मलेरिया

हर साल मलेरिया से काफी लोग बीमार होते हैं और काफी मौतें भी होती हैं। भारत का एक राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम है, जो चार दशकों से चल रहा है। पर यह बीमारी देश में समा सी गई है। मुंबई शहरमें भी मलेरिया से मौते हो रही है। यहॉं बरसात में गढ्ढों में पानी, घरोंके उपरवाले पानी की टंकिया, गृहनिर्माण के कारण जमा हुआ पानी, आदि सब मच्छर पनपनेकी जगहें मौजूद होती है। गॉंवोसे आये मजदूर भी अपने साथ मलेरिया के परजीवी लाते है। इन सबके कारण मुंबई जैसे शहर भी मलेरिया के शिकार बन गये है।
मलेरिया एक छोटे से परजीवी, जिसे प्लासमोडियम कहते हैं, से होता है। यह मनुष्य में मादा ऐनोफलीज़ मच्छर के काटने से पहुँचता है। प्लासमोडिया चार तरह के होते हैं। परन्तु प्लासमोडियम वाईवैक्स और फॉल्सिपेरम सबसे ज़्यादा आम है। फालसीपेरम से होने वाला मलेरिया से मौत भी हो सकती है।

मच्छर से फैलाव

मलेरिया का परजीवी इंसान के शरीर में मादा ऐनोफलीज़ मच्छर के काटने से पहुँचता है। इसलिए मलेरिया उन क्षेत्रों और उन मौसम में ज़्यादा होता है जहॉं और जब ऐनोफ्लीज़ तरह के मच्छर ज़्यादा होते हैं। इसलिए भारत में जुलाई से नवम्बर के महीनों में मलेरिया ज़्यादा होता है इस मौसम में जगह जगह बरसात का पानी इकट्ठा होता है। यह शहरों के मुकाबले गॉंवों में ज़्यादा होता है।
मध्य भारत में सबसे ज्यादा मलेरिया होता है, अधिकांश जगहों पर मलेरिया बरसात के बाद बढता है| (अक्तुबर माह से)कई जगहों में मलेरिया ठंड के मौसम में होता है| (नवम्बर से फरवरी तक) जब की उडीसा के बहुत इलाकों में साल में दो बार बढता है – बरसातों के पहले जून में, और वर्षा के बाद अक्तुबर में, अत: हमारे देश में अलग अलग समय मलेरिया उभरता है| इसका मतलब यह नहीं है की अन्य समय मलेरिया नहीं फैलता- उडीसा में साल भर मलेरिया फैलता है और मौजूद रहता है| जब लोग गॉंव और छोटे शहर से काम के लिए शहरों में जाते है, उनमें से कई लोगों के शरीर में मलेरिया परजीवी रहने से, यह मच्छरों के माध्यम से शहर के लोगों में फैल सकता है|

मलेरिया का मच्छर
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मलेरिया के परजीवी मादा ऍनाफिलीस
मच्छर के काटने पर वे शरीर में घुस जाते है

ऐनोफलीज़ मच्छर साफ पानी में प्रजनन करते हैं। (जबकि क्यूलैक्स प्रकार के मच्छर खड़े हुए गंदे पानी में प्रजनन करते हैं)। इसलिए ऐनोफलीज़ मच्छर के लिए इकट्ठा हुआ बरसात का पानी, सिंचाई के साधन और रसोई और गुसलखाने से निकले पानी में पनपता है। कुछ मच्छर प्रजाति झरनों और नहरों में भी प्रजनन करते हैं। इसलिए मलेरिया शहरों के मुकाबले गॉंवों में अधिक होता है। एनोफिलीस मच्छर को आसान से पहचान सकते है| उसका पिछला हिस्सा सिर के स्तर से ऊँचा रहता है| उसके लार्वा पानी के स्तह के समानांतर तैरता है|
मच्छर अंधेरे और गीले स्थानों पर छुपे रहते हैं। प्रजनन की जगह से एक किलो मीटर दूर भी मच्छर घूमते हैं। इसलिए चाहे गॉंव में केवल कुछ एक प्रजनन की जगहें हों, पूरा गॉंव मलेरिया से प्रभावित हो सकता है। इसलिए मलेरिया से बचने के लिए समुदाय के स्तर पर काम करने की ज़रूरत होती है। ऐनोफलीज़ मच्छर को पहचानना मुश्किल नहीं होता क्योंकि यह एक खास तरह से बैठता है। इसके लार्वा पानी की सतह के समानान्तर तैरते हैं। दूसरी ओर क्यूलैक्स के लार्वा पानी के अंदर एक खास कोण में रहते हैं। ये मच्छर मुख्यत: रात में ही हमला करते हैं। कुछ तरह के मच्छर जानवरों को भी काटते हैं। असल में केवल मादा मच्छर ही काटती है क्योंकि इसे अंडे देने के लिए खून की ज़रूरत होती है। नर मच्छर तो फूलों से ही अपना खाना लेता है।

