रक्ताल्पता में जीभ, नाखून और आँखे निस्तेज दिखती है |
अनीमिया का मतलब है कि शरीर में खून की मात्रा कम होना। अनीमिया से पीड़ित व्यक्ति पीला दिखता है। भारत में करीब ४० प्रतिशत महिलाएं और २० प्रतिशत पुरुष अनीमिया से पीड़ित हैं। यह खून में हीमोग्लोबिन और लोहे की कमी से होता है। हीमोग्लोबिन लोहे और प्रोटीन से बनता है। यह लोहे की कमी वाला अनीमिया है। बच्चों को भी अनीमिया हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मॉं का दूध और बच्चों के खाने में लोहे की मात्रा कम होती है। कभी कभी अनीमिया खून में लाल रक्त कोशिकाओं (लारको) की कम संख्या के कारण भी होता है। कुछ दवाओं जैसे क्लोराफिनेकोल और एनालजीन से खून के बनने में रुकावट आती है। इस कारण से एनालजीन पर अब प्रतिबंध है।
इन दवाओं से अविकासी अनीमिया हो जाता है। मलेरिया जैसी बीमारियों से बड़ी संख्या में लाल रक्त कोशिकाएं बरबाद हो जाती हैं। इससे रक्तसंलायी (हिमोलिटिक) अनीमिया हो जाता है। कुछ जनजातियोंमें अनीमिया का कारण खून में हीमोग्लोबिनका असामान्य होना है। इसको सिकल सैल अनीमिया कहते हैं। यह आनुवांशिक होता है यानि माता पिता से बच्चों में आ जाता है।
नीचे की तालिका में पुरुषों, महिलाओं और बच्चों में हीमोग्लोबिन की मात्रा दी गई है। औरतों और बच्चों में पुरुषों के मुकाबले कुछ कम हीमोग्लोबिन होता है।
हीमोग्लोबिन लोहे और प्रोटीन का एक जोड है। यह लाल रक्त कोशिकएँ (लारको) का एक बड़ा हिस्सा होता है। लारको का अवधी कुल १२० दिनों का होता है। इसके बाद वो तिल्ली में टूट जाती हैं। ज़्यादातर हीमोग्लोबिन फिर से संचरण में आ जाता है। इससे अस्थि मज्जा फिर से लाल रक्त कोशिकाएं बनाता है। हीमोग्लोबिन का कुछ हिस्सा दोबारा इस्तेमाल नहीं हो सकता। यह पीले रंग बिलिरूबिन होता हैं। आखिर में यह पेशाब और टट्टी में चला जाता है, जिसके कारण ये पीले दिखते हैं।
इंसानों को रोज़ १ से ३ मिलीग्राम लोहे की ज़रूरत होती है। हरदिन पुरुषों को १ मिली ग्राम लोहेकी जरुरत होती है। महिलाओं को ३ मिली ग्राम तक लोहे की ज़रूरत होती है। क्योंकि वो माहवारी के समय और बच्चे के जन्म के समय कुछ लोहा गवां देती हैं।
हमारे देश में अनीमिया के लिए ७ महत्वपूर्ण कारण हैं।
हालांकि शरीर को बहुत कम लोहे की ज़रूरत होती है, फिर भी अनीमिया की बीमारी बहुत अधिक पाई जाती है।
हरी सब्जियॉं, गुड़, बाजरा, मांस, मछली, लोहे के बर्तनों से भी लोहा मिलता है |
लोहा केवल कुछ ही खाने की चीज़ों में मिलता है। हरी सब्ज़ियॉं और अनाज के छिलके शाकाहारी लोगों के लिए लोहे के अच्छे स्त्रोत हैं। लोहे के बर्तनोंसे भी हमे कुछ लोहा प्राप्त होता हैं। गुड़ में भी लोहे की मात्रा काफी होती है। क्योंकि गुड़ लोहे की कढाई में बनता है।
मांसाहारी भोजन के तुलना में शाखाहारी भोजन में लोहे की मात्रा कम होती है और इसका अवशोषण भी कम होता है| लोहा सोखने के लिए विटामिन सी बहुत मदद करता है, क्यों की शाकाहारी भोजन में विटामिन सी भी अक्सर मौजूद रहता है, काफी हद तक लोहा का अवशोषण हो पाता है|
