दूसरे साल में बच्चे का वजन करीब 2.5 किलोग्राम व लंबाई 10 – 12 सेंटीमीटर बढ़ती है। पहले साल के अंत तक मस्तिष्क का आकार वयस्क के मस्तिष्क के आकार का लगभग तीन चौथाई हो जाता है। और दूसरा साल पूरा होने तक मस्तिष्क का विकास लगभग 80 प्रतिशत हो चुका होता है। सिर का घेरा करीब 49 सेंटीमीटर तक हो जाता है। और 24वें महीने तक 12 से 16 दूध के दांत निकल चुके होते हैं।
12 से 13 महीने का होने तक बच्चा सहारे से चलना शुरु कर देता है और 15 महीनों का होने तक बिना सहारे के 18 महीने का होने तक बच्चा थोड़ी दूरी तक भाग भी सकता है। वो इस उम्र तक सहारे से सीढ़ियॉं भी चढ़ने लगता है। परन्तु सीढ़ियों से उतरना इस उम्र तक भी मुश्किल होता है। ऐसा कर पाना 20 से 21 महीने की उम्र में ही संभव होता है। इस उम्र में चीज़ें अपने हाथों में
संभालने की उत्सुकता चौंकाने वाली होती है। बच्चा अपने रास्ते की हर चीज़ को उठाना चाहता है। इस उम्र में चोट लगने या दुर्घटनाओं से बचाने के लिए बहुत अधिक देखभाल की ज़रूरत होती है।
दूसरे साल के बाद के हिस्से तक बच्चा चीजों को एक साथ इकट्ठा करके रखना सीख जाता है। दूसरे साल के अंत तक ठीक से अपनी बात कह पाना आने लगता है। ज़्यादातर बच्चे 24 से 30 महीनों की उम्र तक छोटे छोटे सही वाक्य बोलना शुरु कर देते हैं। लड़कियॉं लड़कों के मुकाबले ज़्यादा जल्दी यह सब शुरु करती हैं। 18 से 24 महीने का होने पर बच्चा बता सकता है कि उसे पेशाब या पाखाने जाने की ज़रूरत है। मानसिक विकास के लिए हर उम्र में बच्चे को प्यार करना और उसके साथ बातचीत करना ज़रूरी है। सही भावनात्मक विकास के लिए भी ये दोनों ज़रूरी हैं। बच्चे को समझने की कोशिश करें। उससे उतने ही शब्दों में बात करें जितने वो उस उम्र में समझ सकता हो।
पहले दो सालों के मुकाबले इस अवधि में वजन और लंबाई में बढ़ोतरी कम होती है। हर साल बच्चे का वजन करीब 2 किलोग्राम और लंबाई 6 – 8 सेंटीमीटर बढ़ती है। तीन साल के बाद बच्चा एक कदम एक सीढ़ी पर और दूसरा उससे ऊपर वाली सीढ़ी पर रख सकता है, यानी ठीक वैसे जैसे कि वयस्क सीढ़ियॉं चढ़ते हैं। परन्तु उतरते समय वह उसे दोनों कदम नीचे वाली सीढ़ी पर रखने होते हैं। वयस्कों की तरह सीढ़ियॉं उतरना वह चौथे साल में ही शुरु कर पाता है।
तीन साल का होने तक बच्चा अपनी उम्र बता सकता है और यह भी समझ सकता है कि वो लड़का है या लड़की। चार साल का होने तक वो काटे का निशान बना सकता है और पॉंच साल का होने तक वो तिकोना आकार बना सकता है। अपने चौथे साल तक वो चार चीज़ें तक गिन सकता है। और अगले साल तक वो पॉंच तक गिन सकता है।
24 से 30 महीनों का होने तक उसके लगभग सारे दूध के दांत निकल चुके होते हैं। वृद्धि और विकास के यह सारे लक्षण अलग अलग बच्चों में थोड़े पहले या थोड़े बाद में आ सकते हैं। और इन नियमों में कुछ न कुछ अंतर हो सकता है। कुछ लक्षण समय से पहले उभर सकते हैं और कुछ के उभरने में देरी हो सकती है। परन्तु अगर सभी लक्षणों में देरी हो तो यह चिंता का विषय होता है।
बच्चे की वृद्धि, विकास और स्वास्थ्य के लिए पोषण एक सबसे महत्वपूर्ण ज़रूरत है। बच्चों का पोषण का स्तर किसी समुदाय के स्वास्थ्य के स्तर का एक महत्वपूर्ण पैमाना है।
बचपन के कुपोषण का असर बड़ी उम्र में महसूस होता है। जो लोग छोटी उम्र में कुपोषित रहते हैं, बड़ी उम्र में उनकी काम करने की क्षमता कम हो जाती है। बचपन में अच्छा पोषण ज़िंदगी भर अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी है।
अपने पहले जन्म दिन तक बच्चे को अपने आप खाना शुरु कर देना चाहिये। हांलाकि उसे दूध पिलाना अभी भी ज़रूरी होता है। बच्चों के खाने में मिर्च मसालों का इस्तेमाल कम करें। इस समय आप मॉं को यह सलाह दे सकते हैं कि वो बच्चे को दूध पिलाना कम कर दे। दूध की जगह खाने की अन्य चीज़ों को ले लेनी चाहिए। मॉं का दूध या ऊपरी दूध दिन में केवल 2 से 3 बार कर दिया जाना चाहिए।
दांत निकलने के समय बच्चे को बहुत सारे कैल्शियम और विटामिन डी की ज़रूरत होती है। इसके लिए रागी, दूध और गुड़ की लपसी अच्छी रहती है। इस बनाने का एक आसान तरीका : एक कप चावल लें। इसमें एक कप चने की या मूंग की दाल और आधा कप भुनी हुई मूंगफली मिलाएं। इस मिश्रण को मोटा मोटा पीस लें। और जब भी ज़रूरत हो लपसी के रूप में इस्तेमाल करें। आप चावल की जगह रागी भी इस्तेमाल कर सकते हैं। भारतीय बच्चों को मॉं के दूध से पर्याप्त आयरन नहीं मिल पाता। इसलिए पहले साल में बाहर से आयरन दिया जाना चाहिए। इसके लिए आयरन द्रवीय या गोलियों के रूप में मिलता है।
भारतीय आहार और खासकर बच्चों को दिये जाने वाले खाने में प्रोटीन की कमी रहती है। भारत में मांसाहारी खाने को लेकर सांस्कृतिक रूप से काफी हिचक होती है। अगर संभव हो तो मीट, मुर्गी, मछली और अंडे दिए जाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करें। इससे वृद्धि ठीक होती है।