मलेरिया का तुरन्त/शीघ्र निदान और उसकी सही और पुरी इलाज किए जाने से मलेरिया से मौत को रोका जा सकता है| स्वास्थ्य कार्यकर्ता को सतर्क रहना चाहिए की न केवल ज्यादा लेकर बुखार, मगर असामान्य लक्षण (जैसे सांस में तकलीफ, बेचैनी, पीलिया इत्यादि) के मरीज को भी मलेरिया हो सकता है| इनकी तुरन्त खून जॉंच करा के संक्रमण का पता करे|
मलेरिया के कारण मौत मुख्यत: फालसीपेरम के कारण होती हैं। अगर फालसीपेरम मलेरिया का ज़रा सा भी शक हो तो तुरंत क्लोरोक्वीन से इलाज शुरु कर दें और पास के स्वास्थ्य केन्द्र ले जाएं। राष्ट्रीय मलेरिया रोकथाम कार्यक्रम (रा.म.नि.का.) इसलिये महत्त्वपूर्ण है। मलेरिया की बीमारी एक राष्ट्रीय यासदी है। मलेरिया से पूरे देश भर में बहुत लोग बीमार होते हैं और काफी मौतें भी होतीहैं। रा.म.नि.का. शुरु में बेहद सफल हुआ था। इसलिए विशेषज्ञों ने मलेरिया उल्मूलन कार्यक्रम चलाया। परन्तु ये कार्यक्रम सफल नहीं हुआ और मलेरिया फिर से जोरसे लौट आया।
शुरुआत में मलेरिया पर नियंत्रण डीडीटी के छिड़काव से हुआ था। डीडीटी से मच्छरों की संंख्या में काफी कमी आ गई थी। परन्तु डीडीटी से पर्यावरण को स्थाई रूप से नुक्सान होता है, इसलिए अब इसका इस्तेमाल नहीं किया जाता। इसके बाद कुछ सालों तक इसकी जगह बीएचसी का इस्तेमाल हुआ। अब रा.म.नि.का. के अंर्तगत मैलेथिआन का छिड़काव किया जाता है। पर मैलेथिआन बीएचसी की तरह छ: महीनों तक दीवारों पर नहीं टिकता। इसलिये मच्छर नियंत्रण एक चुनौती बन गयी है। हाल में मलेरिया में बढ़ोतरी के कारण निम्नलिखित हैं:
पानी में मच्छरों की इल्लियॉं, उनमें गप्पी मछलिया छोडना चाहिए |
घरों के अंदर कीटनाशक दवाओं का छिडकाब, बहुत वर्षों तक डी.डी.टी छिडकाया जाता था, मगर अभी कई जगहों में मच्छरोँ में इसके प्रति प्रतिरोधक शक्ती पैदा हो गया है| ऐसी जगहों में मेलथायॉन छिडका जाता है, जहॉं यह दोनों काम नहीं करते वहॉं पैरेथ्रॉइड का इस्तेमाल किया जाता है| मगर यह डी.डी.टी की तरह छ: माह तक दिवारों पर टिकी नहीं रहती| अगर प्रति १००० जनसंख्या में दो से अधिक लोगों को एक वर्ष में मलेरिया होता है, उस क्षेत्र में दवा छिडकाया जाता है| मगर जिस क्षेत्र में फैल्सिपेरम मलेरिया है, वहॉ चाहे जितने ही कम लोगों को मलेरिया क्यो न हो, घर में छिडकाव किया जाता है| घर में छिडकाव में भी कई चुनौतियॉं है| दवा का ठीक समय और मात्रा में छिडकाव, तुरंत पुन: घर की पोताई करने से लोगों को रोकना, छिडकाव कराने देना इत्यादि|
मच्छरदानी लगाकर सोना यह काफी महत्त्वपूर्ण तरीका है| यह देखा गया है कि अगर मच्छरदानी में दवा लगाया जाए (डेल्टामेथ्रिन) तो मच्छरोँ से बचाव ज्यादा बेहतर होता है| मच्छरदानी के अनुसार एषक नाप से यह दवा लगाया जाता है और फिर मच्छरदानी को छॉंव में सुखाना है| अगर मच्छरदानी को न धोएँ, तो यह दवा छॅ माह तक असरदार है| छ: माह बाद मच्छरदानी को धोकर पुन: दवा लगाना चाहिए|
इसके अलावा अभी सरकारी योजना में एल.एल.आई. एन याने लम्बे समय तक असरदार मच्छरनाशक दवा में डुबाकर बनाए गए मच्छरदानी बॉंटे जा रहे है| यह गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को हर परिवार में दो मच्छरदानी की गिनती से दिया जा रहा है| धोने से भी इन मच्छरदानियों से दवा नहीं निकलती|
क्यों की गर्भावस्था में मलेरिया और गंभीर मलेरिया होने की संभावना अधिक होती है, यह बहुत जरुरी है की ऐसी महिलाओं को मलेरिया होने से बचाएँ| २००८ तक राष्ट्रीय कार्यक्रम में मलेरिया ग्रस्त क्षेत्रों में रहने वाले गर्भवती महिलाओं को प्रति सप्ताह क्लोरोक्वीन गोलियॉं देकर मलेरिया से बचाने का कार्यक्रम था| इसके साथ ही उन्हे मच्छरदानी उपलब्ध कराने की योजना भी थी ताकि महिलाएँ उसे उपयोग कर सके| हालांकि कई राज्यों में डॉक्टरों की खुद की डर से यह योजना (क्रियाशील नहीं किया गया| उडीसा राज्य में यह गोलियॉं दी जाती थी|
