फाल्सिपेरम मलेरिया एक खतरनाक संक्रामक बीमारी है। ऍनाफिलीस मच्छरों के द्वारा और फाल्सिपेरम परजीवी द्वारा यह बीमारी फैलती है। व्हायवॅक्स मलेरिया के तुलना में इससे कई ज्यादा मौते होती है। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में तथा छत्तीसगढ, ओदिशा आदि राज्यों में इसका दुष्प्रभाव है। हाल ही में मैने दक्षिण ओदिशा के कुछ जिलों में स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा चलाया रोकथाम का अभियान देखा और सरकारी प्रयास भी देखे है। मालूम होता है की गॉंवों में सक्षम कार्यकर्ता का होना और उनके पास अच्छे तकनिक और दवा का होना फाल्सिपेरम मलेरिया को रोक सकता है।
कंपकंपी बुखार और पसीना आकर बुखार कम होना यह मलेरिया का आम लक्षण है लेकिन इससे हटकर कई और लक्षण भी दिखाई देते है| |
बच्चों में मलेरिया परजीवी की जॉंच और उपचार |
इस बीमारी की पहचान सिर्फ खून की जॉंच से सही मायने में हो सकती है। इसके लिये कांच पर खून का धब्बा लेकर जॉंचा जाता है। लेकिन यह सुविधा याने लॅब शीघ्र उपलब्ध ना हो तब तक इलाज रोके रखना सही नही है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में ये कारण इसके लिये पर्याय स्वरुप रॅपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट किट उपलब्ध है। बाधित इलाकों में सभी स्वास्थ्य कार्यकर्ता और आशाओं के पास यह किट उपलब्ध होता है। रोगी का खून का एक छोटा अंश आर डी. टेस्ट किट में सही जगह लगाकर १५ मिनिट छोड दिया जाता है। किट पर एक रेषा हरदम मौजूद होती है। इसी रेषा का दिखना निगेटिव्ह याने परजीवी का ना होना दर्शाता है। अगर और दो रेषाएँ दिखाई दे तब फाल्सिपेरम और व्हायवॅक्स दोनों का प्रभाव निकल आता है । अगर सिर्फ अंतिम रेषा दिखाई दे तब फाल्सिपेरम का निर्णय होता है। इसके अनुसार इलाज उसी समय हम कर सकते है। यह किट मेडिकल स्टोअर में भी उपलब्ध है।