कुत्ता आदमी का दोस्त सही लेकिन हर बरस कुत्ते से कॉंटे जानेकी हजारो घटनाए घटती है| कुत्ता अगर पागल है याने अलर्क रोग से बाधित है तब आदमी भी अपनी जान खो सकता है| रोगी बचनेके लिये सही प्राथमिक उपचार और सावधानी परखनी चाहिये | अलर्क याने रेबिज के खिलाफ टीका उपलब्ध है| इसके जरिये शरीरमें प्रविष्ट विषाणू हम परास्त कर सकते है| अब पुराने समय की बडी इंजेक्शन के बजाय अच्छी, सुरक्षित लेकिन थोडी खर्चिली इंजेक्शन उपलब्ध है| कुत्ता काटनेके हर कोई घटनासे अलर्क नही होता | इनमेसे चंद घटनाओमें ही अलर्क होता है| अब हम कुत्ते के कॉंटने और अलर्क के बारेमें कुछ जानकारी लेंगे|
रैबीज़ एक बड़ी खतरनाक वायरस से होने वाली बीमारी है। यह बीमारी कुत्ते के काटने से होती है। मूलत: वायरस संक्रमण किसी खराब रदनक द्वारा काटे जाने से होता है। जिस जानवर को रैबीज़ का संक्रमण हो उसकी लार में वायरस होता है। जब कुत्ता किसी को काटता है तो यह संक्रमित लार इस ज़ख्म के रास्ते उस व्यक्ति (या प्राणी) में पहुँच जाती है। रैबीज़ आम तौर पर माँसाहारी पशुओं को ही होती है जो जंगल में रहते हैं जैसे लोमड़ी, चीता, सियार, कुत्ते और चील। यह बीमारी जंगलों में काफी आम होती है। बहुत से जानवर हर साल इस बीमारी से मर जाते हैं।
अलर्क के विषाणू कुत्तोमें एक दुसरेको कॉंटने से फैलते है| जंगल के सीयार, भेडिया, बाघ आदि जानवरों के कॉंटने से कुत्ते अलर्क बाधित होते है| जंगल के कुछ जानवरोंमें अलर्क का प्रभाव होता है| जंगल की सीमापर भटकनेवाले कुत्ते अलर्क रोग हम तक ला छोडते है| रिहायशी इलाकों में रहने वाले कुत्ते ये बीमारी जंगली जानवरों से अपने में ले आते हैं। और फिर कुत्ते ही मनुष्यों में यह बीमारी करने का ज़रिया बनते हैं। रैबीज़ एक जान से मार देने वाली बीमारी है। आज तक कोई भी इस रोग से ठीक नहीं हुआ है। इस बीमारी में मस्तिष्क के बहुत बुरी तरह शोथग्रस्त हो जाने से मौत होती है। लार में संक्रमण हो जाने के दस दिनों के भीतर ही मौत हो जाती है।
अलर्कबाधित कुत्ता १० दिनों में एक तो हिंसक बनता है या बिलकूल निर्जीवसा पडा रहता है| उसके लारमें बडी संख्यामें विषाणू होते है| यह कुत्ता अन्य जानवरोंको या इन्सानको कॉंटनेपर अलर्क के विषाणू नये शरीरमें प्रवेश करते है| शरीरमें अलर्क के विषाणू सिर्फ तंत्रिका तंत्रोद्वारा फैलते है, खूनसे नहीं| इसिलिये इन विषाणूओं को मस्तिष्क पहुँचने के लिये कुछ अवधी लगता है|
विषाणू मस्तिष्क पहुँचने के लिये कुछ दिन, हफ्ते, महिने या कभी वर्ष भी लेते है| मस्तिष्क पहुँचने पर विषाणू संख्या बढती है| इसके बाद अलर्क विषाणू लार ग्रंथीमें पहुँचते है और इससे लार भी बाधक होती है| यहॉंसे विषाणू दुसरे प्राणीयोंमें प्रवेश के लिये तैय्यार रहते है| अलर्क विषाणू मस्तिष्क पहुँचनेपर उस प्राणी की मौत निश्चित होती है| इस पर कोई भी दवा मौजूद नहीं है|
इस महिला की अलर्क से कुछ दिनोंमें ही मौत हुई थी |
वायरस मस्तिष्क में तंत्रिकाओं के माध्यम से घुसता है, खून से नहीं। काटे जाने व लार से वायरस जख्म में पहुँच जाता है। इसलिए वायरस स्थानीय तंत्रिका तन्तु में पहुँच जाता है। यहाँ से वो सभी तंत्रिकाओं, मेरुदण्ड और आखिर मस्तिष्क में पहुँच जाता है।
क्योंकि रैबीज़ का संक्रमण तंत्रिकाओं के जरिए सब ओर पहुँचता है इसलिए काटे जाने वाले स्थान से मस्तिष्क तक पहुँचने वाली तंत्रिका जितनी लम्बी होगी उतनी ही अधिक समय में छूत मस्तिष्क तक पहुँचेगी। इसी तथ्य का इस्तेमाल ठीक लगाने के लिए भी किया जाता है।
इस महिला की अलर्क से
कुछ दिनोंमें ही मौत हुई थी
एक बार वायरस मस्तिष्क तक पहुँच जाए तो यह तंत्रिकाओं के द्वारा तुरन्त ही गालों की लार की ग्रन्थियों में पहुँच जाता है। इस अवस्था में वो जानवर या मनुष्य औरों में भी संक्रमण फैला सकता है। काटने से कितना खतरा है ये कुछ कारकों से तय होता है। जिस जगह जानवर ने काटा है वहाँ तंत्रिकाओं के तन्तु का घनत्व _ कुछ भागों जैसे हाथों और चेहरे में तंत्रिकाओं का ज्यादा घना जाल होता है। इसलिए वायरस को जल्दी से तन्तु मिल जाता है। पैरों और पीठ में कम तंत्रिकाएँ होती हैं इसलिए इन जगहों पर काटे जाने से बीमारी ज्यादा समय में फैलती है।
