खून का कॅन्सर |
मनुष्यों को होने वाले कैंसर में खून की कोशिकाओं का कैंसर सबसे आम कैंसर है। खून के कैंसर में कैंसर की कोशिकाएं असामान्य रफ्तार से अपनी संख्या बढ़ाने लगती हैं। इनके आकार में भी बदलाव आ जाता है। इन कोशिकाओं से शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता भी कम हो जाती है। इससे शरीर संक्रमण के प्रति कमज़ोर हो जाता है। खून के कैंसर में बार बार गला खराब होने की शिकायत काफी आम होती है।
हमें इस बीमारी के कारण के बारे में सारे तथ्य नहीं पता है। परन्तु एक्स रे जैसे विकिरण इसका एक कारण होती हैं। परन्तु खून के सभी कैंसर के कारण किरणें नहीं होतीं। एक तरह के खून के कैंसर गुणसूत्रों में गड़बड़ी के कारण भी होता है।
बड़ों के मुकाबले बच्चों में यह बीमारी ज़्यादा दिखाई देती है। बीमारी के शुरुआती लक्षण तरह तरह की संक्रमण जैसे बुखार, खॉँसी, खून निकलना (नाक से खून निकलना बहुत आम है) और गिल्टियॉं हैं। बीमारी धीरे धीरे या तेज़ी से बढ़ सकती है। खून की जांच से इसका निदान हो सकता है।
खून की कोशिकाओं के तेज़ी से नष्ट होते जाने के कारण गंभीर अनीमिया भी हो जाता है। तिल्ली और लिवर सूज जाते हैं। रोगी के वजन घटता है। इस बीमारी का तुरंत अस्पताल में इलाज करवाया जाना ज़रूरी है। अगर समय से इलाज हो जाए तो कुछ रोगी ठीक भी हो जाते हैं। खून के कैंसर की इलाज के लिए कुछ दवाएं और खास तरह की किरणें उपयोगी होती हैं।
खून के ए, बी, एबी, और ओ वर्ग |
सभी मनुष्यों का खून कुछ मायनों में एक जैसा और कुछ अन्य मामलों में अलग अलग होता है। कुछ एक प्रतिजनों होने ना होने के आधार पर खून को अलग अलग वर्गों में रखा गया है। ये वर्ग हैं ए, बी, एबी, और ओ वर्ग।
ए, बी, ओ अव्यवों के अलावा खून में एक और फैक्टर भी होता है, इसे आरएच फैक्टर कहते हैं। आरएच फैक्टर करीब ८५ प्रतिशत लोगों में होता है (इन्हें आरएच पोज़िटिव कहते हैं) और ये करीब १५ प्रतिशत लोगों में नहीं होता (उन्हें आर एच नेगेटिव कहते हैं)। एक मोटा मोटा नियम तो ये है कि किसी वर्ग के खून वाले व्यक्ति को उसी वर्ग का खून दिया जा सकता है।
एक व्यक्ति जिसके खून का वर्ग ओ नेगेटिव हो उनके खून में कोई भी प्रतिजन (ऐंटिजेन) नहीं होता। इसलिए ऐसे व्यक्ति का खून किसी भी अन्य खून के वर्ग के व्यक्ति को दिया जा सकता है। खून का वर्ग व्यक्ति के पहचान पत्र में लिखा होना चाहिए, जिससे किसी आपातकालीन स्थिति में खून के वर्ग की जांच में समय न नष्ट हो।
अगर किसी गर्भवती महिला का खून आरएच नेगेटिव हो और उसके बच्चे के खून का वर्ग आरएच पोज़िटिव (पिता के आर एच पोज़िटिव होने पर ऐसा हो सकता है) तो उस महिला को एक खास किसम की समस्या हो सकती है। बच्चे के खून में से थोड़ा सा आरएच फैक्टर निकल कर गर्भनाल से मॉं के खून में आ सकता है। इसके बाद में महिला के खून में आरएच फैक्टर के खिलाफ प्रतिपिंड (ऐंटिबॉडी) बन जाते हैं। इससे पहले बच्चे के ऊपर तो कोई असर नहीं पड़ता। परन्तु बाद के गर्भ में काफी खतरा हो जाता है। क्योंकि प्रतिपिंड गर्भनाल में से निकल कर गर्भ तक आ सकते हैं, और उसे मार भी सकती हैं। बाद के बच्चों के जन्म में ऐसा होना ज़्यादा संभव है। आर एच नेगेटिव मॉंओं में गर्भ गिरने का एक मुख्य कारण यही होता है।
हमें बच्चे के जन्म से पहले ही हर गर्भवती मॉं के खून के वर्ग के बारे में पता होना चाहिए। अगर वो आर एच नेगेटिव है और पिता आर एच पोज़िटिव है तो मॉं को बच्चे के जन्म के ४८ घंटों के भीतर एक विशेष इन्जैक्शन लगाना ज़रूरी है। ऐसा करने से जो भी प्रतिजन मॉं के शरीर में आए होते हैं वो हट जाते हैं।