शाखाहारी भोजनों में इन पदार्थों में लोहे की मात्रा अधिक होती है| पालक, साग, अनाज (खासकर बाजरा) चना, लोभिया (बरबट्टी), दालें ,राजमा, सोयाबीन, आलू (छिलके के साथ), तिल, महर, रागी (नाचनी, मडिया) अंकुरित मूंग या अंकुरित काला चना, कद्दू के बीज में भी लोहा है|
मांसाहारी भोजन में से गोमांस में सबसे अधिक लोहा मौजूद है| हॉलाकि कई मॉंसाहारी इसे नही खाते है| इसके अलावा केकडा, जिगर और लाल मॉंस में लोहा अधिक मात्रा में मौजूद है| चिकन, अंडे और दूध में लोहे की मात्रा बहुत ही कम है। मासाहारी खाने की चीजे़ं जैसे लिवर, मांस और केकडा लोहे के बेहतर स्त्रोत हैं। शाकाहारी स्त्रोतों से मिलने वाले लोहे का अवशोषण मुश्किल होता है।
अंकुश कृमि लम्बे समय तक खूनी पेचिश, बवासीर और लम्बे समय तक संक्रमण (जैसे तपेदिक) कॅन्सर और मलेरिया में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से खून की क्षति होती है। इससे अनीमिया की बीमारी हो जाती है। कैंसर से भी हीमोग्लोबिन के स्तर में तेज़ी से कमी आती है।
अनीमिया कुछ हफ्तों या महीनों में होता है। और जब तक यह बहुत गंभीर नहीं हो जाता (यानी मान हीमोग्लोबिन २ – ३ ग्राम तक पहुँचना) तब तक इसका पता ही नहीं चलता। रोगियों को बहुत कम महसूस होता है की उन्हें कोई बीमारी है। ज़्यादातर मामलों में जॉंच से ही इसका पता चलता है। इसमें सबसे आम शिकायत कमज़ोरी की होती है। काम करने की क्षमता में कमी, थकान, बेहोश होना, धड़कन और सिर में दर्द सभी कमज़ोरी के ही कारण होते हैं।
अनीमिया ज़्यादा हो तब ज़्यादा काम करने पर थकान और सांस तेजी से चलता है। ऐसे में सभी ऊतकों तक खून पहुँचाने के लिए दिल को ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है। इससे धड़कन महसूस होती है। पैरों में सूजन गंभीर अनीमिया की निशानी होती है। खून में प्रोटीन की कमी से खून की पानी रखने की क्षमता कम हो जाती है। ऐसे में अतिरिक्त पानी ऊतकों में पहुँचकर जम जाता है।
जीभ, नाखूनों, आँखों और यहॉं तक की त्वचा में निस्तेजता (पीलापन) अनीमिया के लक्षण हैं। अनीमिया होने पर बार बार संक्रमण होने लगते है (जैसे कि त्वचा की संक्रमण)।
आयु और लिंग | सामान्य | अनीमिया पीड़ित |
६ महीने से दो साल तक के बच्चों में | ११ | ११ से कम |
२ साल से १४ साल तक के बच्चों में |
१२ | १२ से कम |
१४ साल से बड़े पुरुषों में |
१३-१६.५ | १३ से कम |
१४ साल से बड़ी महिलाओं में (गर्भावस्था के समय के अलावा) |
१२-१४.५ | १२ से कम |
गर्भवती महिलाओं में |
११-१३ | ११ से कम |
खून पर अब कई जॉंचे होती है |
हांलाकि नाखूनों, आँखों और त्वचा में निस्तेजता से अनीमिया का पता चल जाता है, अनीमिया का स्तर जांचना ज़रूरी है। नीचे अनीमिया की जांच के लिए कुछ आसान टैस्ट दिए गए हैं।
हीमोग्लोबीनोमीटर |
यह तरीका हीमोग्लोबिन की जांच का पुराना और आम तरीका है। हम यह तकनीक आसानी से सीख सकते है। बायें हाथ की बीच की उंगली में से सूई चुभा कर खून प्राप्त करे। खून की मापी गई मात्रा एक पिपेट में इकट्ठी करे। इसे एक ट्यूब में एसिड के मानक तनु घोल में मिलाइये। एसिड से लाल रक्त कोशिकाएं टूट जाती हैं और उनमें से हीमेटिन निकल जाता है। हीमेटिन हीमोग्लोबिन का एक उत्पाद होता है। दस पंद्रह मिनट बाद इस ट्यूब में उतना आसुत पानी डाला जाता है जितने से घोल का रंग हीमोग्लोबीनोमीटर के कांच के रंग से मेल खाने लगे। इस तरह ट्यूब में तनु हुए खून की कुल मात्रा से हीमोग्लोबिन की मात्रा का ग्राम प्रतिशत में पता चलता है।