मलेरिया का परजीवी

मलेरिया के परजीवी के जीवन चक्र में मनुष्य और मच्छर दोनों की ज़रूरत होती है।

मलेरिया के परजीवी के जीवन चक्र का मनुष्य के अंदर वाला हिस्सा
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खून में लाल रक्त कोशिका होती है
जिस पर मलेरिया परजीवी का हमला होता है

जिस व्यक्ति को मलेरिया हुआ हो, उसके खून में मलेरिया का परजीवी आ जाता है। इसके बाद जिगरमें पहुँचते और पनपते है। हमले के १० से १५ दिनों में ये परजीवी नर या मादा रूप में बदल जाते हैं। जब कोई मच्छर यह खून चूसता है तो ये रूप उसके पाचन तंत्र में घुस जाते हैं।

बीमारी करने वाले सूक्ष्म जीवाणु और परजीवी pdf

मच्छर में फ्लायमोडियम परजीवी

१० से २० दिनों में नर और मादा तरह के परजीवी मच्छर के पाचन तंत्र में एक दूसरे से मिलते हैं और लाखों बीजाणु बना लेते हैं। ये बीजाणु मच्छर की लार की ग्रंथियों में आ जाते हैं। इसके बाद इस मच्छर के काटने से संक्रमण हो सकता है।
एक बार संक्रमण होनेपर एक मच्छर अपनी छोटी सी पूरी जिंदगी में संक्रमणकारी बना रहता है। दूसरी ओर मनुष्य के शरीर में रह रहे मलेरिया के परजीवी जिगर में निष्क्रिय पड़े रहते हैं। इसलिए मलेरिया महीनों और कई बार सालों बाद भी दोबारा हो सकता है। ऐसा फालसीपेरम को छोड़ कर सभी तरह के मलेरिया के परजीवियों में होता है।

रोग – विज्ञान

मच्छर के काटने से मनुष्य शरीर में घुसे स्पोरोज़ाइट तेजी से जिगर में पहुँच जाते हैं। वहॉं वो तेजी से मीरोजोइट रूप में बदल जाते हैं। इसके बाद वो लारको पर हमला करते हैं। यह प्रक्रिया मच्छर के काटने के १० – १५ दिनों बाद होता है।
लारको में ये परजीवी ४८ से ७२ घंटों में तेजी से अपनी संख्या बढ़ाते हैं। लारकोंमें हीमोग्लोबिन चट कर जाने के बाद वो कोशिकाओं से बाहर निकल जाते हैं। ऐसा लाखों लारको में एक साथ होता है। अब परजीवियों की एक नई फौज और लारको पर हमला करती है। कुछ दिनों तक यह चक्र चलता रहता है। इस दौरान कंपकंपी आती है और बुखार भी होता है। इसी कारण से मलेरिया का बुखार हर दूसरे या तीसरे दिन होता है। अगर परजीवियों की दो टोलियॉं लारको में से एक दिन छोड़ कर निकलती हैं तो बुखार रोज़ भी हो सकता है। क्यों की मलेरिया परजीवी लाखों लाल कोशिकाओं को तोड डालते है| मलेरिया के मरीजों में अक्सर खून की गंभीर कमी देखने को मिलती है|
तिल्ली का आकार बड़ा हो जाता है क्योंकि इसमें खराब हुई लारको का अंबार लग जाता है। कभी कभी मलेरिया का इलाज न होने पर तिल्ली में सूजन भी आ सकती है। ऐसी सूजी हुई तिल्ली ज़रा सी चोट से ही फट सकती है इससे गंभीर आंतरिक रक्त स्त्राव हो सकता है। बुखार के दो हफ्तों बाद, परजीवी गैमेटोसाइट याने नर-मादा रूप में बदल जाते हैं।

गर्भ के दौरान मलेरिया

गर्भवती महिलाओं को मलेरिया होने से गर्भपात, मरा भ्रूण पैदा होने, भ्रूण का वजन कम होने, या समय से पहले बच्चा होने की संभावना रहती है। इसे मॉं की मृत्यु तक हो सकती है। मलेरिया के परजीवियों को गर्भनाल से खास आकर्षण होता है। जहॉं से ये गर्भ में पल रहे शिशु तक भी पहुँच जाते हैं। ऐसे में भ्रूण को भी मलेरिया हो सकता है। इसी से भ्रूण की वृद्धि भी ठीक से नही होती। कभी कभी गर्भपात या मरा भ्रूण पैदा होने की संभावना रहती है।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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