कुत्ता काटनेपर इलाज के लिये हमे कुछ अवधी मिल सकता है| यह अवधी ३ बिंदूपर निर्भर है|
काटे हुए जगह साबून और पानी से खुलकर धोना यह महत्त्वपूर्ण प्रथमोपचार है| स्पिरीट याने अल्कोहोल या सौम्य कार्बोलिक ऍसिड विषाणूको जादा बाधक होता है| इसमेसे जो जल्दी मिले उसका इस्तेमाल किजिये| इस प्राथमिक इलाजसे जादातर विषाणू उसी स्थान मर जाते है| ध्यान रखे की कुत्ता काटने की हर एक घटना में अलर्क नही हो सकता लेकिन इस रोगी को इंजेक्शन देना है या नही यह कुछ मुद्दों को लेकर डॉक्टर तय करेंगे| सामान्यतया पालतू कुत्ते से जो की टिका दिया है, अलर्क नही होता| लेकिन अन्य कुत्तों से या प्राणियों से काटने की बात हो तब इंजेक्शन लगवाने पडते है| कभी कभी कुत्ते के दॉतों की खरोच भी विषाणू बाधा उत्पन्न कर सकते है| विषाणू के लिये इतना भी प्रवेश काफी है|
इसीलिये काटनेवाली जगह पर टॉंचे नही दिये जाते और जख्म खुला रखना पडता है बजाय सिर्फ एक ढीले मलम पट्टी को छोडकर| अँटीसिरम इंजेक्शन – चूँ की इस बीमारी का कोई अँटीबायोटिक इलाज नही है, काटे हुए जगह अँटीसिरम इंजेक्शन लगवाकर विषाणूओं को कुछ हदतक परास्त किया जा सकता है| लेकिन यह दवा महंगी है इसलिये हर एक घटना में प्रयोग नही होती| अँटीरेबीज वॅक्सीन यह इस बीमारी के रोकथाम के लिये महत्त्वपूर्ण है| आपको अचरज होगा की कुत्ता काटने पर यह टीका ही काम आता है| इसका तत्व ये है की विषाणू मस्तिष्क तक पहुँचने को कुछ दिन या हप्ते लग जाते, उसी काल में इस टीके से रोगक्षमता बढाकर इलाज हो सकता है| जाहीर है की अगर विषाणू मस्तिष्क में जल्दी पहुँच पाते है तब इस टीके से संरक्षण नही मिलता|
रास्ते पर भटकने वाले कुत्ते इस बीमारी के सबसे महत्त्वपूर्ण वाहक है| हमारे शहर और देहातों में इन कुत्तों का पाला जंगली जानवरों से पडता है| इसके कारण अलर्क के विषाणू इन कुत्तों में प्रविष्ट हो जाते है| कुत्तों के एक दुसरे को काटने से भी विषाणू फैलते है| विषाणू बाधित कोई भी जानवर या कुत्ता चंद हप्तों में मर जाता है| तब तक अन्य प्राणी या आदमीयों को वह काट लेता है और बीमारी फैलाता है| मृत जानवर से बीमारी के विषाणू आगे फैल नही सकते|अलर्क बाधित कुत्ता एक तो शांत और मरियल जैसा हो जाता है और कही ऑड में जाकर पडा रहता है| इसके विपरित कुछ बिमार कुत्ते आक्रमक हो जाते है और हर किसी को काटने लगते है| अखबारों में ऐसे कुत्तो का ज्यादा जिगर होता है|
सब पालतू कुत्तोंका अलर्क का टिकाकरण बिलकूल होना चाहिये और हर छ: महिने में इसको फिर से कराना पडता है| लेकिन इनसे कई ज्यादा कुत्ते गॉंवो, शहरों में भटकते है और बीमारी फैलाते रहते है| प्राणी पालक संघ इनको मारने के खिलाफ होते है| और कुछ हद तक यह ठीक भी है| लेकिन हमारी पंचायते इनका कुछ इंतजाम नही कर सकती यह एक समस्या बन गयी है| ऐसा अक्सर पुछा जाता है की बाधित कुत्तो ने अगर गाय, भैस, बकरी आदि को काट लिया तो इनका दूध लेना सुरक्षित होगा की नही| आमतौरपर यह विषाणू दूध में नही उतरता और वैसे भी उबलने से बिलकुल नष्ट हो जाता है| इसलिये यह दूध सुरक्षित जरुर है लेकिन इन जानवरोंकी लार खतरनाक हो सकती है| इसलिये इन प्राणियों को दूर रखना उचित होगा|
काटे जाने का प्रकार | वर्णन |
क्लास १ (हल्का) | साधारण त्वचा पर चाटना, खून रहित खरोंचें, किसी ऐसे जानवर का बिना उबला दूध पी लेना जिसे रेबीज़ होने का शक हो। |
क्लास २ (मध्यम) | ताजे कटे हुए स्थान पर चाटना, खरोंचे जिन से खून निकल रहा हो, साधारण ज़ख्म, पॉंच से कम, सभी ज़ख्म सिवाय चेहरे, गले, सिर, हथेली और उंगलियों के। |
क्लास ३ (गंभीर) | सभी ज़ख्म और खरोचें जिनमें से खून निकल रहा हो, गले, चेहरे, हथेली, उंगलियों, चेहरे और सिर पर हों। पॉंच से ज़्यादा ज़ख्म, जंगली जानवर द्वारा काटा जाना और ज़ख्म जिनमें चीर फाड़ हो गई हो। |