आम के पेड पर परजीवी पौधा कॅन्सर ऐसाही कुछ होता है| |
कैंसर शब्द अंग्रेज़ी के शब्द क्रेब से बना है; जिसका अर्थ कुछ जो कि बहुत पीड़ादायक, हस्ताक्षेप करने वाला और ज़िद्दी हो। ख़ून और कुछ एक अंगों के कैंसर के अलावा सभी तरह के कैंसर दूसरे अंगों में फैलते हैं।
कैंसर अधिकतर बड़ी उम्र के लोगों को ही होता है, परन्तु कई बार यह बच्चों को भी हो जाता है। भारत में प्रति एक लाख लोगों में से १०० लोग कैंसर का शिकार हैं। कैंसर से त्वचा, पेशियॉं, हड्डियॉं, जोड़, पाचन तंत्र, श्वसन तंत्र, खून, रक्तपरिसंचरण तंत्र, लसिका तंत्र, हारमोन ग्रंथियॉं और तंत्रिका तंत्र और जनन अंग ऐसा कोई भी अंग प्रभावित होते हैं।
कैंसर एक जगह से शुरू होता है और फिर दूर दूर तक पहुँच जाता है। यह लिवर, फेफड़ों और अन्य अंगों तक खून और लसिका के माध्यम से पहुँच जाता है। कुछ अंगों से यह ज़्यादा आसानी से दूसरे अंगों तक पहुँचता है और कुछ से कम आसानी से। भारत में कैंसर के मामलों में से आधे से ज़्यादा मुँह, गले, गर्भाशय ग्रीवा के होते हैं। गर्भाशय ग्रीवा और गर्भाशय के कैंसर महिलाओं को होने वाले कैंसर में से सबसे आम है। सौभाग्य से अंदरूनी अंगों की तुलना में इन में से कैंसर को ठीक कर पाना ज़्यादा आसान है।
कैंसर की शुरूआत काफी धीमी होती है। कभी कभी जगह और कैंसर की स्थिति के हिसाब से ऐसे लक्षण भी प्रकट होते हैं जिनसे पहले से चेतावनी मिल जाती है। इसलिए कुछ कैंसर दूसरों के मुकाबले ज़्यादा आसानी से जल्दी पहचान लिए जाते हैं। कौन सा अंग प्रभावित है इसके हिसाब से विशेष लक्षण और संकेत होते हैं। उदाहरण के लिए स्वरयंत्र के कैंसर से आवाज़ भारी हो जाती है और ग्रासनली के कैंसर से निगलने में दिक्कत होती है। हमें आदत होनी चाहिए कि हम शुरूआती लक्षणों को ही समझ पाएं। अगर जल्दी से इलाज हो जाए तो कई एक तरह के कैंसर पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं। अगर इन पर ध्यान न दिया जाए तो किसी भी तरह के कैंसर से कुछ महीनों या सालों में ही मौत हो जाती है।
ऐसा डर फैल रहा है कि कैंसर के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है। कुछ हद तक ऐसा इसलिए है कि पिछले कुछ दशकों पहले के मुकाबले आज ज़्यादा लोग लम्बी उम्र तक जीते हैं। बड़ी उम्र में वे इस बीमारी के शिकार हो जाते हैं। इसके अलावा कैंसर के मामलों में बढ़ोतरी कैंसर करने वाले कारकों से अधिक सामना होने के कारण भी हो रही है। आजकल चिकित्सीय जॉंच द्वारा जल्दी निदान संभव है और चिकित्सीय जॉंच करवाने की प्रवृति भी बढ़ गई है।
आँख में कॅन्सर जिसमें कॅन्सर का उतक और खून की धमनियॉं स्पष्ट रूप से देख सकते है| |
कोशिकाएं एक निश्चित सीमा में विभाजित हो कर नई कोशिकाएं बनाती हैं। सामान्य रूप से यह विभाजन किसी जगह पर ऊतकों के आकार और कोशिकाओं की संख्या के अनुसार होता है। उदाहरण के लिए त्वचा की कोशिकाएं हर समय बनती रहती हैं पर इतनी भी तेज़ी से नहीं कि कुछ दिनों में त्वचा मोटी ही हो जाए। त्वचा की कोशिकाओं का नष्ट होने और नई कोशिकाओं के बनने के बीच संतुलन रहता है। इस तरह से कोशिकाओं और ऊतकों के प्रकार और इनकी संख्या में वृद्धि एक सीमा में ही होती है। और सामान्यत: ऐसा भी नहीं होता कि त्वचा की कोई कोशिका खून के माध्यम से कहीं और पहुँच कर फंस जाए और वहॉं जाकर विभाजित होने लगे।
कैंसर की कोशिकाएं ये सारे नियम तोड़ देती हैं। कोशिकाओं और ऊतकों की वृद्धि अनियमित हो जाती है। कैंसर की कोशिकाएं बड़ी हो जाती हैं और पास के ऊतकों और अंगों में भी घुस जाती हैं, खून या लसिका में चली जाती हैं और जहॉं भी वे घुस जाती हैं वहीं ऊतकों के साथ अटक जाती हैं। ऐसा क्यों होता है? कुछ कोशिकाएं इस तरह से व्यवहार क्यों करती हैं?
