सामान्यत गर्भावस्था के 9 महिने पुर्ण होने के बाद प्रसव पीडा से शिशु जन्म पश्चात तक होने वाली प्रसव क्रिया को तीन चरणों में बांटा जा सकता है।
कोख में बच्चा सामान्यतय: उल्व थैली (पानी की थैली) में तैरता रहता है । गर्भाशय में लगातार संकुचन (सिकुड़न) और ढीलापन की क्रिया से यह थैली नीचे गर्भाशय ग्रीवा की ओर खिसक जाती है। यह प्रसव का पहला चरण होता है।
कोख की पेशियाँ बच्चे को गर्भाशय से बाहर धकेलने के लिए सिकुड़ती व ढीली होती हैं तब सकुचन के समय दर्द का अहसास पीडा के रूप होता है जिसकी ती्रवता और अंतराल कम होता जाता है और वह लागातार असहनीय दर्द में परिणीत हो जाता है। प्रसव पीडा का दर्द काफी ऊपर पीछे की ओर से शुरु होकर गर्भाशय ग्रीवा की ओर जाता है। आम तौर पर गर्भाशय के संकुचन वाले दर्द को और अन्य दर्द (फाल्स लेबर) से अलग आसानी से पहचाना जा सकता है।अन्य दर्द आम तौर पर पाखाना रुका होने के कारण होता है। विरेचक (एनीमा) देने से इससे छुटकारा मिल जाता है।
जब गर्भाशय में संकुचन शुरु होता है तो उसका ग्रीवा (मॅुह)थोडा सा श्लेष्मा और खून बाहर निकल आता है। इसे शो कहते हैं। और यह बच्चे के जन्म का एकदम स्पष्ट लक्षण है। पहला चरण एक लंबी प्रक्रिया होती है। पहले प्रसव में इसमें 16 से 24 घंटे लग सकते हैं। बाद के प्रसवों में इसके मुकाबले कम समय लगता है (6 से 10 घंटे)। परन्तु कभी कभी यह केवल दो घंटों में ही पूरा हो जाता है।
पहले चरण के अंत तक गर्भाशयग्रीवा पूरी तरह से खुल जाती है। इस स्थिति तक गर्भाशयग्रीवा का सिरा आंतरिक जांच द्वारा टटोला जा सकता है। एक बार यह पूरी तरह से खुल जाए तो फिर इसके सिरे का घेरा हाथ को नही लगता। पर बच्चे के सिर को ढंके हुए पानी की थैली अभी भी सलामत हो सकती है और गर्भाशयग्रीवा में यह गुब्बारे की जैसी महसूस की जा सकती है। यह थैली पहले या दूसरे चरण में फटती है। एक बार यह फट जाए तो प्रसव की प्रक्रिया तेज़ हो जाती है।
दूसरा चरण गर्भाशयग्रीवा के पूरी तरह से खुल जाने के बाद शुरु होता है। पानी की थैली अगर अभी तक नहीं फटी है तो यह अब फट जाती है। एक बार यह फट जाए तो गर्भाश यग्रीवा में शिशु को (ज्यादातर सिर) महसूस किया जा सकता है। इसके बाद सिर ही आगे चलने का नियंत्रण करता है। गर्भाशय का दर्द धीरे धीरे बच्चे को आगे की ओर तथा बाहर धकेलता है। धीरे धीरे सिर नीचे की ओर जाता है। फिर ये भग (जनन द्वार) में से दिखाई देने लगता है। कुछ देर तक यह दर्द के साथ आगे पीछे जाता रहता है। एक अवस्था आती है जब सिर दर्द के साथ पीछे की ओर नहीं जाता है। इसे क्राऊनिंग कहते हैं।
इसके बाद यह किसी भी क्षण प्रसव हो सकती है। पहली बार माँ बन रही महिला में बच्चे के बाहर आने से पहले कई बार दर्द उठ सकता है। परन्तु द्वितिय प्रसव महिला को एक या दो बार दर्द उठने के साथ ही प्रसव हो सकता है। साधारणतय: सबसे पहले सिर बाहर आता है। इसके बाद कंधे, पेट और पैर बाहर आते हैं। इसीके साथ पानी की थैली में से पानी एकदमसा बाहर आता है। इस अवस्था में दूसरा चरण पूरा हो जाता है। जन्म का प्रमुख भाग इस तरह से पूरा हो चुकता है।
परन्तु शिशु अभी भी नाभिनाल द्वारा नाड़ से जुड़ा होता है। आप नाभिनाल में बच्चे की नाड़ी महसूस कर सकते हैं। जल्दी ही नाड़ में खून का संचरण बंद हो जाने के बाद यह धड़कना बंद कर देता है। इसके बाद नाभिनाल को काट दिया जाना चाहिये।
प्रसव के बाद बच्चे की नाड सही समय पर कॉंटनी चाहिये |
तीसरे चरण में नाड़ बाहर आती है। आमतौर पर इसमें बच्चे के जन्म के बाद 5 से 20 मिनट लगते हैं। धीरे धीरे पूरी थैली जो गर्भाशय से उतर कर नाड़ के साथ बाहर आ जाती है। संकु चन के साथ पूरी नाड़ और खून गर्भाशय में से बाहर निकल आताहै। करीब 200 से 300 मिली लीटर खून निकलता है और आमतौर पर यह सारा एकसाथ निकलता है। खून की पतली सी धारा इसके बाद कुछ मिनटों (10 से 15 मिनटों) तक बहती रहती है।
प्रसव का यह सारा विवरण उस स्थिति का है जब बच्चे का सिर पहले बाहर आता है। अगर चेहरा, ठोडी, हाथ, पैर या नाड़ पहले बाहर आए तो इससे समस्या हो सकती है। यह असामान्य प्रसव हैं। वैसे कोई भी प्रसव अस्पताल मे ही होना ज़रूरी है।