज न हो तो कुछ ही हफ्तों में अनीमिया हो जाता है।
अगर कंपकंपी के साथ बुखार हो तो यह बीमारी मलेरिया हो सकती है। अक्सर ऐसा होता है कि रोगी बुखार वाले दिन डॉक्टर के पास जाता है, दवाई लेता है। अगले दिन रोगी ठीक महसूस करने लगता है। अगर बुखार मलेरियाही था तो ये दूसरा दिन वैसे भी बुखार नहीं होता। और फिर ये सोच कर की बीमारी ठीक हो गई है रोगी आश्वस्त होता है लेकिन अगले दिन बुखार फिर से हो जाता है। इससे रोगी गड़बड़ा जाता है और दवाई या डाक्टर बदलने तक के चक्कर में पड़ जाता है। यह तब तक चलता रहता है जब तक कि मलेरिया का सही इलाज न करवा लिया जाए। इलाज के बिना बुखार १० – ३० दिनों में ठीक तो हो जाता है। पर यह बार बार अलग अलग अंतराल में फिर हो सकता है। यह भी ध्यान रखे कि मलेरिया में ठंड बुखार और पसीना आना हमेशा नहीं होता। कभी कभी लगातार होने वाला बुखार खासकर फालसीपेरम मलेरिया हो सकता है।
पॉंच साल के बच्चों में मलेरिया बुखार किसी भी और तरह के बुखार जैसे होता है। यानि कभी कभी कंपकंपी नहीं होती। एक साल से छोटे बच्चों में मलेरिया में असामान्य लक्षण भी दिख सकते हैं जैसे खॉंसी, पेट में दर्द आदि। मलेरिया फैला ग्रस्त इलाकोंमें स्वास्थ्य कार्यकर्ता को यह जानना चाहिए कि बुखार का कारण मलेरिया या और कुछ है। बच्चों में तिल्ली काफी जल्दी बड़ी हो जाती है। पसलियों के नीचे बायीं ओर सूजी हुई तिल्ली आप हाथ से महसूस कर सकते हैं।
फॉल्सीपेरम मलेरिया में मस्तिष्क पर असर होता है यह अक्सर जान लेवा होता है |
फैल्सीपेरम मलेरिया एक खतरनाक बिमारी है जिसका तुरंत निदान और इलाज न होने से जानलेवा हो सकता है| कुछ साल पहले हमारे देश में वैवाक्स मलेरिया अधिकांश मात्रा में देखा जाता था| मगर धीरे धीरे फैल्सीपेरम मलेरिया की प्रतिशत बढते रही है और अभी अधिक से अधिक मलेरिया के मरीजों मेंफैल्सीपेरम मलेरिया होता है| झारखण्ड, छत्तीसगढ, उडीसा, असम और मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में ९० से अधिक प्रतिशत मलेरिया के मरीजों मेंफैल्सीपेरम मलेरिया होता है|
अच्छे से अच्छे परिस्थिती में फैल्सीपेरम मलेरिया के १००० मरीजों में एक की मौत होती है| (०.१%) मगर सामान्यत:१-३% मरीज मर जाते है| इलाज देरी से हो या न हो, तो १०० में से ३० मरीजों को गंभीर मलेरिया होता है| जब २०% मरीज मर जाते है, यानि गंभीर मलेरिया के हर ३० मरीजों में से ६ की मौत हो जाती है| अत: मलेरिया बुखार का जल्द से जल्द निदान और उपचार करना अतिआवश्यक है|
शुरुआत में वैवाक्स मलेरिया के जैसे ही बुखार और सिरदर्द होता है, मगर अक्सर बुखार हर दिन होता है| न कि हर दुसरा दिन बदन और जोडों में भी दर्द होता है| कई बार मरीज को चक्कर आता है जब की बुखार हल्का ही रहता है, या बिल्कुल नही|
इनमें से कोई भी लक्षण हो तो मरीज को नस से दवा देने की जरुरत होती है, मुँह से नहीं|
यह फैल्सीपेरम मलेरिया का एक प्रकार है जिसमें पेट और आंत के लक्षण प्रमुख होते है| मरीज को लगातार उल्टी, या खून पेचिश होती है| इसके साथ ही उसका शरीर ठण्डा पड जाता है और बी.पी कम हो जाती है और नाडी तेज और कमजोर होती है| खून में गंभीर संक्रमण (सेप्टीसीमिया) के कारण भी यह लक्षण गंभीर मलेरिया के मरीजों में पाए जाते है| फैल्सीपेरम मलेरिया में दिमाग, गुर्दा, फेफडा और गर्भनाल की कोशिकाओं में मलेरिया के परजीवी समा जाते है| इसके कारण विपरीत असर दिखते है, जैसे बेहोशी, झटके, गुर्दा काम न करना, या फेफडे ठीक से काम न करना या गर्भपात|
यह मलेरिया के निदान का सबसे बेहतर तरीका है| मोटा स्मीयर बनाना आसान है| मरीज के ऊंगली को सुई से चुभा कर निकले हुए खून के बूंद को उंगली से ही कॉंच के स्लाइड पर ५० पैसे सिक्के के समान बनाएँ, इसकी जॉंच में बहुत कम मात्रा में मौजूद परजीवी को भी देखा जा सकता है| पहला स्मीयर करना मुश्किल है, और उसमें परजीवी देख पाना भी मुश्किल होता है|
इस कीट से बिना सूक्ष्मदर्शी के उपयोग का, मलेरिया का निदान किया जा सकता है| मरीज के खून की एक बूंद के साथ केमिकल मिलाकर यह जॉंच किया जाता है| इसकी कमी यह है की जॉंच महंगा है और मलेरिया बुखार के पुरा इलाज के बाद भी एक माह तक टेस्ट पॉजिटीव आता है, यानि गलत से बताता है की अब भी मरीज के शरीर में मलेरिया है|
यह किट गरम वातावरण में खराब होने लगता है और इसे २५ डिग्री या उससे कम तापमान में रखने की जरुरत है| हमारे देश में गर्मी के मौसम में तापमान ४५० से उपर हो सकता है| इस तापमान में रखे लए किट क्या ठंड में सही रिपोर्ट बताएंगे? इन सभी कारणवश सूक्ष्मदर्शी से मलेरिया का खून जॉंच करना, आर.डी.के से बेहतर होता है| मगर दूर दराज इलाकों में जहॉं लैब की सुविधा नही है, स्वास्थय कार्यकर्ता के पास आर.डी.के रहना सुविधाजनक होता है|