जिस समय कोशिकाएं विभाजित होने से उनकी संख्या में वृद्धि होती है उस समय कोशिकाओं की जीन में कुछ असामान्य परिवर्तन हो जाते हैं। ऐसे बदलाव कभी कभी ही होते हैं। परन्तु इनके होने की संभावना काफी होती है क्योंकि हमारे शरीर में हर समय लाखों करोड़ों कोशिकाएं विभाजित होती रहती हैं। इस तरह से जीन में बदलाव आने से कोशिकाएं असामान्य रूप से व्यवहार करने लगती हैं। इस तरह की कोशिकाएं दूसरी कोशिकाओं की तुलना में ज़्यादा तेज़ी से बढ़ती हैं और किसी एक जगह पर असामान्य ऊतकों का भंडार बना लेती हैं। खून की आपूर्ति न होने के कारण इनमें से कुछ कोशिकाएं तो मर जाती हैं। रगड़ वगैरह से इनमें से कुछ में से रक्त स्त्राव और अल्सर हो सकता है। परन्तु इस तरह बनी बाकी की कोशिकाएं बढ़ती रहती हैं। इनसे गांठ, रसौली या अल्सर/छाला बन जाता है।
इस अवस्था को जिसमें कैंसर के ऊतक आसपास के ऊतकों में अतिक्रमण कर रहे होते हैं, लोकल इनवेज़न (आक्रमण) अवस्था कहते हैं। इसके बाद ये कोशिकाएं खून या लसिका के माध्यम से दूसरी जगहों तक पहुँच सकती हैं। जब कैंसर की कोशिकाएं लसिका की नलिकाओं में घुसती हैं तो सबसे पहले उनके रास्ते में लसिका ग्रंथियॉं रोक लगाती हैं। यहॉं कैंसर की कोशिकाएं बढ़ कर रसौली बना लेती हैं जो सख्त मगर दर्द रहित होता है। ग्रथियों से कैंसर की ये कोशिकाएं देर सबेर लसिका तंत्र में घुस जाती हैं। इस अवस्था में कैंसर कोशिकाएं संचरण में तैरती हुई फेफड़ों, लिवर या किसी भी और नलिकाओं के जाल तक पहुँच जाती हैं और वहीं बढ़ती रहती हैं। अलग अलग तरह के कैंसर का फैलने का मार्ग भी अलग अलग होता है। उदाहरण के लिए स्तन कैंसर के मुकाबले पुरस्थ का कैंसर ज़्यादा तेज़ी से एक जगह से दूसरी जगह पर फैलता है।
चिकित्सीय विज्ञान में कैंसर एक बहुत अधिक अच्छी तरह से अध्ययन की गई बीमारियों में से एक है। परन्तु फिर भी हमें इस बारे में अभी बहुत कुछ जानना बाकी है कि सामान्य कोशिकाओं और ऊतकों में कैंसर क्यों शुरू हो जाता है। इस बारे में सिर्फ यही जानकारी है कि कोशिका के अनुवंशिक हिस्से में बदलाव आने से ऐसा होता है। परन्तु अनुवंशिक बदलाव क्यों होता है यह आजतक पता नहीं चल पाया है।
