अक्सर बुखार चेहरे से ही दिखाई देता है |
बुखार खुद एक बीमारी नही, केवल किसी बीमारी का लक्षण है। बीमारी का निदान हो तब असली उपचार संभव है। अक्सर हम इस लक्षण का ही उपचार करते है। याद रखें कि हमें केवल बुखार का इलाज ही नहीं करना है परन्तु उसके कारण का भी इलाज करना है। इसके लिए कई सारी चीज़ें करनी पड़ती हैं। जैसे कि रोगाणु नाशक दवाएँ देना, फोड़े में से मवाद निकालना, जखम को साफ करके उसकी मरहम पट्टी करना आदि।
बुखार सब उम्र में एक आम लक्षण होता है |
कभी-कभी हल्का बुखार होता है या फिर वायरस के संक्रमण के कारण होता है। पहली स्थिति में ज़्यादा कुछ करने की ज़रूरत नहीं होती। और दूसरी स्थिति में जीवाणु नाशक दवाएँ काम नहीं करतीं। अगर ज़्यादा बुखार कम करना हो तो गीले कपड़े से बदन पोंछने और ऐस्परीन या पैरासिटामोल की गोलियों से फायदा होता है। आपको ध्यान रखना चाहिए कि बुखार किसी भी संक्रमण से निपटने के लिए शरीर का एक आवश्यक तरीका है। इसलिए ज़्यादातर मामलों में हल्का बुखार उपयोगी ही होता है। और हर मामले में बुखार कम करना ही उद्देश्य नहीं होता। पर अगर बुखार ज़्यादा तेज़ हो और इससे किसी बच्चे में झटका की स्थिति बन रही तो बुखार कम करने के लिए इलाज करना ज़रूरी होता है।
आम लक्षण और शरीर तंत्रोंका संबंध
बुखार के लिए गुनगुने पानी से बदन पोछना अच्छा प्राथमिक इलाज है |
ज़्यादातर मामलों में गीले कपड़े से बदन पोंछना उपयोगी होता है। यह एक जॉंचा हुआ घर में इलाज का तरीका है। कपड़ा गीला करने के लिए ठण्डा पानी इस्तेमाल न करें, इससे व्यक्ति को कपकपाहट होगी। गीले कपड़े से पोंछने से वाष्पन द्वारा शरीर की गर्मी बाहर निकल जाती है। इसी से बुखार कम होता है। इसलिए पानी का ठण्डा होना ज़रूरी नहीं होता।
ऐस्परीन या पैरासिटामोल बुखार उतारने की अच्छी दवाएँ हैं और पूरी दुनिया में लोग इनका इस्तेमाल करते हैं। आईबूप्रोफेन भी बुखार कम करने या उतारने की दवा है। इन दवाओं के बारे में और जानकारी आपको एक अन्य अध्याय में मिल जाएगी। ये सारी दवाएँ मस्तिष्क में स्थित शरीर के केन्द्रीय तापमान नियंत्रण क्षेत्र के ऊपर असर करती हैं।
आयुर्वेद में बुखार के लिए कुछ आम दवाएँ बताई गई हैं। खाना बन्द करना भी अच्छा माना जाता है। बुखार में बुहत सारी जड़ी बूटियॉं इस्तेमाल की जाती हैं। तुलसी, गुडची, नागरमोथा, खस और एलोए ऐसी कुछ जड़ी बूटियॉं हैं। गोदान्ती का मिश्रण (२०० से ३०० मिली ग्राम) दिन में ३ से ४ बार लेना उपयोगी होता है। गोदान्ती से बनी हुई गोलियॉं भी उपलब्ध हैं। तिक्तक घी भी उपयोगी होता है। आमतौर पर सुबह-सुबह १५ से २० मिली लीटर घी लिया जाना चाहिए। इसे एक हफ्ते तक खाली पेट लेना होता है।
आयुर्वेद के अनुसार सुदर्शनवटी या त्रिभुवकिर्तीकी २-२ गोली दिन में २-३ बार ले सकते है। बुखार में पानी और द्रवपदार्थ जादा मात्रा में पिने चाहिये। तुलसी का चाय याने काढा भी ठीक रहता है। बुखार जादा हो तब गुनगुने पानी से बदन पोछ लेना तुरंत हितकारक होता है।
बुखार में कुछ गंभीर लक्षण इस प्रकार है जिसके लिये तुरंत डॉक्टरी इलाज जरुरी है।