२००९ में नए कार्यक्रम के अंतर्गत क्लोरोक्वीन गोलियों से रोकथाम का योजना रद्द कर दिया गया और केवल मच्छरदानी पर जोर दिया जा रहा है| इससे मलेरिया के कारण गर्भावस्था में मौते कुछ हद तक बढी है ऐसे वहॉं के कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं का कहना है| मॉं को यह भी सलाह दे की शिशु को और ३ वर्ष से छोटे बच्चों को भी अपने साथ सुलाएँ| इस उम्र में मलेरिया ज्यादा खतरनाक होता है|
मच्छरों की संख्या कम करना एक बहुत बड़ी चुनौती है। भारत में बरसात के महिनो में जगह जगह पानी के छोटे बडे डबरे बन जाते है, जिसमें मच्छर पनपते है। सड़कों, रेल लाइनों, बांधों और नहरों के बनने से मच्छरों के पैदा होने की जगहों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।घर के पानी के ठीक से निस्तारण की व्यवस्था का आभाव लगभग हर गॉंव की समस्या है। मच्छरों में कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोध विकसित हो जाने से मच्छरों की समस्या और भी गंभीर हो गई है। नए कीटनाशक बहुत मंहगे होते हैं। छिड़काव की पुराने उपाय की जगह अब समग्र मलेरिया उल्मूलन उपायों ने ले ली है। इसमें उन सभी कारकों पर ध्यान देना चाहिये। जिनसे मच्छरों पनपते है।
बचाव के लिए सबसे पहला कदम बेकार पानी का सही प्रबंधन है। सिंचाई के ज़्यादा सुरक्षित तरीकों को लोकप्रिय बनाना भी एक और तरीका है (जैसे ड्रिप सिंचाई करना पानी भर कर सिंचाई करने के मुकाबले ज़्यादा सुरक्षित है)। बांधों और नदियों में मच्छर – रोधी मछलियॉं डालना एक और तरीका है। ये मछलियॉं (जैसे गपी मछली) सिर्फ मच्छरों के खाती हैं। अन्य उपाय हैं, कुछ चुने हुए क्षेत्रों में कीटनाशकों का छिड़काव जिससे विकसित मच्छरों को मारा जा सके।
मच्छरों की संख्या को नियंत्रित करने के ऊपर दिए गए उपायों के साथ साथ मच्छरों से व्यक्तिगत बचाव भी ज़रूरी है। ऐसा लगता है कि ये उपाय काफी खर्चीले हैं परन्तु मलेरिया के इलाज की तुलना में ये काफी सस्ते साबित होते हैं। मच्छरदानियों का इस्तेमाल मच्छरों के काटे जाने और मलेरिया से बचाव का सबसे अच्छा उपाय है। नायलोन की मच्छरदानियॉं ज़्यादा देर चलती हैं और इनमें से हवा भी आर पार जा सकती है। कपड़े की मच्छरदानियों में थोड़ी सी घुटन होती है।
आज कल ऐसी मच्छरदानियॉं भी मिलती हैं जिनमें कीटनाशक (के – ओथरिन) छिड़के हुए होते हैं। ये मच्छरदानियॉं न केवल मच्छरों को दूर रखती हैं बल्कि उन मच्छरों को मार भी देती हैं जो उन पर बैठते हैं। इन मच्छरदानियों से सिकता मक्खी को भी मारा जा सकता है। सिकता मक्खी से काला आजार हो जाता है जो कि बिहार और बंगाल में काफी फैला हुआ है।
के – ओथरीन का १० मिली लीटर के घोल में पानी मिला कर उसे ७५० मिली लीटर कर लिया जाता है। फिर उसमें मच्छरदानी भिगो दी जाती है। इस तरीके में कोई नुकसान नहीं होता, कोई बदबू नहीं आती और इससे कोई प्रदूषण नहीं होता। यह आराम से घर में किया जा सकता है। इसका असर छ: महीने तक रहता है और छ: महीने बाद इसे दोहराया जा सकता है।
मच्छर भगाने वाली क्रीम या धुएं कुछ हद तक उपयोगी होते हैं। दवाई की अगरबत्ती या बिजली से गर्म होने वाली टिकिया में दवाई को धुंएं में बदला जाता है। ये उपाय मच्छरदानी की तुलना में मंहगे हैं। इनका इस्तेमाल कभी कभी उन जगहों में किया जा सकता है जहॉं मच्छरदानी इस्तेमाल नहीं हो सकती। सरसों का तेल बदनपर लगाना भी फायदेमंद होता है। इससे मच्छर काटनेसे बचाव होता है। वैसेही कुछ मरहम मिलते है जिसे लगाने से मच्छर दूर रहते है।