कुछ रसायन, खासकर टार के यौगिक, पेंट में इस्तेमाल होने वाले यौगिकों, ऐस्बेस्टस के रेशों, पैट्रो रसायनों के जलने से निकलने वाले रसायनों और तम्बाकू में पाए जाने वाले निकोटिन आदि को कैंसर का खतरा बढ़ाने वाले रसायन माना जाता है। इसका अर्थ यह है कि जो लोग इन रसायनों के संपर्क में आते हैं उनमें कैंसर होने की संभावना उन लोगों से ज़्यादा होती है जो इनके संपर्क में नहीं आते। इसलिए धूम्रपान करने वाले लोगों में श्वसन तंत्र के कैंसर होने का खतरा उन लोगों के मुकाबले ज़्यादा है जो धूम्रपान नहीं करते। ऐस्बेस्टस की फैक्टरी में काम करने वाले लोगों को औरों के मुकाबले फेफड़ों के कैंसर का खतरा ज़्यादा होता है।
परमाणु विभाजन से निकलने वाली विकिरणें और चिकित्सा में निदान के लिए इस्तेमाल होने वाली एक्स रे विकिरणें रेडियोधर्मी किरणों के उदाहरण हैं। आपने शायद सुना ही होगा कि प्रसिद्ध शोधकर्ता मेरी क्यूरी को लंबे समय तक रेडियम (एक रेडियोधर्मी पदार्थ है) के साथ काम करते रहने के कारण त्वचा का कैंसर हो गया था। विकिरणों से उनके संपर्क में आने वाली कोशिकाओं में अनुवंशिक बदलाव आ जाते हैं इससे कैंसर हो सकता है। कैंसर की घटनाएं और इसका फैलने की दर परमाणु संयंत्रों और रेडियोधर्मी फालतू पदार्थ के फेंकने की जगहों के पास काफी ज़्यादा होती है। हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बंमों से हज़ारों लोग मारे गए थे और बचे हुए बहुत से लोगों को कैंसर हो गया था।
गर्भाशय ग्रीवा का नीचे से दिखनेवाला रूप सामान्य, दुसरे में खरबुरा |
अगर किसी जगह पर लगातार किसी चीज़ से रगड़ आदि लगे या किसी शोथ हो तो इससे कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर इसके लगातार क्षोभ ग्रस्त होने से जुड़ा है। मुँह का कैंसर तंबाकू, चूना या पान मसाला चबाने की आदत से जुड़ा है।
बहुत अधिक मिर्च खाने की आदत से पेट का कैंसर हो सकता है क्योंकि इससे अमाशय की अंदरूनी परत शोथ ग्रस्त हो जाती है। इसी तरह से शराब पीना लिवर के कैंसर से जुड़ा है। इसी तरह से खान पान की खराब आदतों के कारण बड़ी आंत का कैंसर हो सकता है।
कुछ वायरसों से कैंसर हो जाता है। उदाहरण के लिए अफ्रीका में पाया जाने वाला बर्किट लिंफोमा। वायरसों से भी कोशिकाओं में अनुवंशिक बदलाव आ जाते हैं जिनसे कैंसर हो सकता है। कई तरह के कैंसर का संबंध वायरस से होने वाले संक्रमणों से जुड़ा होने से संबंधित अध्ययन हो रहे हैं। लोग कभी कभी यह दलील देते हैं कि बहुत से धूम्रपान करने वाले लोगों को कैंसर नहीं होता परन्तु धूम्रपान न करने वालों को हो जाता है। परन्तु इस दलील से फेफड़ों के कैंसर का धूम्रपान से संबंध को नकारा नहीं जा सकता। यह भी साबित हो चुका है कि कैंसर करने वाले कारकों से जितना ज़्यादा संपर्क हो कैंसर होने की संभावना उतनी ही ज़्यादा होती है।