यह खून की मात्रा नापे का सबसे पुराना तरीका है और इसे करने के लिए लैब की जरुरत नही है| मगर इससे देखा गया है की जॉंच के लिए सही मात्रा में खून नापना मुश्किल है और औजार के कॉंच का रंग भी समय से हल्का हो जाता है, जिससे खून की मात्रा का सही अंदाज करना मुश्किल होता है| एक की मरीज की जॉंच अलग लोगों द्वारा करा जाए तो अलग नाप आता है क्यों की रंग की समानता का अंदाजा में भी लोगों के बीच फरक पडता है|
रोगी के खून की एक बूंद एक मानक सोखते कागज़ (ब्लौटिंग पेपर) पर डालें (टालक्विस्ट पेपर)। इससे आए रंग का मिलान मानक लाल धब्बों से करें। जिस धब्बे से रंग मिल जाता है उससे हीमोग्लोबिन की मात्रा का पता चलता है। साहली के तरीके के मुकाबले इस तरीके में सिर्फ अंदाजन मान ही पता चल पाता है। आधुनिक लॅबमें इसके अन्य तरीकेभी उपलब्ध है जैसे कोलरीमीटर|
हीमोग्लोबिन की मात्रा की जांच के अलावा अनीमिया के प्रकार की जानकारी के लिए कभी कभी लारको की जांच भी ज़रूरी होती है। खून की अन्य जॉंच जैसे सिरम फेरिटीन आदि किये जाते है| लेकिन आमतौर पर हिमोग्लोबीन जॉंच पर्याप्त है|
लोहे की गोलियॉं |
गर्भवती या दूध पिला रही महिलाओं और पॉंच साल से छोटे बच्चों में अनीमिया होने की संभावना होती है। इन सब में अनीमिया से बचाव बहुत ज़रूरी है। स्वास्थ्य केन्द्रों में इन सभी के लिए लोहे की गोलियॉं दी जाती हैं।
बच्चों के लिए लोहे की खूराक कम होती है (लोहे की आपूर्ती के बारे में और जानकारी के लिए दवाओं वाला अध्याय देखें)। बच्चों के लिए लोहे की खूराक गोलियों और सिरप दोनों रूप में मिलती है। छोटे बच्चों के लिए लोहा के साथ फोलिक एसिड का द्रव देना अच्छा रहता है। अनीमिया से बचाव के लिए लोगों को लोहे की ज़रूरत के बारे में बताना चाहिये और खाने की उन चीज़ों के बारे में बताना चाहिए जिनमें लोहा होता है। सौभाग्य से बहुत सी खाने की ऐसी चीज़ें हैं जिनमें लोहा होता है। ऐसी बहुत चीज़ें महंगी भी नहीं होतीं और आसानी से मिल भी जाती हैं।
ज़्यादातर टॉनिकों में लोहा, कैल्शियम, कुछ विटामिन मीठा करने वाले तत्व और कुछ और चीज़ें होती हैं। ये मिश्रण दवाइयों के रूप में ठीक नहीं रहते हैं और मंहगे भी होते हैं। इन्हें खरीदने वाले लोगों में जानकारी के आभाव और इन टॉनिकों की ज़ोरदार बिक्री के कारण इनकी बहुत खरीदी होती है। परन्तु असल में ज़्यादातर मामलों में इनकी जगह लोहे की गोलियॉं दी जा सकती हैं।
पुराने तरह के कीटनाशकों की जगह आज मच्छर मारने वाले रसायन जैसे पायरेथरॉएड का इस्तेमाल होने लगा है। यह काफी महंगा होता है परन्तु यह ज़्यादा असर कारी है और कम मात्रा में इस्तेमाल होता है। पर्यावरण को होने वाले नुकसान के कारण बीएचसी पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। डीडीटी हालांकि ज़्यादातर देशों में प्रतिबंधित है पर यह भारत में अभी भी इस्तेमाल हो रहा है जहॉं पायरेथरॉएड मंहगा पड़ता है।