प्रसव पश्चात छ: हफ्ते
बच्चे के जन्म के बाद के छ: हफ्ते (40 दिन) बच्चे और माँ दोनों के स्वास्थ्य के लिए ही काफी महत्वपूर्ण होते हैं। इस समय में माँ में बहुत सारे शारीरिक बदलाव आते हैं।
- प्रसव से पहले गर्भाशय का आकार बहुत बडा होता है व प्रसव पश्चात छोटा होकर अपने सामान्य आकार पर आने लगता हैा । 40 दिन होते होते उसका आकार उतना ही हो जाता है जितना गर्भावस्था के बिना होता है। दूध बनना ठीक से शुरु हो जाता है। भार और जमी हुई वसा में कमी आती जाती है। प्रसव नली की चोटें ठीक होती जाती हैं। पर अभी भी संक्रमण रोग का खतरा होता है।
- गर्भाशय को तेजी से अपने सामान्य आकार में आ जाने में मदद करने के लिए 5 से 7 दिनों लगते है|
- बच्चे को भी देखभाल की ज़रूरत के लिये प्रथम बार शिशु को जन्म देने वाली माताओं को जानकारी के अभाव और परांपरिक मान्यताओ के कारण परामर्श व सलाह की जरूरतहोती है।
- पहले छ: हफ्तों में कम से कम 2 से 3 बार माँ के पास ग़ह भेंट पर जाएं। पहली बार तो पहले तीन दिनों में एक बार जाना ही ज़रूरी है। ध्यान से देखें कि बच्चे या माँ में कोई असामान्य गड़बड़ी तो नहीं है। अगर ऐसा है तो तुरंत डॉक्टर की सहायता लें।
- बच्चे के जन्म के पश्चात मॉ को 2 से 3 हफ्तों तक योनि में से आस्त्राव निकलता रहता है। आरंभ में यह आस्त्राव गाढ़ा, लाल और अधिक मात्रा में होता है। बाद में यह पतला, कम और पीला सा हो जाता है। अगर इस आस्त्राव में से गंदी बदब आ रही या इसका रंग खून जैसा हो तो यह संक्रमण रोग का चिन्ह हो सकता है। छूत से आस्त्राव निकलना ज्यादा दिनों तक जारी रह सकता है।
- माँ को आयरन और कैलशियम देते रहना जारी रखें। अच्छा पोषण और आराम भी बच्चे के जन्म में हुई क्षति की पूर्ति करने के लिए ज़रूरी है।
- श्रोणी (पेल्विस) की पेशियाँ बच्चे के जन्म के दौरान फैल जाती हैं। इनको कसने के लिए श्रोणी के व्यायाम करना ज़रूरी है। इससे गर्भाशय के अपने स्थान से हटने की संभावना भी नहीं रहती।
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बच्चे के जन्म के बाद छोटी मोटी बीमारियाँ
कुछ महिलाओं में गर्भाशय के संकुचन के कारण पेट में दर्द होता है। असहनीय दर्द के चिकित्सक से सलाह पश्चात दर्द निवारक दवा लेने से फायदा होता है।
- अगर माँ को कब्ज़ हो रहा हो तो हल्का विरेचक जैसे द्रवीय पैराफीन दें।
- कभी कभी गर्भाशय के मूत्रमार्ग को दबाने के कारण या फिर प्रसव नली की चोटों के कारण पेशाब रुक सकता है। पेट पर गर्भाशय के क्षेत्र में गर्म पैक रखें। अगर इससे भी फायदा न हो तो मूत्रनली (कैथेटर का इस्तेमाल किया जा सकता है। 24 घंटों से ज्यादा इंतज़ार न करें।
- बच्चे के जन्म के बाद बवासीर आमतौर पर ठीक हो जाती है। हल्के विचेरक जैसे घी, त्रिफला, या इसफगोल के साथ देने और बवासीर पर तेल लगाने से फायदा होता है।
- बच्चे के जन्म के समय हुए घावों की रोज़ देखभाल की ज़रूरत होती है। नीम के गुनगुना सत्त किसी टब में डाल कर उसमें बैठने से आराम पड़ता है। छूत वाले घावों के लिए प्रतिरोगाणु दवाएं ज़रूरी हैं।
- चूची (निप्पल) पर किसी भी तरह के क्रैक या विदर काफी तकलीफदेह हो सकते हैं। इनसे बचाने के लिए रोज़ निपल साफ करके उन पर नारियल का तेल लगाना चाहिए। क्रैक या विदर से स्तनपान में दर्द होता है। और ऐसा होने पर स्तनों में दूध इकट्ठा हो जाता है। निपल शील्ड भी उपयोगी होती है।
- स्तनो में दूध रुका रहने से छूत या फोड़े हो सकते हैं। ध्यान रखें कि हर बार बच्चे को दूध पिलाने से पहले स्तनो ठीक से साफ कर लें। निपल पर कोई भी संक्रमण होने का अर्थ है कि उस स्तन से दूध पिलाना बंद हो जाता है।
- धात्री माता के स्तन से पूरी तरह से दूध न निकलने के कारण कुछ माँओं को स्तन में भारीपन व दर्द बैचेनी भी लगती है। हाथ से स्तन को दबाकर दूध निकालने या स्तनों के पंप का इस्तेमाल उपयोगी होता है। ऐसा रोज़ दो तीन बार करें।
आयुर्वेद
आयुर्वेद में अच्छी तरह से प्रसव करवाने के लिए कुछ तरीके बताए गए हैं। बच्चे के जन्म की अंदाजन तारीख से पहले 50 मिली लीटर तिल के तेल का ऐनीमा दिया जाता है। इससे प्रसव नली मुलायम हो जाती है और बच्चे का जन्म आसान हो जाता है।
एक और प्रचलन है बच्चे के जन्म के बाद योनि में लगी चोटों को ठीक करने के लिए दवाइयों से धोना। नीम के सभी पाँच हिस्सों : जड़, पत्तियों, छाल, फूल और फल को इस्तेमाल करके काढ़ा बना कर घावों को धोना ज़खमों को ठीक करने के लिए काफी फायदेमंद है। गाय के दूध से बना घी जो कि कई सालों से रखा हुआ हो, प्रसव के दौरान आई चोटों को ठीक करने में काफी उपयोगी होता है। इससे काफी आराम पहुँचता है और घाव भी भर जाते हैं।