बच्चे के स्वास्थ्य में आयुर्वेद का स्थान
बचपन की बीमारियों के इलाज और रोकथाम के लिए बहुत सी जड़ी बूटियों का इस्तेमाल होता है। इन जड़ीबूटियों में स्वीटफ्लैग, मुलायम हर्ड, हल्दी की जड़, मुरोरफली, जातिफल, इमली के बीज, सूखे खजूर, बादाम, बाबेरंग आदि शामिल होते हैं। इनमें से ज़्यादातर चीज़ें सालों तक चलती हैं क्योंकि ये सब सूखी हुई होती हैं। पीस कर इनका लेप बना कर देने से बहुत सी बीमारियों में और वैसे ही स्वास्थय के लिए फायदेमंद रहता है। आमतौर पर यह रोज़ ही दिया जाता है। घी, शहद और पानी लेप के माध्यम की तरह इस्तेमाल होते हैं। और पीसने में बट्टा कितनी बार आगे पीछे हुआ है उससे दवा की खुराक तय होती है।कौन सी बूटियॉं इस्तेमाल की जाएंगी यह बीमारी पर निर्भर करता है। परिवार के बड़े उपचार के तरीकों की यह विरासत आगे की पीढ़ियों तक पहुँचाते रहे हैं।
- बचपन कफ दोष के प्रभुत्व की उम्र मानी गई है। इसलिए बचपन में कफ से जुड़ी हुई समस्याएं अधिक आम होती हैं। इन्हें रोकने और रोकथाम के लिए वचा उपयोगी रहता है। स्वीटफ्लैग का लेप एक चम्मच शहद के साथ इसे पीस कर बनाया जाता है। जब यह बच्चे को खिलाया जाता है तो बच्चा एक बार तो उल्टी कर देता है। इससे उसकी छाती में से स्त्राव निकल जाते हैं और छाती साफ हो जाती है। छाती साफ करने के लिए ककरशिंगी भी उपयोगी होती है।
- अगर बच्चे की टट्टी सख्त हो तो उसके लिए इमली के बीज नहीं दिए जाते परन्तु मुलायम हर्ड दी जाती है। इससे कब्ज़ ठीक हो जाता है।
- अगर बच्चे को पतली टट्टी हो रही हो तो जातिफल और इमली की मात्रा बढ़ा दें (दोनों कब्ज़ करने वाली चीज़ें हैं)। इसके अलावा खजूर, बादाम और मुलायम हर्ड देना कम या बंद कर दें।
- अगर बच्चे के पेट में मरोड़ वाला दर्द हो (जिसका पता उसके रुक रुक कर रोने, बार बार पेट की ओर इशारा करने से चलता है) तो उसे मुरोरफली अधिक दें और जातिफल, इमली और बादाम देना बंद कर दें।
- बाबेरंग के बीज कीड़ों का इलाज या कीड़ों से बचाव के लिए उपयोगी होते हैं।
- तेल की मालिश बच्चे को नहलाने से पहले तेल की मालिश करने का रिवाज़ काफी आम है। ऐसा माना जाता है कि त्वचा के माध्यम से तेल के सोखे जाने से बच्चे को पोषण मिलता है। कुपोषित बच्चों के लिए यह चलन काफी उपयोगी होता है। इससे माओं को बच्चों के शरीर को ध्यान से देख पाने का मौका भी मिलता है। जिससे अगर उसे कोई छूत हो तो उस पर जल्दी ध्यान जा सकता है।
- पोषण से संबंधित चलन बच्चों के लिए कुछ खाने की चीज़ें काफी प्रचलित हैं। विभिन्न अनाजों और दालों से बनाया गया दलिया जिसमें बारियार आर तालिमखाना जैसी बूटियॉं भी मिलाईं जाती हैं काफी इस्तेमाल होता है। इस दलिए को यावागु कहते हैं। यह काफी पोषक होता है और इससे वृद्धि में मदद मिलती है। कुछ बच्चों को भूख कम लगती है और कितनी भी कोशिश करने पर वो खाने से मना करते हैं। अंडे, मछली, दूध या केले जैसी चीज़ें न दें क्योंकि ये चीज़ें मुश्किल से पचती हैं। इनकी जगह भुना हुए अनाज (गेहूँ, चावल, चना) आदि का इस्तेमाल करके बच्चे का भोजन बनाएं जो कि आसानी से पच जाते हैं।
- बच्चों की मदद के लिए दूध का एनीमा देना भी उपयोगी रहता है। यह बच्चे के टट्टी करने के बाद दिया जाता है। इसके लिए 15 से 20 मिलीलीटर दूध का इस्तेमाल किया जाता है। दूध को कुछ कड़वी औषधियों के साथ उबाला जाता है। गुनगुने दूध का इस्तेमाल किया जाता है। बच्चे को लिटा कर पकड़ा जाता है और एक पिचकारी की मदद से दूध गुदा के अंदर डाला जाता है। यह 3 से 6 घंटों के अंदर अंदर अवशोषित हो जाता है। यह तब तक रोज़ किया जाता है जब तक कि बच्चे का स्वास्थ्य ठीक न हो जाए।
- अगर मॉं का दूध पर्याप्त मात्रा में न मिल पाए तो बच्चे को सुबह शाम तीन बूंद घी और दो बूंद शहद मिला कर दिया जाता है। यह ऊपर से दिये जा रहे दूध के पूरक के रूप में दिया जाता है। पर साथ में स्तनपान करवाते रहना चाहिए ताकि दूध बनता रहे।
- दांत निकलने की तकलीफ के लिए दीकामाली का चूर्ण उपयोगी रहता है। इस चूर्ण के एक चौथाई चम्मच में शहद की कुछ बूंदें मिलाएं। जब लगे कि दांत निकलने शुरु होने वाले हैं तो यह मिश्रण धीरे धीरे मसूड़ों पर लगाएं। छ: महीने से ऊपर के बच्चों में यह खुराक दुगनी कर दें। इस उपचार से पेट के दर्द और दस्त से बचाव होता है जो कि दांत निकलने के समय में काफी होते हैं। संक्रमण से बचाने के लिए सफाई का ध्यान रखना ज़रूरी है।
- मूरोरफली का लेप भी एक अच्छा पूरक है।
अनाथ बच्चों की समस्या
बहुत से अनाथ बच्चों को घरों की ज़रूरत होती है और बहुत से घरों को बच्चों की ज़रूरत होती है। अनाथाश्रम बच्चों के अस्थाई केवल घर होने चाहिए। बच्चे वहॉं उन कारणों से पहुँचते हैं जिनके लिए वो ज़िम्मेदार नहीं होते – जैसे भूचाल, दुर्घटनाएं, मॉं बाप द्वारा त्याग दिए जाने और पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के ऊपर अत्याचार आदि। बच्चों को गोद लिया जाना एक सबसे अच्छा उपाय होता है। बहुत से जोड़े, जिनमें वो भी शामिल हैं जिनके अपने बच्चे होते भी हैं वो भी अनाथश्रमों से बच्चे गोद लेते हैं। आप अपने पास के जिला केन्द्र में अनाथाश्रम से संपर्क कर सकते हैं।